Harayana Siyasi Kisse: जिसको Devi Lal मानते थे अपना 5वां बेटा... उसी ने ठोक दी थी चुनावी मैदान में Omprakash Chautala के खिलाफ ताल... ताऊ ने बना लिया था इसे नाक का सवाल

Haryana Assembly Election 2024: हरियाणा विधानसभा की कुल 90 सीटों पर 5 अक्टूबर को चुनाव होना है. मतों की गिनती 8 अक्टूबर 2024 की जाएगी और नतीजे भी उसी दिन आएंगे. हम आपको सियासी किस्से में आज साल 1990 में हुए महम उपचुनाव के बारे में बताने जा रहे हैं कि कैसे ताऊ देवीलाल ने इस सीट से अपने बेटे ओपी चौटाला को जीत दिलाने के लिए सारी ताकत झोंक दी थी. 

Harayana Siyasi Kisse
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 30 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 6:33 PM IST
  • पिता देवीलाल के इस्तीफे से खाली हुई महम सीट से साल 1990 में ओपी चौटाला ने उपचुनाव लड़ने का किया था फैसला
  • देवीलाल ने चौबीसी सर्व खाप की राय लिए बिना खुद चौटाला को उम्मीदवार कर दिया था घोषित, जिससे खाप हो गई थी नाराज

Haryana Election 2024: जनसंख्या की दृष्टि से छोटा राज्य हरियाणा ने राजनीति में कई रंग देखे हैं. यहां एक से बढ़कर एक नेता हुए हैं, जिन्होंने प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में अमिट छाप छोड़ी है.

ऐसे ही राजनेता रहे देवीलाल (Devi Lal) और उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला (Omprakash Chautala) से जुड़ा एक सियासी किस्सा मैं आज आपको बताने जा रहा हूं. इस किस्से में आनंद सिंह दांगी (Anand Singh Dangi) और चौबीसी सर्व खाप (Chaubisi Sarv Khap) भी शामिल है. जी हां, हम बात कर रहे हैं साल 1990 में हुए महम (Meham) उपचुनाव की. इस चुनाव को ताऊ देवीलाल नाक का सवाल बना लिया था. इस उपचुनाव में इतना खून खराबा हुआ कि यह महम कांड से नाम दर्ज हो गया.

आखिर क्यों हुआ था महम सीट पर उपचुनाव
हरियाणा के रोहतक जिले की एक विधानसभा सीट का नाम है महम. देवीलाल इस विधानसभा सीट से तीन बार विधानसभा चुनाव 1982, 1985 और 1987 में चुनाव जीतकर विधायक बने थे. यह सीट उस समय देवीलाल का गढ़ कही जाने लगी थी. अब हम आपको बता रहे हैं कि आखिर महम सीट पर साल 1990 में उपचुनाव क्यों हुआ था.

दरअसल, जब नवंबर 1989 में लोकसभा चुनाव हुए तो केंद्र में जनता दल की सरकार बनी. वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने. उस समय देवीलाल महम से विधायक थे. उन्होंने लोकसभा चुनाव जीतने के बाद महम विधायक से इस्तीफा दे दिया और उपप्रधानमंत्री बन गए. उन्होंने हरियाणा के सीएम पद पर अपने बड़े बेटे ओम प्रकाश चौटाला को बैठा दिया. ओपी चौटाला 2 दिसंबर 1989 को पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे. हालांकि चौटाला उस समय हरियाणा विधानसभा के सदस्य नहीं थे. उन्हें हर हाल में 6 महीने के भीतर चुनाव जीतना था. 

चौबीसी की सर्व खाप की देवीलाल ने नहीं मानी बात
ओपी चौटाला साल 1990 में उपचुनाव में अपने पिता देवीलाल की छोड़ी गई महम सीट से जनता दल के प्रत्याशी के रूप मैदान में उतरने का फैसला किया. देवीलाल ने चौबीसी सर्व खाप की राय लिए बिना खुद ओपी चौटाला को उम्मीदवार घोषित कर दिया था. इससे चौबीसी की सर्व खाप नाराज हो गई.

सर्व खाप यह नहीं चाहती थी कि देवीलाल के बाद फिर से उनके परिवार का सदस्य ही महम से चुनाव लड़े. इस खाप से जुड़े सैकड़ों लोग देवीलाल से मिलने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली चले गए. हरियाणा भवन में डेरा डंडा डाल दिया. देवीलाल से मिलकर उन्होंने ओपी चौटाला को चुनाव नहीं लड़ने के लिए कहने को कहा लेकिन चौबीसी की सर्व खाप की बात मानने से देवीलाल ने इनकार कर दिया. देवीलाल बोले कि महम से उनका बेटा ही चुनाव लड़ेगा. ताऊ की इस जिद से चौबीसी की सर्व खाप काफी नाराज हो गई. खाप ने ओपी चौटाला को हराने का ऐलान कर दिया. 

सर्व खाप का विरोध... यानी हार पक्की!
1990 के दौर तक चौबीसी की सर्व खाप की इतनी चलती थी कि बड़े से बड़े नेता भी इसके फैसले को अनसुना नहीं करते थे. खाप उस समय चुनाव में अपना प्रत्याशी चुनती थी. कहा तो यह तक जाता है कि उन दिनों सर्व खाफ इतनी ताकतवर थी कि जिस भी उम्मीदवार का समर्थन करती थी, उसकी जीत पक्की मानी जाती थी.

आपको मालूम हो कि महम विधानसभा क्षेत्र में एक चबूतरा है, जिसे चौबीसी चबूतरा कहा जाता है. अंग्रेजों ने इस चबूतरे पर 1857 के स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी थी. तब से ये चबूतरा यहां के लोगों के लिए पूज्यनीय हो गया. चौबीसी के चबूतरे पर होने वाली सर्व खाप पंचायत का फैसला कोई टाल नहीं सकता. जिसने खाप के फैसले का विरोध किया, उसकी हार तय मानी जाती थी. अब देवीलाल ने इस खाप से पंगा ले लिया था.

ओपी चौटाला के खिलाफ आनंद दांगी उतरे थे चुनावी मैदान में  
महम विधानसभा सीट पर साल 1990 में होने वाले उपचुनाव में ओपी चौटाला के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में आनंद दांगी चुनावी मैदान थे. आपको मालूम हो दांगी कभी देवीलाल के खासमखास थे. वह उनके राजनीतिक शिष्य थे. इतना ही नहीं देवीलाल उन्हें अपना पांचवां बेटा मानते थे.

आनंद दांगी के चुनाव लड़ने से देवीलाल और ओपी चौटाला काफी नाराज थे. उधर, चौबीसी की सर्व खाप ने भी ओपी चौटाला को हराने के लिए आनंद दांगी को अपना समर्थन दे दिया. इससे ताऊ और उनके बेटे का गुस्सा चरम पर हो गया. देवीलाल ने इस चुनाव को अपनी नाक का सवाल बना लिया. 

जब महम चुनाव बन गया महम कांड
ओमप्रकाश चौटाला ने महम उपचुनाव में जीत दर्ज करने के लिए पूरी जिम्मेदारी अपने बेटे अभय चौटाला को दे दी थी. 27 फरवरी 1990 को महम में उपचुनाव हुए. चुनाव जीतने के लिए लोकदल कार्यकर्ताओं ने जमकर गुंडागर्दी की और बूथ कैप्चरिंग कराई. इसमें अभय चौटाला का भी नाम सामने आया था. पॉलिटिक्स ऑफ चौधर में सतीश त्यागी ने बूथ कैप्टचरिंग की घटना का जिक्र किया है.

इस चुनाव में कई जगहों पर झड़प और गोलीबारी की घटना हुई. इस चुनाव में चौटाला के समर्थकों ने फर्जी वोटिंग की कोशिश की. इसका जब दांगी समर्थकों ने विरोध किया तो गोलीबारी कर दी गई. इसमें कई लोगों की मौत हो गई. इसके बाद दांगी समर्थक उग्र हो गए. उधर, गांव बैंसी के स्कूल में मतदान केन्द्र पर अभय चौटाला अपने साथियों के साथ बूथ कैप्चरिंग करने लगे तो दांगी समर्थकों ने स्कूल को घेर लिया. 

अभय चौटाला और उनके साथियों को स्कूल में बंद कर दिया 
दांगी के समर्थकों ने अभय चौटला और उनके साथियों को स्कूल में ही बंद कर दिया. लोगों को भगाने के लिए पुलिस ने गोलीबारी कर दी. ओमप्रकाश चौटाला ने आदेश दिया कि अभय को सुरक्षित निकालना है.

अभय को बचाने के लिए सिपाही हरबंस सिंह के कपड़े उनको पहनाए गए. सिपाही ने सीएम के बेटे अभय सिंह के कपड़े पहने. भीड़ ने सिपाही को हरबंस सिंह समझकर मार डाला. उधर, अभय चौटाला को सुरक्षित निकाल लिया गया. चुनाव आयोग ने मतदान को रद्द कर दिया और 28 फरवरी को आदेश दिया कि दोबारा मतदान कराया जाएगा. 21 मई 1990 को फिर से मतदान की तारीख तय हुई. 

फिर उपचुनाव को करना पड़ा रद्द 
21 मई 1990 को भी उपचुनाव नहीं हो पाया. दरअसल, चुनाव से पहले 16 मई को एक निर्दलीय उम्मीदवार अमरीक सिंह की हत्या कर दी गई.अमरीक को चौटाला ने ही खड़ा किया था ताकि दांगी का वोट बंट जाए. इस हत्या के बाद चुनाव रद्द हो गया. दांगी पर अमरीक सिंह की हत्या का आरोप लगा.

जब दांगी को पुलिस गिरफ्तार करने उनके गांव मदीना गांव पहुंची तो उनके समर्थकों ने पुलिस पर ही हमला बोल दिया. इस पर पुलिस ने फायरिंग कर दी. इसमें 10 लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हुए थे.दांगी ने एक इंटरव्यू में आरोप लगाया कि रोहतक के तत्कालीन एसपी ने उनपर गोलीबारी की थी लेकिन वह बच निकले थे. उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री ओपी चौटाला थे. 

महम सीट पर तीसरी बार आया फैसाल
महम विधानसभा सीट पर दो बार उपचुनाव को रद्द करना पड़ा. मई 1991 में तीसरी बार इस सीट पर चुनाव कराया गया, तब जाकर फैसला आया. हालांकि उस चुनाव में आनंद सिंह दांगी तो चुनाव मैदान में थे लेकिन ओपी चौटाला ने चुनाव नहीं लड़ा था. दांगी कांग्रेस पार्टी से उम्मीदवार थे तो वहीं  लोकदल ने सूबे सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया था. दो बार चुनाव में हिंसा झेल चुकी जनता देवीलाल और ओपी चौटाला से काफी नाराज थी. इस चुनाव में दांगी की जीत हुई.

सूबे सिंह को हार का सामना करना पड़ा. सूबे की हार सिर्फ उनकी नहीं थी बल्कि यह देवीलाल और चौटाला की हार थी. ओमप्रकाश चौटाल इसके बाद कभी भी महम विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में नहीं कूदे. उधर, महम उपचुनाव में कई लोगों की हत्या के बाद केंद्र की वीपी सिंह सरकार भी दबाव में आ गई. हरियाणा की ओपी चौटाला सरकार जनता दल के लिए किरकिरी बन गई. देवीलाल के विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री वीपी सिंह ओपी चौटाला के इस्तीफे पर अड़ गए. 22 मई 1990 को ओमप्रकाश चौटाला को हरियाणा के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा. 

 

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