Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली विधानसभा (Delhi Assembly) की कुल 70 सीटों पर 5 फरवरी 2025 को चुनाव होना है. इसके कारण राष्ट्रीय राजधानी का सियासी पारा चढ़ा हुआ है. मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (BJP), आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस (Congress) में है. हर तरफ चुनाव को लेकर चर्चे हो रहे हैं. चलिए हम आपको आज दिल्ली के एक मुख्यमंत्री से जुड़ा किस्सा सुना रहे हैं, जिन्हें एक डायरी में लिखे नाम के चलते सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ गया था.
दरअसल, हम बात कर रहे हैं दिल्ली के पूर्व सीएम मदनलाल खुराना की. अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) के खास सिपहसालार मदनलाल खुराना थे. खुराना को दिल्ली का शेर कहा जाता था. उनकी मर्जी के बिना दिल्ली भाजपा में एक पत्ता तक नहीं हिलता था तो आइए जानते हैं आखिर क्यों उन्हें एक डायरी में उनका नाम लिखे होने के कारण मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया था. इसको जानने से पहले यह जान लेते हैं कि कौन थे मदनलाल खुराना और कैसे उनकी राजनीति पारी शुरू हुई.
कौन थे मदनलाल खुराना
मदनलाल खुराना उर्फ मन्नू का जन्म 15 अक्टूबर 1936 को पंजाब प्रांत के लयालपुर में हुआ था. अब यह इलाका पाकिस्तान में फैसलाबाद के नाम से जाना जाता है. खुराना के पिता शिवदयाल तेल के व्यापारी थे. जब 1947 में देश का बंटवारा हुआ तो मदनलाल खुराना का परिवार भारत आ गया. उस समय खुराना की उम्र सिर्फ 12 साल थी.
भारत आने के बाद खुराना का परिवार दिल्ली के कीर्ति नगर स्थित रिफ्यूजी कॉलोनी में रहा. खुराना ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की थी. इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी चले गए. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में वह संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए. खुराना छात्रसंघ महामंत्री रहे. इसके बाद विद्यार्थी परिषद और जनसंघ के पदाधिकारी बने. इस तरह से उन्होंने राजनीति की बारीकियां सीखीं.
जाना पड़ा था जेल
पढ़ाई पूरी करने के बाद मदनलाल खुराना ने दिल्ली के पहाड़गंज स्थित संघ संचालित बाल भारती स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया. बच्चों को पढ़ाने के अलावा वह राजनीति में भी सक्रिय रहते थे. इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को जब इमरजेंसी लगाई तो मदनलाल खुराना भी विरोध में सड़क पर उतर गए. इसके कारण उनकी नौकरी चली गई. उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हो गया.
सरकार ने उनका घर कुर्क कर लिया. इसके बाद पुलिस ने खुराना को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. कुछ दिन बाद जब चुनाव का ऐलान हुई तो मदनलाल खुराना भी जेल से छूट गए. तब तक खुराना दिल्ली में जनता के बीच फेमस हो चुके थे. इससे पहले खुराना पार्षद भी रह चुके थे. खुराना दिल्ली में बीजेपी की जड़े मजबूत करने वाले नेताओं में से एक थे. खुराना पार्षद के बाद लोकसभा सदस्य बने थे. 1989 में वह साउथ दिल्ली से सांसद चुने गए थे.
दिल्ली को राज्य बनाने के लिए बीजेपी ने आंदोलन किया तेज
दिल्ली को पहले राज्य का दर्जा नहीं मिला था. बीजेपी दिल्ली को राज्य का दर्जा दिलाने के लिए आंदोलन कर रही थी. मदनलाल खुराना भी दिल्ली को राज्य का दर्जा देने का मुद्दा को लेकर साल 1983 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के झंडे तले दिल्ली की झुग्गियों में घूमने लगे. मदनलाल खुराना आम जनता के मुद्दों को लेकर भी आंदोलन करने लगे.
वह कभी डीटीसी किराए में वृद्धि तो कभी दूध के महंगे होने पर आंदोलन कर रहे थे. दिल्ली की म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन 1989 से भंग चल रही थी. चुनाव टल रहे थे. उस समय बीजेपी ने मदनलाल खुराना को प्रदेश अध्यक्ष भी बना दिया. 1987 में जस्टिस सरकारिया आयोग बना, उसके बाद बालकृष्ण की कमेटी बनी. उनकी रिकमंडेशन पर 1991 में संशोधन हुआ और दिल्ली को राज्य का दर्जा और विधानसभा दी गई.
मदनलाल खुराना ने इस दिन ली थी सीएम पद की शपथ
1991 में गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट अमल में आया. इसी के तहत साल 1993 के आखिर में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए. उस समय मदनलाल खुराना दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष थे. उस समय कुल 70 सीटों पर हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मदनलाल खुराना के नेतृत्व में दमदार प्रदर्शन किया.
बीजेपी को 49 सीटों पर जीत मिली. मदनलाल खुराना ने खुद मोती नगर विधानसभा सीट से जीत हासिल की थी. कांग्रेस को 14 सीटों पर जीत से संतोष करना पड़ा. जनता दल को 4 व अन्य के खाते में कुल 7 सीटें गईं. 44% वोट शेयर पाकर BJP की सरकार बनी. मदनलाल खुराना ने 2 दिसंबर 1993 को दिल्ली के सीएम पद की शपथ ली. हालांकि वह पांच सालों तक मुख्यमंत्री नहीं रह सके. उन्होंने एक डायरी में लिखे उनके नाम के चलते इस्तीफा देना पड़ गया. वह दिल्ली के सीएम 1996 तक रहे थे.
हवाला कांड में पैसे लेने का लगा था आरोप
मदनलाल खुराना जब दिल्ल के सीएम थे, उसी समय 1996 में जैन हवाला डायरी कांड हुआ था. इस हवाला स्कैम में बीजेपी कुछ बड़े नेताओं के साथ मदनलाल खुराना का भी नाम आया था. उद्योगपति सुरेंद्र जैन की डायरी में मदनलाल खुराना का नाम लिखा था.खुराना पर कथित रूप से 1989 में हवाला कारोबारी जैन बंधुओं से 3 लाख रुपए लेने का आरोप लगा था. लालकृष्ण आडवाणी पर भी पैसे लेने का आरोप लगा था. आडवाणी ने फौरन बीजेपी का अध्यक्ष पद छोड़ा दिया था और कहा था कि बेदाग साबित होने तक चुनाव नहीं लड़ूंगा. इस हवाला स्कैम में नाम आने के बाद बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष यशवंत सिन्हा भी अपने अपने पद से इस्तीफा दे चुके थे.
इसके कारण मदनलाल खुराना पर भी इस्तीफा देने का दबाव बढ़ने लगा था. सीबीआई ने कोर्ट में बयान दिया था, जिसमें एजेंसी ने कहा था कि हम जल्द मदनलाल खुराना के खिलाफ हवाला कांड में चार्जशीट पेश करने जा रहे हैं. इसके बाद खुराना के पास दिल्ली के सीएम पद से इस्तीफा देने के सिवा कुछ नहीं बचा था. वह 2 वर्ष 86 दिन दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे. उन्होंने 26 फरवरी 1996 को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि, बाद में मदनलाल खुराना हवाला स्कैम मामले में अदालत से बरी हो गए. स्पेशल जज वीबी गुप्ता ने प्रथम दृष्टया खुराना के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलने के कारण बरी कर दिया.
साहिब सिंह वर्मा को सीएम नहीं बनने देना चाहते थे खुराना
मदनलाल खुराना ने जब दिल्ली के सीएम पद से इस्तीफा दिया तो उनकी कोशिश थी साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री न बनाया जाए. इसके लिए उन्होंने पार्टी हाईकमान से बात तक की थी लेकिन साहिब सिंह वर्मा की लॉबी के आगे उनकी एक न चली. पार्टी हाईकमान ने साहिब सिंह वर्मा को सीएम बना दिया.
हवाला स्कैम केस में जब मदनलाल खुरान को क्लीनचिट मिली तो उन्हें लगा कि पार्टी उन्हें फिर से दिल्ली का सीएम बना देगी. इसके लिए उन्होंने दबाव बनाना भी शुरू किया लेकिन ऐसा नहीं हुआ. साहिब सिंह वर्मा सीएम की कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे. पार्टी भी दिल्ली को डिस्टर्ब करने के मूड में नहीं थी. इसके बाद मदनलाल खुराना कभी भी मुख्यमंत्री नहीं बन सके. खुराना को हमेशा सीएम पद छोड़ने के मलाल रहा.
राजनीतिक जीवन में आया उतार-चढ़ाव
दिल्ली का शेर कहे जाने वाले मदनलाल खुराना के राजनीतिक जीवन में उतार-चढ़ाव भी आया. 20 अगस्त 2005 को तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की आलोचना करने पर उन्हें पार्टी से सस्पेंड कर दिया गया था. हालांकि 12 सितंबर 2005 को उन्हें एक बार फिर पार्टी में शामिल कर लिया गया. इसके बाद 21 मार्च 2006 को पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण उन्हें पार्टी से फिर बाहर कर दिया गया. मदनलाल खुराना केंद्र में मंत्री और राजस्थान के राज्यपाल भी रहे. 27 अक्टूबर 2018 की रात 82 वर्ष की उम्र में अपने घर में मदनलाल खुराना ने अंतिम सांस ली.