Haryana Siyasi Kisse: साल 2001 महीना मार्च. भिवानी का किरोड़ीमल पार्क. हरियाणा की चौटाला सरकार (Om Prakash Chautala) के खिलाफ कांग्रेस की रैली (Bhiwani Congress Rally 2001) चल रही है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बोलने के लिए खड़े होते हैं. अचानक कांग्रेस के ही कार्यकर्ता हंगामा करने लगते हैं.
कांग्रेसी कार्यकर्ता वापस जाओ, वापस जाओ के नारे लगा रहे थे. धीरे-धीरे नारेबाजी और हूटिंग धक्का मुक्की में बदल गई. कांग्रेस अध्यक्ष को रैली छोड़कर जाना पड़ता है. भीड़ और धक्कामुक्की से निकलते समय कांग्रेस अध्यक्ष का कुर्ता फट जाता है.
रैली और मंच से फटे कुर्ते वाला शख्स और कोई नहीं, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा था. आगे चलकर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा हरियाणा के मुख्यमंत्री बनते हैं. ये कांग्रेस में भजनलाल वर्सेस भूपेन्द्र हुड्डा (Bhajan Lal VS Bhupinder Hooda) का दौर था.
चौटाला के खिलाफ हुई रैली में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की बेज्जती हुई. इसके पीछे के सूत्रधार और कोई नहीं भजनलाल थे. आइए भजनलाल बनाम भूपेन्द्र हुड्डा के इस किस्से के बारे में जानते हैं.
भजनलाल का अपमान
ये किस्सा तो साल 2001 का है लेकिन इसके पीछे की कहानी 1997 में शुरू हो गई थी. साल 1997 में भूपेन्द्र हुड्डा कांग्रेस के अध्यक्ष बने. अपनी ताकत को दिखाने के लिए भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने गोहाना में रैली की.
गोहाना रैली (Gohana Rally 1997) कांग्रेस की बड़ी रैली थी. इस रैली में कांग्रेस के दिग्गज नेता भजनलाल भी पहुंचे. इस रैली में भजनलाल के साथ हूटिंग की गई. साथ ही उनके साथ भजनलाल के साथ बदतमीजी भी हुई. भजनलाल को इस अपमान का बदला लेने का मौका 2001 में मिला.
चौटाला की सरकार
20 फरवरी 2000 को हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आए. ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल को पूर्ण बहुमत मिला. हरियाणा की 90 में से 62 सीटें इनेलो को मिलीं. इस चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 21 सीटें मिलीं.
ओमप्रकाश चौटाला हरियाणा के नेता बने. नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस का बनना था. कांग्रेस हुड्डा और भजनलाल के धड़ों में बंटी हुई थी. भूपेन्द्र हुड्डा और भजनलाल दोनों बड़े दावेदार थे. हाईकमान ने वोटिंग से नेता प्रतिपक्ष चुनने का फैसला किया. इस चुनाव में भूपेन्द्र हुड्डा को हार का सामना करना पड़ा.
कांग्रेस की जनाक्रोश रैली
कांग्रेस में गुटबाजी चल रही थी. वहीं हाईकमान कांग्रेस को एक करने में जुटी थी. ओमप्रकाश चौटाली की सरकार को एक साल हो गए थे. भजनलाल ने चौटाला सरकार के खिलाफ जनाक्रोश रैली करने का फैसला किया. इसके लिए भिवानी का किरोड़ीमल पार्क चुना गया.
भजनलाल ने इस रैली को करवाने का जिम्मा तोशाम के विधायक धर्मबीर को दिया. धर्मबीर भजनलाल के कट्टर समर्थक थे. इस रैली में दिल्ली से हरियाणा कांग्रेस की प्रभारी महासचिव मोहसिना किदवई आने वाली थीं.
भूपेन्द्र हुड्डा इस रैली में नहीं जाना चाहते थे. कांग्रेस आलाकमान ने चाहता थी कि रैली में प्रदेश अध्यक्ष नहीं पहुंचे. हाईकमान ने भूपेन्द्र हुड्डा को रैली में जाने का निर्देश दिया. न चाहते हुए भूपेन्द्र हुड्डा को रैली में जाना पड़ा.
भजनलाल का प्लान
भजनलाल इस रैली के जरिए चौटाला सरकार को तो घेरना ही चाहते थे. साथ ही भूपेन्द्र हुड्डा से गोहाना रैली का बदला लेने की योजना बना रहे थे. भजनलाल खेमे ने रैली में भूपेन्द्र हुड्डा को बेज्जत करने का प्लान बनाया.
सतीश त्यागी की पॉलिटिक्स ऑफ चौधर में इस घटना का जिक्र किया गया है. भूपेन्द्र हुड्डा का अपमान करने का जिम्मा रोहतक के पूर्व मंत्री कृष्णमूर्ति हुड्डा और सुभाष बत्रा को दिया गया. ये दोनों नेता कांग्रेस से निलंबित चल रहे थे.
हुड्डा के खिलाफ नारे
4 मार्च 2001 को भिवानी के किरोड़ीमल पार्क में कांग्रेस की रैली शुरू होती है. योजना के मुताबिक, भजनलाल गुट के 300-400 कार्यकर्ता मंच के सामने जुट जाते हैं. हुड्डा बाकी नेताओं के साथ मंच पर पहुंचते हैं.
भूपेन्द्र हुड्डा के मंच पर पहुंचते ही भजनलाल पक्ष के कार्यकर्ता वापस जाओ के नारे लगाने शुरू कर देते है. थोड़ी ही देर में कार्यकर्ता मंच पर आने लगते हैं. हालात को देखते हुए प्रभारी महासचिव मोहसिना किदवई ने फैसला किया कि सबसे पहले भूपेन्द्र हुड्डा संबोधित करेंगे.
कैसे फट गया कुर्ता?
भूपेन्द्र हुड्डा जैसे ही बोलने के लिए खड़े हुए कांग्रेसी कार्यकर्ता जमकर हूटिंग और नारेबाजी करने लगे. मंच पर मौजूद हुड्डा समर्थकों के साथ बदतमीजी होने लगी. पूर्व विधायक छतरपाल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.
इस हालात को देखते हुए भूपेन्द्र हुड्डा मंच और रैली को छोड़कर जाने लगे. भूपेन्द्र हुड्डा को भीड़ और धक्का मुक्की के बीच बाहर निकलने में मुश्किल हुई. बाहर निकलते हुए भूपेन्द्र हुड्डा का कुर्ता फट गया.
भूपेन्द्र हुड्डा को पता था कि भिवानी रैली में उनके साथ जो हुआ वो भजनलाल के इशारे पर हुआ. इसके बावजूद भूपेन्द्र हुड्डा भजनलाल के खिलाफ कुछ नहीं बोले. उन्होंने इसे चौटाला समर्थकों की करतूत कहा. इसके बाद भजनलाल और हुड्डी की बीच की सियासी लड़ती बढ़ती गई. ये राइवलिरी भूपेन्द्र हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने पर खत्म हुई.