Harayana Siyasi Kisse: जिस चाल से Rao Birendra Singh को CM नहीं बनने दिया था... उसी से मात खा गए थे Bhagwat Dayal Sharma... Indira Gandhi का एक ऐलान... और सबकुछ गंवा बैठे थे बीडी शर्मा

Harayana Assembly Election 2024: साल 1968 में हरियाणा में दूसरा विधानसभा चुनाव हुआ था. इसमें कांग्रेस को 48 सीटों पर जीत मिली थी. भगवत दयाल शर्मा ने अपने समर्थन में 32 विधायकों का दावा किया था तो देवीलाल ने भी सीएम बनने के लिए दिल्ली में डेरा डाल दिया था. इस बीच इंदिरा गांधी ने एक ऐसा ऐलान किया कि इन दोनों नेताओं का मुख्यमंत्री बनने का सपना टूट गया था. 

Harayana Siyasi Kisse (File Photo)
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 21 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 5:58 AM IST
  • राव बीरेंद्र सिंह हरियाणा के पहले सीएम रह गए थे बनते-बनते 
  • साल 1968 में भगवत दयाल शर्मा नहीं बन पाए थे मुख्यमंत्री

हरियाणा (Harayana) में कुल 90 विधानसभा सीटों पर वोटिंग 5 अक्टूबर को होनी है. मतों की गिनती 8 अक्टूबर 2024 को होगी. भारतीय जनता पार्टी (BJP) जहां जीत की हैट्रिक लगाना चाह रही है, वहीं कांग्रेस (Congress) किसी भी हाल में सत्ता पाना चाह रही है. उधर, इंडियन नेशनल लोकदल (INLD), जननायक जनता पार्टी (JJP) व अन्य दलों के उम्मीदवार भी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं. पूरे प्रदेश में इस समय राजनीति की ही बात हो रही है तो चलिए हम भी आपको एक चुनावी किस्सा बता रहे हैं. यह किस्सा हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री भगवत दयाल शर्मा (Bhagwat Dayal Sharma), राव बीरेंद्र सिंह (Rao Birendra Singh) और इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) से जुड़ा है. 

दरअसल, हम हरियाणा में साल 1968 में हुए मध्यावधि चुनाव की बात कर रहे हैं. इस चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ था. भगवत दयाल शर्मा को लग रहा था कि एक बार फिर वही सीएम (CM ) बनेंगे. ऐसा वह अपने पक्ष में सबसे अधिक विधायकों का समर्थन होने के कारण सोच रहे थे. उधर, ताऊ देवीलाल भी सीएम की कुर्सी पर नजर लगाए हुए थे. वह दिल्ली में डेरा डाले हुए थे. हालांकि इन देनों नेताओं में से किसी को भी इस चुनाव में यह कुर्सी नसीब नहीं हुई. भगवत दयाल शर्मा यानी बीडी शर्मा ने जिस चाल से हरियाणा का पहला सीएम राव बीरेंद्र सिंह को बनने नहीं दिया था, उसी चाल से इस बार वे मात खा गए. पूरा माजरा समझाने के लिए हम आपको इसके पीछे के विधानसभा चुनावों में ले जा रहे हैं.  

जब इंदिरा गांधी के न चाहने के बाद भी सीएम बन गए थे भगवत दयाल
पंजाब राज्य से 1 नवंबर 1966 को अलग होकर हरियाणा एक नया राज्य बना था. अब बारी थी प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री चुनने की. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) राव बीरेंद्र सिंह को हरियाणा का सीएम (CM) बनाना चाहती थीं. उधर, पंडित जवाहरलाल नेहरू के करीबी रहे भगवत दयाल शर्मा (Bhagwat Dayal Sharma) भी सीएम की कुर्सी पर विराजमान होना चाह रहे थे. अब्दुल गफ्फार खान को हराकर बीडी शर्मा कुछ दिन पहले ही हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने थे. उस समय राजनीतिक हलकों में चर्चा थी कि जो नए राज्य में कांग्रेस अध्यक्ष होगा, उसे ही मुख्यमंत्री बनाया जाएगा लेकिन इंदिरा गांधी जिस नेता को सीएम बनाना चाह रही थीं वह राव बीरेंद्र सिंह थे. इंदिरा गांधी ने भगवत दयाल को दिल्ली बुलाया. 

उनसे कहा कि मैं मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह को बनाना चाह रही हूं इसलिए तुम सीएम बनने का सपना मत देखो. इस पर बीडी शर्मा ने इंदिरा गांधी से कहा कि राज्य के अधिकतर विधायकों का समर्थन मुझे सीएम बनाने को लेकर है. राव बीरेंद्र सिंह इस समय विधायक भी नहीं हैं. यदि राव बीरेंद्र सिंह को सीधे सीएम की कुर्सी पर बैठाया गया तो कांग्रेस पार्टी के खिलाफ जनता में गलत संदेश जाएगा. उधर, उस समय गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री थे और पंजाब के मामलों को देख रहे थे. गुलजारी लाल नंदा भगवत दयाल शर्मा को ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे. उन्होंने अपना पूरा जोर बीडी शर्मा को सीएम बनाने को लेकर लगा दिया. इंदिरा गांधी चूकि उस समय नई-नई पीएम बनी थीं. वह गुलजारी लाल नंदा की बात मानती थीं. इस तरह से इंदिरा गांधी को न चाहते हुए भी बीडी शर्मा को सीएम बनाना पड़ा. उधर, राव बीरेंद्र सिंह हरियाणा के पहले सीएम बनते-बनते रह गए. इसके बाद से ही राव बीरेंद्र सिंह और भगवत दयाल शर्मा में मनमुटाव हो गया था.

साल 1967 में पहली बार हुआ हरियाणा विधानसभा के लिए चुनाव
हरियाणा विधानसभा के लिए पहली बार चुनाव 1967 में हुआ. उस समय भगवत दयाल शर्मा नहीं चाह रहे थे कि किसी ऐसे उम्मीदवार को टिकट मिल जाए, जो आगे चलकर उनके लिए खतरा बन जाए. इतना ही नहीं बीडी शर्मा ने मोरारजी देसाई की मदद से देवीलाल तक का टिकट कटवाने में सफल हो गए थे. टिकट नहीं मिलने पर देवीलाल ने अपने बेटे प्रताप सिंह को ऐलनाबाद सीट से चुनाव लड़ाया था. उधर, रणबीर सिंह और राव बीरेंद्र सिंह को कांग्रेस पार्टी से टिकट मिल गया था. राव बीरेंद्र सिंह जीत दर्ज करने में सफल हुए थे. 

इस चुनाव में कांग्रेस ने 81 सीटों में से 48 पर विजय हासिल की थी. जनसंघ को 12, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया को 2, स्वतंत्र पार्टी को 3 और 16 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत मिली थी. बीडी शर्मा सीएम बने थे. हालांकि यह सरकार सिर्फ हफ्ते भर ही चल पाई थी. कांग्रेस विधायकों के दल बदलने से सरकार गिर गई थी. इसके बाद संयुक्त मोर्चा ने अपनी सरकार बनाई. हरियाणा के नए मुख्यमंत्री के रूप में बीरेंद्र सिंह ने शपथ ली. यह सरकार नौ महीने ही चली. कई विधायकों के बार-बार पार्टी बदलने से राज्यपाल ने हरियाणा विधानसभा को भंग कर दिया. 

साल 1968 में कराया गया मध्यावधि चुनाव 
विधानसभा भंग होने के बाद हरियाणा में मध्यावधि चुनाव 12 मई और 14 मई 1968 को कराया गया. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अंदर तीन गुट बन गए थे. इन गुटों की अगुवाई भगवत दयाल शर्मा, देवीलाल और रामकृष्ण कर रहे थे. कांग्रेस ने गुटबाजी को रोकने के लिए इन तीन लोगों को चुनाव में टिकट नहीं दिया. उधर, राव बीरेंद्र सिंह तब तक विशाल हरियाणा पार्टी बना चुके थे. उधर, देवीलाल अपने बेटे ओमप्रकाश चौटाला को ऐलनाबाद से पार्टी का टिकट दिलाने में सफल रहे. हालांकि उस चुनाव में चौटाला को जीत नहीं मिली थी. 

अब सारी लड़ाई थी कि मुख्यमंत्री कौन 
इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 81 सीटों में से 48 पर जीत मिली. राव बीरेन्द्र की विशाल हरियाणा पार्टी को 16 सीटें मिलीं. जनसंघ ने 7 और स्वतंत्र पार्टी के खाते में 2 सीटें आईं. इसके अलावा आरपीआई, भारतीय क्रांति दल को 1-1 सीट मिली. अब बारी आई नई सरकार गठन की. कांग्रेस पार्टी में सबसे बड़ी लड़ाई थी मुख्यमंत्री कौन होगा. विधायक दल का नेता बनने को लेकर भगवत दयाल शर्मा और देवीलाल में फिर राजनीति शुरू हो गई. मामला दिल्ली इंदिरा गांधी के दरबार में पहुंच गया. उधर, इस बार बीडी शर्मा विधायक नहीं थे, लेकिन विधायक दल के नेता के लिए उनका दावा सबसे मजबूत था. 

विधायकों पर उनकी मजबूत पकड़ थी. इंदिरा गांधी को छोड़कर केंद्र में कांग्रेस के कई दिग्गज उनके साथ थे. भगवत दयाल शर्मा ने 32 विधायकों का समर्थन का दावा किया तो देवीलाल ने भी दिल्ली में डेरा डाल दिया. इस बीच प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक ऐसा ऐलान किया कि इन दोनों नेताओं का इस बार सीएम बनने का सपना पूरा नहीं हो पाया. दरअसल, इंदिरा गांधी ने ऐलान किया कि हरियाणा का नया मुख्यमंत्री जीते हुए विधायकों में से ही कोई होगा. आपको मालूम हो कि जब 1966 में इंदिरा गांधी सीएम की कुर्सी पर राव बीरेंद्र सिंह को बैठाना चाह रही थीं, उस समय भगवत दयाल शर्मा ने विधायक नहीं होने की दलील देते हुए राव बीरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया था. अब यही चल बीडी शर्मा पर उलटा पड़ गया. 

...और इस तरह बंसीलाल बन गए सीएम 
इंदिरा गांधी के ऐलान के बाद कि जीते हुए विधायकों में से ही कोई सीएम होगा भगवत दयाल शर्मा ने तुरंत अपने समर्थक विधायकों की बैठक बुलाई. इसमें सीएम पद के लिए ओम प्रभा जैन का नाम आगे बढ़ाने का फैसला किया गया. उधर, इंदिरा गांधी के दूत दिनेश सिंह और इंद्र कुमार गुजराल ने बंसीलाल (Bansi Lal) के नाम का प्रस्ताव रख दिया. देवीलाल ने भी बंसीलाल के पक्ष में अपना समर्थन जताया. उधर, ज्यादातर जाट नेता बंसीलाल के पक्ष में थे. इसको देखते हुए अंत में भगवत दयाल शर्मा भी पीछे हट गए और इस तरह से बंसीलाल हरियाणा के सीएम बन गए.


 

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