Haryana Assembly Election 2024: BJP-Congress से लेकर INLD-JJP तक... हरियाणा में सभी पार्टियों की नजर दलितों पर... आखिर जीत-हार में कितना अहम रोल अदा करते हैं इस समुदाय के वोटर

Haryana Election 2024: हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. इस राज्य में जाट समुदाय के बाद सबसे अधिक संख्या दलितों की है. इनकी आबादी 21 फीसदी है. भाजपा जहां दलित और गैर जाट वोटों को साधने की कोशिश में लगी है, वहीं कांग्रेस जाट और दलितों को साधकर सत्ता हासिल करने की कवायद में जुटी है.

Haryana Election 2024
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 11 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 2:16 AM IST
  • हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से 17 सीटें हैं अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 
  • पिछले चुनाव में आरक्षित सीटों में से कांग्रेस को 7 और बीजेपी को 5 पर मिली थी जीत

हरियाणा विधानसभा में जहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) जीत की हैट्रिक लगाने की तैयारी में है तो वहीं कांग्रेस (Congress) एक बार फिर सरकार बनाने की फिराक में है. उधर, इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) और जननायक जनता पार्टी (JJP) जैसे क्षेत्रीय दल भी अधिक से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं.

इन दलों में एक कॉमन बात यह है कि इन सभी की नजरें दलितों पर हैं. ऐसा इसिलए क्योंकि 90 विधानसभा सीटों में से लगभग 40 सीटों पर दलित समुदाय के लोगों का प्रभाव है. अब ऐसे में देखना है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Assembly Election 2024) में इस समुदाय के लोग किस पार्टी का खेल बनाते हैं और किसका गेम बिगाड़ते हैं. हरियाणा विधानसभा के लिए 5 अक्टूबर को वोटिंग है और मतों की गिनती 8 अक्टूबर 2024 को होनी है.  

किसने और किससे किया है गठबंधन 
हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. इस राज्य में जाट समुदाय के बाद सबसे अधिक संख्या दलितों की है. इनकी आबादी 21 फीसदी है. भाजपा जहां दलित और गैर जाट वोटों को साधने की कोशिश में लगी है, वहीं कांग्रेस जाट और दलितों को साधकर सत्ता हासिल करने की कवायद में जुटी है. पिछले विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए बीजेपी ने जेजेपी के साथ गठबंधन किया था लेकिन इस चुनाव में बीजेपी का यह गठबंधन टूट गया है. उधर, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) में भी गठबंधन नहीं हो पाया है. 

INLD को BSP तो JJP को आजाद समाज पार्टी का साथ
अभय चौटाला की इंडियन नेशनल लोक दल ने मायावती की पार्टी बसपा (BSP) से गठबंधन किया है, जबकि दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ मिलकर अनुसूचित जाति (एससी) के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है. इस विधानसभा चुनाव में इनलो 90 में से 53 जबकि बीएसपी 37 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.इनलो का बसपा के साथ गठबंधन करने के पीछे दलित वोटों को साधने की कोशिश है. उधर, जेजेपी 70 सीटों चुनाव लड़ेगी जबकि  20 सीट पर आजाद समाज पार्टी (ASP) चुनाव लड़ेगी. नगीना से सांसद चुने जाने के बाद चंद्रशेखर आजाद अपनी पार्टी का विस्तार करना चाहते हैं, जिसके लिए जेजेपी के साथ हाथ मिलाया है.

विधानसभा चुनाव 2019 में कैसे रहे थे नतीजे
पिछले विधानसभा चुनाव में कुल 90 सीटों में से भाजपा को सबसे ज्यादा 40 सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि वह सरकार बनाने के आंकड़े से दूर रह गई थी. कांग्रेस ने 31 सीटों पर कब्जा जमाया था. जेजेपी 10 सीटों पर विजयी रही थी. हरियाणा लोकहित पार्टी 1, आईएनएलडी 1 और 7 सीटें अन्यों को मिली थी. बीजेपी ने जननायक जनता पार्टी के साथ मिलकर गठबंधन की सरकार बनाई थी.

हालांकि लोकसभा चुनाव में सीट साझेदारी को लेकर असहमति के बाद यह गठबंधन टूट गया था. बाद में BJP ने निर्दलीय विधायकों के समर्थन के दम पर अपनी सरकार बचा ली. आपको मालूम हो कि पिछली विधानसभा चुनाव में इनेलो ने 90 में से 81 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इसमें 78 सीटों पर जमानत जब्त हो गई थी. बसपा ने 87 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन कोई सीट नहीं जीत पाई थी. 82 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी. जननायक जनता पार्टी 87 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. 14 सीटों पर जमानत जब्त  हो गई थी. 

आरक्षित सीटों पर किस पार्टी का कैसा रहा था प्रदर्शन
विधानसभा चुनाव 2019 में एससी के लिए आरक्षित 17 विधानसभा सीटों में से 7 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. भारतीय जनता पार्टी को 5 सीटों पर, जेजेपी को 4 और अन्य को 1 सीट पर जीत मिली थी. बीजेपी ने आरक्षित सीटों पर 33 प्रतिशत वोट, कांग्रेस ने प्रतिशत, जेजेपी ने 22 प्रतिशत, बीएसपी ने 3 प्रतिशत और आईएनएलडी ने सिर्फ  1 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे. उससे पहले साल 2014 में हुए चुनाव में  एससी के लिए आरक्षित कुल सीटों में से कांग्रेस को 4 सीटों पर, बीजेपी को 9, इनेलो को 3 और अन्य को 1 सीट पर विजय मिली थी.

इस चुनाव में भाजपा ने 33 प्रतिशत वोट,  कांग्रेस ने 25 प्रतिशत, INLD ने 29 प्रतिशत और बीएसपी ने 3 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. साल 2009 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान आरक्षित सीटों पर भाजपा का खाता तक नहीं खुला था. कांग्रेस ने 7 सीटों पर इनेलो ने 9 और अन्य ने 1 सीट पर जीत हासिल की थी. इस चुनाव में इनेलो ने 36 प्रतिशत वोट, कांग्रेस ने 40 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. बीएसपी और भाजपा ने इन सीटों पर क्रमशः 6 प्रतिशत और 4 प्रतिशत मत हासिल किए थे. 

बीजेपी को क्या है उम्मीद
भारतीय जनता पार्टी दलित और गैर जाट वोटों को साधकर हरियाणा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाना चाह रही है. बीजेपी इस राज्य में गत लोकसभा चुनाव में 5 सीटें हारने के बाद फूंक-फूंक कर कदम उठा रही है. बीजेपी को इस लोकसभा चुनाव में दलितों के लिए आरक्षित दो सीटों अंबाला और सिरसा पर हार मिली थी. इस बार विधानसभा चुनाव में जहां मायावती की पार्टी BSP ने INLD के साथ गठबंधन किया है तो वहीं JJP ने ASP के साथ गठजोड़ किया है. INLD और JJP की जहां पकड़ जाटों पर है तो वहीं BSP और ASP की दलित समुदाय में पहचान है. यदि ये पार्टियां जाट और दलित वोटबैंक में सेंध लगा पाती हैं तो वोटों का बिखराव होगा और इस तरह से बीजेपी के जीतने संभावनाएं मजबूत हो सकती है. 

कांग्रेस जो जाट, दलित, मुस्लिम का सामाजिक समीकरण बनाने की कोशिश कर रही है, BSP-INLD और JJP-ASP के गठबंधन से चिंतित है. उसका मानना है कि भाजपा को लाभ पहुंचाने और एससी वोटों को विभाजित करने के उद्देश्य से इन पार्टियों ने यह कदम उठाया है. बीजेपी को कांग्रेस में गुटबाजी से भी फायदा मिलने की उम्मीद है. क्योंकि कांग्रेस से दलितों का एक वर्ग मांग कर रहा है कि वह हुड्डा परिवार के बजाय कुमारी शैलजा को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाए. उधर, बीजेपी की ओर से दलित बहुल सीटों पर ध्यान केंद्रित करते हुए जिला और विधानसभा स्तर पर सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं. इन सम्मेलनों में दलितों को केंद्र और राज्य की योजनाओं की जानकारी दी जा रही है. उनके सुझाव लेकर उन्हें नई राज्य सरकार द्वारा लागू कराने का आश्वासन दिया जा रहा है. 

कांग्रेस की क्या है रणनीति 
इस विधानसभा चुनाव में जीत के लिए कांग्रेस की कोशिश राज्य के दो प्रमुख समुदाय जाट और दलितों की गोलबंदी पर है. हरियाणा में जहा जाट करीब 30 फीसदी हैं तो दलित 21 फीसदी. कांग्रेस इस तरह से 50 फीसदी वोटबैंक को अपने साथ जोड़ने की रणनीति बनाई है. बीजेपी ने जब से इस प्रदेश में गैर जाट राजनीति शुरू की है तभी से कांग्रेस ने जाट के साथ दलित का समीकरण बैठाना शुरू कर दिया था. दलितों को साधने के लिए ही कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर दलित उदयभान की नियुक्ति की है. जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पार्टी का सर्वोच्च नेता बनाया है. 

कुमारी शैलजा कांग्रेस की हरियाणा में दलित चेहरा हैं. वह भूपेंद्र हुड्डा की विरोधी मानी जाती हैं लेकिन  लेकिन कांग्रेस आलाकमान के कहने पर पार्टी हुड्डा और शैलजा के चेहरे को आगे रखकर विधानसभा चुनाव लड़ने पर सहमत हुई है. स्वयं को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाए जाने को लेकर शैलजा की सार्वजनिक बयान के बाद भी कांग्रेस हाईकमान ने इस ओर ध्यान न देते हुए उन्हें मनाने का प्रयास किया. क्योंकि कांग्रेस को आशंका थी कहीं इससे जाट समुदाय नाराज न हो जाए. इसी को देखते हुये कांग्रेस ने जाट समुदाय से ताल्लुक रखने वाले भूपिंदर सिंह हुड्डा और दलित समाज की कुमारी शैलजा के चेहरे पर चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई है. कांग्रेस का मानना है कि जाट और दलित की गोलबंदी से पार्टी राज्य की सत्ता पर फिर काबिज हो सकती है. इस साल हुए लोकसभा चुनाव में जाट और दलितों का वोट बड़े पैमाने पर कांग्रेस को मिला, जिसके कारण पार्टी पांच सीटें जीतने में कामयाब रही थी. 

आखिर दलित वोट किस पार्टी के साथ
आपको मालूम हो कि हरियाणा में रविदास से जुड़े लोग की संख्या दलित समुदाय में 60 फीसदी से अधिक है. इसके बाद बाल्मिकी और अन्य दूसरे दलित समुदाय आते हैं. हर चुनाव में रविदासी दलितों का साथ कांग्रेस को मिलता है. बाल्मिकी और अन्य दूसरे दलित समुदाय के लोगों का वोट कई पार्टियों को मिलता है. हरियाणा का डेरा सच्चा सौदा सिरसा का भी दलित मतदाताओं पर खास प्रभाव है. डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत सिंह राम रहीम हैं. वह अभी रेप और हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. सभी दल दलितों को अपने पाले में करने के लिए सियासी बिसात बिछा रहे हैं. अब देखना है कि दलित मतदाता किस पार्टी को जीत दिलाकर सत्ता की कुर्सी पर बैठाते हैं. 


 

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