आंध्र प्रदेश के एक गांव में लोग 2 राज्यों के लिए वोट करते हैं. जी हां,आंध्र प्रदेश और उड़ीसा की सीमा पर स्थित, कोटिया गांव दोनों राज्यों के बीच लंबे समय से क्षेत्रीय विवाद में उलझा हुआ है. हालांकि, जमीन से जुड़ी राजनीति के बीच कोटिया के निवासियों को दो राज्यों में वोट डालने का अधिकार दिया गया है. आंध्र प्रदेश और उड़ीसा दोनों राज्यों के लिए वोट देने वे गांव के 2,500 से ज्यादा वोटर्स के पास वोटर आईडी कार्ड, राशन कार्ड और पेंशन कार्ड हैं.
एक दशक लंबा चला आ रहा है विवाद
कोटिया विवाद की उत्पत्ति 1968 में हुई. जब उड़ीसा ने आदिवासी गांवों पर अपना दावा जताया. हालांकि, इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे भी खटखटाए गए. लेकिन ये कानूनी सहारा कुछ काम नहीं आया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंतरराज्यीय सीमा मुद्दे उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं हैं. ये मामला संसद के हाथ में है. जिसके बाद असमंजस की स्थिति पैदा हो गई, इसके बाद किसी भी राज्य को एकतरफा कार्रवाई करने से मना कर दिया गया.
डबल वोटिंग और इससे जुड़े कानून
हालांकि, डबल वोटिंग के साथ लोगों को कई सारे विशेषाधिकार भी मिले हैं. ऐसी व्यवस्थाओं को लेकर अक्सर कानूनी अस्पष्टताएं बनी रहती हैं. हालांकि, यह उभरता हुआ सवाल है कि किस राज्य में वोट डाला जाए. कोटिया के मतदाताओं के सामने भी अब आने वाले चुनाव में ये दुविधा आने वाली है. आंध्र प्रदेश के अराकू और उड़ीसा के कोरापुट दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में वोटिंग हो रही है.
दोनों राज्यों के अलग-अलग एजेंडे
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, कोटिया में चुनावी चर्चा आंध्र प्रदेश और उड़ीसा के बीच दिए जा रहे विकास के एजेंडे के इर्द-गिर्द घूम रही है. जहां उड़ीसा कंक्रीट सड़कों और शैक्षणिक संस्थानों के साथ ढांचागत विकास को प्राथमिकता देता है, वहीं आंध्र प्रदेश कल्याणकारी योजनाओं और वित्तीय सहायता पर ध्यान केंद्रित कर रहा है.
सभी लोगों को है फायदा
कोटिया के निवासियों के लिए, डबल वोटर आईडी होना फायदेमंद भी है. उन्हें उन सभी योजनाओं और अभियानों का फायदा पहुंचता है जो दोनों राज्य लागू करते हैं. साथ ही दोनों राज्यों के अधिकार मिलते हैं.
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक, जहां कुछ निवासी अपने चुनावी गणित में भौतिक लाभ और कल्याणकारी योजनाओं को प्राथमिकता दे रहे हैं, वहीं दूसरे लोग सांस्कृतिक समानताओं और ऐतिहासिक संबंधों के आधार पर अपने वोट करने का निर्णय लेने वाले हैं. हालांकि, कोटिया के लोगों के लिए वोट देना इतना आसान नहीं होने वाला है. वे सभी चुनावी दुविधा से जूझ रहे हैं.