Gujarat Election: 3 बार CM, इंदिरा को जवाब, गौ हत्या पर कानून... जानिए गुजरात के पूर्व सीएम Chimanbhai Patel के किस्से

Chimanbhai Patel 3 बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने. छात्र राजनीति से उभरे चिमनभाई की सीएम की कुर्सी भी छात्र आंदोलन के चलते गई. चिमनभाई पटेल की सरकार देश में पहली ऐसी सरकार थी, जिसने गौ हत्या पर बैन लगाने का कानून पास किया था.

Chimanbhai Patel/IndiaToday
शशिकांत सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 08 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 7:12 PM IST
  • चिमनभाई पटेल 3 बार गुजरात के मुख्यमंत्री रहे
  • चिमनभाई पटेल की सरकार ने गौ हत्या पर कानून बनाया था

गुजरात का वो लीडर, जिसके बिना सूबे के सियासी सफर की कहानी पूरी नहीं हो सकती. उस लीडर का नाम चिमनभाई पटेल है, जिनको गुजरात में सरकार गिराने और बनाने का माहिर खिलाड़ी माना जाता था. चिमनभाई पटेल 3 बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने. चिमनभाई के सीएम बनने से लेकर हटने तक के कई किस्से फेमस हैं. छात्र राजनीति से सियासत आए चिमनभाई की सीएम की कुर्सी भी छात्र आंदोलन की वजह से ही छीन ली गई. सूबे में छोटे सरकार और नर्मदा के नायक के तौर पर मशहूर चिमनभाई पटेल के किस्से बताते हैं.

छात्र राजनीति से उभरे चिमनभाई-
चिमनभाई पटेल का जन्म 3 जून 1929 को वडोदरा जिले में हुआ था. उनका गांव चिकोदरा सांखेड़ा तहसील में है. उनकी पढ़ाई-लिखाई वडोदरा में ही हुई थी. चिमनभाई ने महाराज सयाजीराव विश्वविद्यालय बड़ौदा में दाखिला लिया. उन्होंने इकोनॉमी में मास्टर की डिग्री हासिल की थी. चिमनभाई की छात्र राजनीति में काफी रूचि रही. साल 1950 में वो विश्वविद्यालय मे छात्र संघ के पहले अध्यक्ष चुने गए. 

पहली बार विधायक बने चिमनभाई-
छात्र राजनीति में चिमनभाई पटेल की तोती बोलती थी. उन दिनों उनके तेवर की चर्चा सियासी गलियारों में भी होती थी. विश्वविद्यालय से निकलने के बाद चिमनभाई ने सदन की सियासत करने की ठानी. साल 1967 में उनको पहली बार चुनाव लड़ने का मौका मिला. उन्होंने निराश भी नहीं किया. चिमनभाई सांखेड़ा से विधानसभा सदस्य चुन लिए गए. छात्र राजनीति से ही उनकी चर्चा थी, इसलिए उनको हितेंद्र देसाई की कैबिनेट में जगह मिली. लेकिन देसाई की सरकार ज्यादा दिन नहीं चल पाई. उनकी जगह साल 1972 में घनश्याम ओझा को मुख्यमंत्री बनाया गया. लेकिन चिमनभाई पटेल की कैबिनेट में जगह बनी रही. साल 1972 में एक बार फिर चिमनभाई विधायक बने.

पहली बार CM बनने की कहानी-
जून 1973 में सीएम घनश्याम ओझा को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर सियासी टकराव बढ़ने लगा. चिमनभाई के साथ 70 विधायकों का समर्थन था. लेकिन सरकार बनाने के लिए ये काफी नहीं था. सीएम पद को लेकर टकराव बढ़ते देखकर आलाकमान ने गुप्त मतदान के जरिए चुनाव कराया. इससे पहले बॉम्बे राजभवन में चिमनभाई ने इंदिरा गांधी से 20 मिनट तक मुलाकात की. कहा जाता है कि इस दौरान दोनों नेताओं में तल्ख अंदाज में बातचीत हुई. चिमनभाई ने इंदिरा गांधी से यहां तक कह दिया था कि आप विधायक दल का नेता नहीं तय करेंगी. विधायक करेंगे. गुजरात में सीक्रेट वोटिंग कराई गई. लेकिन वोटों की गिनती दिल्ली में हुई. चिमनभाई पटेल ने कांतिलाल घिया को 7 वोटों से हरा दिया. 17 जुलाई 1973 को चिमनभाई पटेल ने गुजरात के चौथे सीएम के तौर पर शपथ ली. लेकिन उनका कार्यकाल ज्यादा दिन तक नहीं चल पाया. 9 फरवरी 1974 को चिमनभाई को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा.

चिमनभाई को घर से बाहर तक छोड़ने आईं इंदिरा गांधी-
उस वक्त गुजरात कांग्रेस के प्रभारी सरदार स्वर्ण सिंह थे. 17 जुलाई 1973 को चिमनभाई पटेल और इंदिरा गांधी की मुलाकात का जिक्र विजय सांघवी ने अपनी किताब 'The Congress: From Indira to Sonia' में किया है. किताब के मुताबिक चिमनभाई जब इंदिरा गांधी से मुलाकात कर लौटे तो उनकी मुलाकात गुजरात के वित्त मंत्री अमूल देसाई से हुई. अमूल देसाई ने पूछा कि इंदिरा का मूड कैसा था? इसके जवाब में चिमनभाई ने कहा कि उनका मूड ठीक था और वो उनको छोड़ने के लिए गेट तक आई थीं. किताब के मुताबिक अमूल देसाई ने सोचा कि वो तुमको गेट तक छोड़ने नहीं आई थीं. बल्कि देखने आई थीं कि जब वो उनको लात मारेगी तो वो कहां गिरेंगे? एक साल बाद अमूल देसाई का अंदेशा सही साबित हुआ. चिमनभाई पटेल को सीएम पद से हटा दिया गया.

छात्र आंदोलन में फंस गए चिमनभाई-
साल 1971 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के चलते देश में आर्थिक बोझ बढ़ गया था. आर्थिक संकट से निटपने के लिए सरकारी योजनाओं में कटौती की जाने लगी. पीडीएस के तहत गुजरात को दी जाने वाली एक लाख टन गेहूं की जगह सिर्फ 55 हजार टन गेहूं भेजा गया. महंगाई बढ़ने लगी. इस बीच साल 1973 में अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई इंजीनियरिंग कॉलेज के हॉस्टल मेस की फीस 20 फीसदी बढ़ा दी गई. इससे छात्रों का आक्रोश भड़क गया. छात्रों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया. धीरे-धीरे छात्रों को गुस्सा दूसरी जगहों पर भी भड़कने लगा. गुजरात यूनिवर्सिटी में भी आंदोलन शुरू हो गया. पुलिस और छात्रों में झड़प होने लगी.

आंदोलन के चलते गई सीएम की कुर्सी-
छात्र आंदोलन तेज होने लगा. जनवरी की शुरुआत में छात्रों ने आमरण अनशन शुरू कर दिया. आंदोलन को लोगों का समर्थन भी मिलने लगा. टीचर, वकील के साथ आम लोग भी छात्रों के आंदोलन से जुड़ने लगे. छात्रों ने 10 जनवरी 1974 को गुजरात बंद का ऐलान किया. पूरे प्रदेश में आंदोलन हुए. कई जगहों पर हिंसा हुई. पुलिस ने लाठीचार्ज किया. कई जगहों पर कर्फ्यू लगाया गया. हजारों लोगों को जेल में डाल दिया गया. इस हिंसा में सौ से ज्यादा छात्रों की मौत हुई. इस आंदोलन की कीमत चिमनभाई पटेल को चुकानी पड़ी. फरवरी 1974 को चिमनभाई पटेल को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा.

चिमनभाई पटेल ने बनाई पार्टी-
फरवरी 1974 से जून 1975 तक गुजरात में राष्ट्रपति शासन था. इसके बाद राज्य में चुनाव हुए. चिमनभाई पटेल ने किसान मजदूर लोक पक्ष (केएमएलपी) नाम से राजनीतिक पार्टी बनाई. 1975 के चुनाव में पार्टी ने अकेले 128 पर उम्मीदवार उतारे. चिमनभाई के 12 उम्मीदवारोंने जीत हासिल की. 
चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. कांग्रेस को 75 सीटों और नेशनल कांग्रेस ऑर्गनाइजेशन को 56 सीटों पर जीत मिली थी. सरकार बनाने के लिए एनसीओ, जनसंघ, भारतीय लोकदल और समता पार्टी को चिमनभाई पटेल से हाथ मिलाना पड़ा और बाबू भाई पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया. बाबू भाई गुजरात के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे.

KHAM को टक्कर देने के लिए KOKAM बनाया-
चिमनभाई पटेल ने माधव सिंह सोलंकी के KHAM की काट के लिए नई थ्योरी लेकर आए थे. उन्होंने KOKAM नाम का सामाजिक संगठन बनाया था. कोकम का मतलब कोली, कणबी और मुस्लिम था. चिमनभाई पटेल की इस नई थ्योरी के चलते जनता दल को साल 1990 चुनाव में भारी जीत मिली थी.

फिर CM बने चिमनभाई पटेल-
16 साल इंतजार करने के बाद साल 1990 में एक बार फिर चिमनभाई पटेल के हाथ गुजरात की सत्ता आई. चुनाव में चिमनभाई पटेल की अगुवाई में जनता दल ने 29.36 फीसदी वोट हासिल किए और खाते में 70 सीटें आई. जबकि कांग्रेस को सिर्फ 73 सीटों पर जीत मिली थी. 4 मार्च 1990 को चिमनभाई पटेल दूसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने. जबकि केशुभाई पटेल को डिप्टी सीएम बनाया गया. लेकिन चिमनभाई की सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई और बीजेपी के समर्थन वापस लेने से जनता दल की सरकार गिर गई. 25 अक्टूबर 1990 को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा.
हालांकि चिमनभाई पटेल ने बीजेपी के समर्थन वापसी के बाद नया सियासी दांव खेला और कांग्रेस के समर्थन से अपनी सरकार बना ली. 25 अक्टूबर को इस्तीफा देने के बाद एक बार फिर उसी चिमनभाई पटेल ने सीएम पद की शपथ ली. इस बार चिमनभाई पटेल 17 फरवरी 1994 तक मुख्यमंत्री रहे. मुख्यमंत्री रहते चिमनभाई पटेल का निधन हो गया.

चिमनभाई पटेल के बड़े फैसले-
जब चिमनभाई पटेल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने कई बड़े फैसले लिए. चिमनभाई की सरकार ने सरदार सरोवर प्रोजेक्ट को पूरा करवाने का काम किया. उनकी सरकार में देश में पहली बार किसी राज्य में गौ हत्या पर कानून बनाकर बैन लगाया गया. चिमनभाई की सरकार ने हिंदू और जैन त्योहारों पर मीट की बिक्री रोक दी थी. उनके कार्यकाल में ही बंदरगाहों, रिफाइनरी और पावर प्लांट में प्राइवेट कंपनियों के साथ साझेदारी शुरू हुई थी. 

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