सपा ने लगाया ईवीएम हेराफेरी का आरोप, जानिए कितना कठिन है EVM बदलना या चोरी करना

स्ट्रांग रूम में हर ईवीएम नंबर के आधार पर हर एक ईवीएम के लिए अलग-अलग खाचा तैयार रहता है. नंबर के आधार पर हर ईवीएम को सुरक्षित रखा जाता है. काउंटिंग के दिन पहले से निर्धारित खाचे से ईवीएम निकाला जाता है.

सपा ने लगाया ईवीएम हेराफेरी का आरोप, जानिए कितना आसान है EVM बदलना या चोरी करना
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 09 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 5:40 PM IST
  • भारत निर्वाचन आयोग के पास रिकॉर्ड होता है नंबर
  • ताश के पत्तों की तरह होता ईवीएम का रेंडमाइजेशन

मतगणना का काउंटडाउन जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, प्रत्याशियों की सांसे तेज हो गई हैं. मतगणना से पहले  राजनीतिक दलों का आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने ईवीएम में छेड़खानी, मोबाइल जैमर लगाने की मांग और स्लो वोटिंग का आरोप लगाया है, तो वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि हार के डर से समाजवादी पार्टी सारा ठीकरा ईवीएम पर फोड़ने की तैयारी में है. 
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस ईवीएम को हाथ लगाना भी बहुत मुश्किल है. इसको आप यूं समझ लिजिए कि EVM को चुराना रिजर्व बैंक लूटने से भी ज्यादा कठिन है. 

हर EVM का होता है यूनिक नंबर
जिस तरह से आपकी कार या मोटरसाइकिल का एक ही नंबर होती है, उसी तरह से हर EVM का भी एक नंबर होता है. भारत में भेल कंपनी EVM बनाती है. हर EVM का यूनिक नंबर होता है. एक नंबर के दो ईवीएम नहीं हो सकते.

भारत निर्वाचन आयोग के पास रिकॉर्ड होता है नंबर
एक जगह से दूसरे जगह पर जब ईवीएम भेजा जाता है तो इनका वो यूनिक नंबर भारत निर्वाचन आयोग के पास रिकॉर्ड होता है. जिला मुख्यालय में ईवीएम के आने के बाद सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के सामने भेल के इंजीनियर मशीन की तकनीकी जांच करते हैं. जांच में खराब ईवीएम भेल के वेयर हाउस में चला जाता है. वहीं कुल EVM का 25% प्रशिक्षण के लिए रख लिया जाता है. 

ताश के पत्तों की तरह होता ईवीएम का रेंडमाइजेशन
उसके बाद इलेक्शन कमीशन की ओर से प्रतिनियुक्त ऑब्जर्वर सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि, डीएम तथा कमीशन ऑफिसर की मौजूदगी में ईवीएम का रेंडमाइजेशन करते हैं. रेंडमाइजेशन का मतलब होता है कि ईवीएम तो ताश के पत्तों की तरह मिलाया जाता है, ताकि किसी मशीन की पहचान अलग से ना हो सके. इसके बाद स्ट्रांग रूम में ईवीएम को सुरक्षित रख दिया जाता है. उसके बाद चुनाव के 72 घंटे पहले दोबारा से उस प्रक्रिया को दोहराया जाता है. दूसरे बार के रेंडमाइजेशन में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ साथ सभी प्रत्याशियों के एजेंट, विधानसभा वार ऑब्जर्वर, निर्वाचन अधिकारी, डीएम, केंद्रीय अर्धसैनिक बल सभी की मौजूदगी में  स्टैटिक मजिस्ट्रेट को पोलिंग के लिए ईवीएम दिया जाता है.

सुरक्षाबलों की निगरानी में होता है पूरा काम
अब किस नंबर का ईवीएम की काउंटिंग बूथ पर गया है, इसकी लिस्ट प्रत्याशियों के एजेंट को भी दी जाती है. इसकी कॉपी आब्जर्वर के हाथों चुनाव आयोग तक भेजी जाती है. यहां तक की स्टैटिक मजिस्ट्रेट सुरक्षाबलों की निगरानी में ईवीएम को बूथ तक पहुंचाता है. अब किस ईवीएम में कितना वोट पड़ा, इसका रिकॉर्ड पीठासीन अधिकारी के माध्यम से पोलिंग एजेंट के अलावा ऑब्जर्वर को उपलब्ध कराया जाता है. पोलिंग के सुरक्षाबलों की देखरेख में स्टैटिक मजिस्ट्रेट स्ट्रांग रूम में ईवीएम जमा करवाते हैं.  

नंबर के आधार पर खांचों में रखे होते हैं ईवीएम
स्ट्रांग रूम में हर ईवीएम नंबर के आधार पर हर एक ईवीएम के लिए अलग-अलग खाचा तैयार रहता है. नंबर के आधार पर हर ईवीएम को सुरक्षित रखा जाता है. काउंटिंग के दिन पहले से निर्धारित खाचे से ईवीएम निकाला जाता है. ईवीएम का नंबर और उस में डाले गए कुल वोट का मिलान प्रत्याशियों के काउंटिंग एजेंट के सामने किया जाता है.

इतनी कड़ी सुरक्षा के बाद ईवीएम को कोई हेर-फेर या बदलाव करना या चूराना लगभग मुश्किल ही होता है.


 

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