Gujarat Elections 2022: 15 फीसदी आबादी वाले Scheduled Tribes की क्या है सियासी कहानी, जानिए

Gujarat Assembly Elections 2022: गुजरात में 15 फीसदी आबादी वाले आदिवासी समुदाय ने सियासत में अहम भूमिका निभाई है. इस समुदाय के लिए 27 सीटें आरक्षित हैं. सूबे में 47 सीटें ऐसी हैं, जहां आदिवासी समुदाय की आबादी 10 फीसदी से ज्यादा है.

गुजरात विधानसभा चुनाव में आदिवासी समुदाय की भूमिका
शशिकांत सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 14 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 2:08 PM IST
  • गुजरात में आदिवासियों की आबादी 15 फीसदी है
  • विधानसभा की 27 सीटें आरक्षित हैं

गुजरात चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है. एक दिसंबर और 5 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे. जबकि 8 दिसंबर को नतीजे आएंगे. चुनावी बिगुल बजने के बाद सूबे का सियासी तापमान बढ़ गया है. चुनाव को प्रभावित करने वाले समीकरणों की लगातार बात हो रही है. वोट बैंक पर तरह-तरह से दावे किए जा रहे हैं. गुजरात का आदिवासी भी एक ऐसा ही तबका है, जिनकी सियासी चाल सूबे का समीकरण बदल सकते हैं. कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाना ये समुदाय पिछले कुछ चुनावों से अपना मन बदल रहा है. साल 2019 लोकसभा चुनाव में इस तबके का 50 फीसदी से ज्यादा वोट बीजेपी की तरह गया है. सूबे में 15 फीसदी आबादी वाले इस तबके का सियासत में कितना दबदबा है. चलिए आपको बताते हैं.

सूबे में कितनी है आबादी-
गुजरात में आदिवासी समुदाय की संख्या ज्यादा नहीं है. लेकिन सियासत के हिसाब से एक बड़ी ताकत है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक गुजरात में 89.17 लाख आदिवासी हैं. जो कुल आबादी का 15 फीसदी हैं. इस समुदाय की बड़ी आबादी सूबे के 14 पूर्वी जिलों में रहती है. जिसमें 48 तालुका आते हैं.
आदिवासी आबादी की बात करें तो डांग में 95 फीसदी, तापी में 84 फीसदी, नर्मदा में 82 फीसदी, दाहोद में 74 फीसदी, वलसाड में 53 फीसदी, नवसारी में 48 फीसदी, भरूच में 31 फीसदी, पंचमहल में 30 फीसदी, वडोदरा में 28 फीसदी और सबारकांठा में 22 फीसदी है.

कितनी है सियासी ताकत-
सूबे में आदिवासियों के लिए अलग से सीटें आरक्षित हैं. गुजरात विधानसभा की 27 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए रिजर्व है. इन सीटों पर सिर्फ आदिवासी समुदाय का कोई शख्स चुनाव लड़ सकता है. हालांकि इन सीटों पर किसी एक पार्टी का दबदबा नहीं है. आदिवासी समुदाय सिर्फ 27 सीटों तक ही सीमित नहीं है. इस समुदाय का सियासी दबदबा 35 से 40 सीटों तक माना जाता है. सूबे की 47 सीटें ऐसी हैं, जहां आदिवासी समुदाय की आबादी 10 फीसदी से ज्यादा है. जबकि 40 विधानसभा सीटों पर 20 फीसदी से ज्यादा आबादी है. 

पिछले चुनाव में किसका था दबदबा-
साल 2017 विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो आदिवासी समुदाय में कांग्रेस ने बीजेपी को पछाड़ दिया था. कांग्रेस ने आरक्षित 27 सीटों में से 15 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि बीजेपी के खाते में सिर्फ 8 सीटें आई थीं. भारतीय ट्राइबल पार्टी यानी बीटीपी ने दो सीटों पर जीत दर्ज की थी और एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी. अगर वोट शेयरिंग के हिसाब से देखें तो कांग्रेस ने 46 फीसदी और बीजेपी ने 45 वोट हासिल किए थे. इसका मतलब दोनों पार्टियों को आदिवासी समुदाय में करीब-करीब एक जैसा समर्थन है.

कांग्रेस का घटता आधार, बीजेपी होती मजबूत-
अगर सूब के आदिवासी रिजर्व सीटों के आंकड़ें देखें तो पाएंगे कि ये इलाका कभी कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा है. लेकिन धीरे-धीरे पार्टी अपनी पकड़ ढीली करती गई और बीजेपी अपना दबदबा बढ़ाती गई. साल 1980 के दशक तक आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित सीटों पर कांग्रेस को करीब 60 फीसदी वोट मिलते थे. जबकि बीजेपी के खाते में सिर्फ 14 फीसदी वोट गया था. लेकिन ये समीकरण 1990 विधानसभा चुनाव में खत्म हो गया. कांग्रेस की हिस्सेसारी 36 फीसदी तक कम हो गई. बीजेपी धीरे-धीरे अपना जनाधार बढ़ाती रही. लेकिन 27 सालों तक सत्ता से बाहर रहने के बावजूद भी कांग्रेस का जनाधार आदिवासी समुदाय में बरकरार है. पिछले लोकसभा चुनाव यानी साल 2019 में बीजेपी ने इन सीटों पर 52 फीसदी वोट हासिल किए थे. 

किस पार्टी का क्या है दावा-
गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रसे के अलावा भी कई पार्टियां चुनावी मैदान हैं. ये पार्टियां आदिवासी समुदाय के वोटों पर अपना दावा ठोक रही हैं.  बीजेपी और कांग्रेस के अलावा बीटीपी ने भी आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित सीटों पर अपनी मौजूदगी दिखाई थी. साल 2017 विधानसभा चुनाव में भारतीय ट्राइबल पार्टी ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसके लिए इस बार आम आदमी पार्टी भी आदिवासी वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए सियासी दांव चल रही है.

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