बेरोजगारी में महिलाओं ने ढूंढा अवसर, बीड़ी बनाने का काम शुरू कर बनीं आत्मनिर्भर

महिलाओं के लिए चुनौतियां तो बहुत बड़ी है लेकिन आत्मनिर्भर होकर खुद कमाना और परिवार को चलाना अपने आप में बड़ी बात है. अमरोहा के जोया कस्बे में रहने वाली महिलाएं बीड़ी बनाती हैं. इनकी बनाई गई बीड़ी पूरे उत्तर प्रदेश में बिकती है. बीड़ी बनाने वाली महिलाएं बताती हैं कि यहां उनके लिए रोजगार का एक बहुत बड़ा अवसर है.

बीड़ी बनाकर आत्मनिर्भर बन रही महिलाएं
तेजश्री पुरंदरे
  • अमरोहा,
  • 07 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 3:45 PM IST

उत्तर प्रदेश के चुनाव में बेरोजगारी का मुद्दा हर बार उठता है. विपक्ष और बाकी सभी दल मिलकर सरकार को इस पर घेरने की खूब कोशिश करते हैं. बेरोजगारी से युवाओं में काफी नाराजगी है. लेकिन दूसरी तरफ परिस्थितियों के हाथों की कठपुतली न बनते हुए अमरोहा के जोया कस्बे की महिलाएं आत्मनिर्भरता की अनूठी मिसाल पेश कर रही हैं. यहां की महिलाओं ने परिस्थितियों को अपनी मंजिल न समझते हुए आपदा में अवसर ढूंढा और अब इस क्षेत्र की बिजनेसवुमैन बन चुकी हैं.

बीड़ी बनाकर चला रहीं घर
महिलाओं के इस काम में चुनौतियां तो बहुत बड़ी है लेकिन आत्मनिर्भर होकर खुद कमाना और परिवार को चलाना अपने आप में उनके लिए बड़ी बात है. दरअसल, जोया कस्बे में रहने वाली महिलाएं बीड़ी बनाने का काम करती हैं. इनकी बनाई गई बीड़ी पूरे उत्तर प्रदेश में बिकती है. बीड़ी बनाने वाली महिलाएं बताती हैं कि यहां उनके लिए रोजगार का एक बहुत बड़ा अवसर है. महंगाई के जमाने में जहां लोगों की नौकरियां जा रही हैं ऐसे में वे बीड़ी बनाकर खुद घर संभाल रही हैं. 

बीड़ी आज की तारीख में बड़े उद्योग का रूप ले चुका है. महिलाएं बताती है कि वे एक दिन में करीब 1000 बीड़ी बना लेती हैं. उन्हें ठेकेदार की ओर से ही सामान दिया जाता है. वे बीड़ियों को पूरी तरह से तैयार कर उन्हें ठेकेदार को दे देती हैं. पूरे दिन की मजदूरी के उन्हें सौ रुपए मिलते हैं. अगर किसी दिन 100 या 200 बीड़ियां कम बन जाती हैं तो उन्हें 100 की बजाय 80 रुपए ही मिलते हैं.

इस काम में जुटी 25 साल की राजिया बताती हैं कि उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई की है और अब अस्पताल में नर्सिंग स्टाफ के तौर पर काम कर ही हैं. घर लौटने के बाद नाजिया बीड़ी भी बनाती हैं ताकि आमदनी थोड़ी ज्यादा हो सके. इसके अलावा ज्योग्राफी में एमए कर चुकी नश्रा कहती हैं कि उन्हें यह काम करने में किसी तरह की कोई झिझक नहीं है. एमए करने के बाद उन्होंने स्कूल में पढ़ाया लेकिन कोरोना काल के दौरान विकट परिस्थितियों के कारण नौकरी छोड़नी पड़ी. लेकिन, उन्होंने घर बैठना ठीक नहीं समझा और इसीलिए बीड़ी बनाने के काम में घर वालों का हाथ बंटाने लगी.

चुनावी चर्चा
यहां की महिलाओं की चुनाव में कोई खास रुचि नहीं है. वैसी महिलाएं इस बात से खुश हैं कि सरकार की तरफ से उन्हें हर महीने दो वक्त का मुफ्त राशन मिलता है. लेकिन उनका कहना है कि जो भी सरकार आएगी उसे बीड़ी बनाने की मजदूरी में मिलने वाले पैसों को बढ़ाना चाहिए.

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