विधानसभा चुनाव 2022 के लिए चुनावी बिगुल बज चुका है. तमाम पार्टियां जहां एक-एक कर अपने कैंडीडेट्स का एलान कर रही हैं, वहीं प्रचार-प्रसार में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. ज्यादातर पार्टियों ने अपने घोषणापत्र भी जारी कर दिए है. कोरोना महामारी के कारण लगी पाबंदियों के कारण पार्टियां इस बार डिजिटल प्रचार पर ज्यादा फोकस कर रही हैं. वोटर्स को लुभाने के लिए जहां सभी पार्टी वर्चुअल तरीके आजमा रही हैं, वहीं एक गांव ऐसा भी है जहां चुनाव प्रचार करने के लिए न तो कोई पार्टी आई न ही प्रत्याशी. वोट डालने के लिए भी इस गांव के लोग नाव से नदी पार करेंगे.
किसी झील या नदी में बोटिंग का लुत्फ तो सबने उठाया होगा, पर क्या आप कभी नाव पर बैठ कर वोट डालने गए हैं? शहरों में शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने ट्रांसपोर्टेशन के लिए नाव का सहारा लिया होगा. शहरों में ऐतिहासिक हो चुकी है नाव पर आधुनिक युग की दोपहिया सवार है. गौतमबुद्ध नगर के दलेलपुर गांव से हर रोज लोग ऐसे ही आवाजाही करते हैं. इलेक्शन का माहौल है और इस गांव के लोगों को भी वोट डालना है, ऐसे में वोट डालने के लिए भी इस गांव के लोग नाव से नदी पार करेंगे.
नाव से 15 किमी की दूरी सड़क के रास्ते पड़ती है 70 किमी
दलेलपुर गांव गौतमबुद्ध नगर की दादरी विधानसभा सीट में आता है. गांव की आबादी 400 से ज्यादा है. यह गांव 1840 में बना था. यह गांव दिल्ली हरियाणा के बॉर्डर पर है, लेकिन गौतमबुद्ध नगर की सीमा में आता है. किसी जगह पहुंचने के लिए अगर गांव वाले नाव का सहारा लेते हैं तो उन्हें 15 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है, लेकिन अगर ये लोग सड़क का रास्ता अपनाएं तो वही दूरी 70 किलोमीटर की हो जाती है. मतलब किसी भी सरकारी काम के लिए गांव के लोगों को यमुना पार नोएडा में ही जाना पड़ता है. यहां तक कि बर्थ सर्टिफिकेट और डेथ सर्टिफिकेट सब बनवाने के लिए नोएडा जाना पड़ता है.
आज तक कोई भी प्रत्याशी नहीं पहुंचा इस गांव
अब सोचिए कि जिस गांव का यह हाल है वहां चुनाव को लेकर भला क्या माहौल होगा. आप जानकर हैरान होंगे कि इस गांव में आज तक कोई भी प्रत्याशी किसी भी चुनाव में प्रचार करने नहीं आया. गांव के रहने वाले नीरज त्यागी बताते हैं कि उनके गांव में चुनाव को लेकर कोई हलचल दिखाई नहीं पड़ती. आजादी से लेकर आज तक कोई भी प्रत्याशी चाहे वह किसी भी पार्टी का हो हमारे गांव में वोट मांगने नहीं आया. वोट डालने के लिए हमें बहुत जद्दोजहद करनी पड़ती है, लेकिन हम इस डर से वह डालते हैं कि कहीं वोटर लिस्ट से नाम न कट जाए और हमारे पास कोई पहचान ही ना बचे.
केंद्र सरकार और हवा का रुख देखकर देते हैं वोट
गांव के प्रधान कैलाश सिंह चपराना बताते हैं कि कई बार अधिकारियों को लेटर लिखकर हम मांग कर चुके हैं कि पोलिंग बूथ हमारे गांव में ही बना दिया जाए लेकिन अधिकारी सुनते नहीं. महिलाओं और बुजुर्गों को पोलिंग बूथ तक पहुंचाना सबसे मुश्किल काम होता है. इसके अलावा बिजली पानी इलाज और श्मशान घाट की भी कोई व्यवस्था गांव में नहीं है. 18 साल के हर्ष त्यागी पहली बार वोट डालेंगे लेकिन हर्ष कहते हैं कि उन्हें इस बात के लिए बिल्कुल भी उत्सुकता महसूस नहीं होती. हर्ष का कहना है कि उसने अपने परिवार वालों को गांव में मूलभूत समस्याओं के लिए बहुत संघर्ष करते देखा है. ऐसे में वोट डालने से क्या फायदा सरकार की कोई भी सुविधा हम तक नहीं पहुंचती लेकिन फिर भी घर वालों का दबाव है इसलिए वोट डालने जाएंगे. गांव में इतनी दिक्कतें हैं इसके बावजूद लोग वोट डालने जाते हैं ऐसे में उनके वोट डालने का आधार क्या होता है, वह किसी कैंडिडेट को कैसे चुनते हैं? इस पर गांव वाले कहते हैं कि वह तो केंद्र की सरकार और हवा का रुख देखकर वोट कर देते हैं.