Silent Voting: Haryana में क्यों हुई साइलेंट वोटिंग, BJP के माइक्रो मैनेजमेंट से कैसे पिछड़ गई Congress, एक्सपर्ट से जानिए

Haryana Election Results 2024: हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने तीसरी बार जीत हासिल की है. इस बार चुनाव में साइलेंट वोटिंग हुई है. दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलत राम कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कुणाल कृष्ण ने बताया कि हरियाणा में इस बार का चुनाव जाटों पर केंद्रित था. कांग्रेस जाटों के साथ खड़ी नजर आ रही थी. जिससे ओबीसी और दलित खुद को उपेक्षित महसूस करने लगे. इसका फायदा बीजेपी ने उठाया और खुद को इन वर्गों के साथ खड़ा महसूस कराया. इसलिए इन वर्गों ने बीजेपी के पक्ष में साइलेंट वोटिंग की.

JP Nadda and Nayab Singh Saini (Photo/PTI)
शशिकांत सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 09 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 6:23 PM IST

हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ी जीत मिली है. बीजेपी के 48 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है. जबकि कांग्रेस के खाते में 37 सीटें आई हैं. बीजेपी सूबे में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है. इस बार के चुनाव में सियासी दल, एक्सपर्ट, सर्वे एजेंसियां भी इसका अनुमान नहीं लगा पाईं कि बीजेपी बहुमत हासिल कर पाएगी. इस बार हरियाणा में साइलेंट वोटिंग हुई है. आखिर क्यों साइलेंट वोटिंग होती है? इसके पीछे क्या वजह है? हरियाणा में बीजेपी को इतनी बड़ी जीत कैसे मिली? कुमारी सैलजा और विनेश फोगाट समेत जाट, ओबीसी और दलित समुदाय का चुनाव में क्या असर हुआ? हमने दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलत राम कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कुणाल कृष्ण (Assistant Professor Dr. Kunal Krishna) से इन तमाम सवालों के जवाब जानने की कोशिश की. चलिए उनसे हुए सवाल-जवाब के बारे में बताते हैं.

सवाल- अक्सर काउंटिंग से पहले चुनाव की हवा के बारे में अनुमान लगा लिया जाता है. लेकिन कई बार साइलेंट वोटिंग होती है. जिसको समझ पाने में सर्वे एजेंसियां तक नाकाम होती हैं. साइलेंट वोटिंग को आप किस तरह से देखते हैं?

जवाब-  हरियाणा में एक माहौल बना था कि जाट बीजेपी सरकार से नाराज है. ये मुद्दा इतना बड़ा हो गया कि बाकी वर्ग के लोगों को लगा कि कांग्रेस हमारी बात ही नहीं कर रही है. इस मौके को बीजेपी ने भुनाया और खुद को ओबीसी, दलित और बाकी वर्गों से जुड़ाव महसूस कराया. इन वर्गों के ज्यादातर लोगों ने चुपचाप बीजेपी के पक्ष में वोट डाला. इस अंडर करंट को सियासी दल, एक्सपर्ट्स और सर्वे एजेंसियां तक नहीं समझ पाईं.

सवाल- हर चुनाव में साइलेंट वोटिंग देखने को नहीं मिलती है. चुनाव से पहले सर्वे के ट्रेंड से पता चल जाता है कि चुनाव में क्या होने वाला है? लेकिन कई बार साइलेंट वोटिंग से नतीजे पूरी तरह से पलट जाते हैं. आखिर कभी-कभी चुनाव में साइलेंट वोटिंग क्यों होती है. इसके पीछे किस चीज को वजह मानते हैं?

जवाब- अक्सर साइलेंट वोटिंग ऐसे चुनाव में होती है, जिसमें जनता को किसी ताकतवर या प्रभावशाली वर्ग को जवाब देना होता है. वोटर ये भी नहीं चाहता है कि कोई समझ पाए कि किसको वोट हुआ है और ताकतवर की हार भी हो जाए. इसको लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश और अब हरियाणा विधानसभा चुनाव के जरिए समझा जा सकता है. लोकसभा चुनाव में हर सर्वे एजेंसी यूपी में बीजेपी को अधिकतम सीटें दे रही थीं. लेकिन नतीजे कुछ और सामने आए. जनता बीजेपी को सीख देना चाहती थी और चुपचाप वोट डाल दिया. उस चुनाव में सवर्ण जातियां मुखर थीं. लेकिन ओबीसी वर्ग के वोटर्स ने साइलेंट वोटिंग की. इसी तरह से हरियाणा का पूरा चुनाव जाटों पर केंद्रित था. टीवी, अखबार से लेकर सोशल मीडिया तक पर जाटों केे मुद्दे हावी रहे. कांग्रेस को जाटों के समर्थक के तौर पर देखा गया. हरियाणा में जाटों को प्रभावशाली वर्ग माना जाता है. बाकी जातियों को ये नागवार गुजरा कि उनकी बात ही नहीं हो रही है. ऐसे में इन वर्गों ने बीजेपी के पक्ष में साइलेंट वोटिंग की.

सवाल- हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस के वोट परसेंटेज में सिर्फ 0.85 फीसदी का अंतर है. क्या बीजेपी का माइक्रो मैनेजमेंट जीत का आधार बना? क्या कांग्रेस इसे समझने में नाकाम रही.

जवाब- हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस को मिले वोटों में मामूली अंतर है. बीजेपी को सिर्फ 0.85 फीसदी ज्यादा वोट मिले हैं. सूबे में बीजेपी की जीत में कई फैक्टर्स ने अहम भूमिका निभाई. लेकिन इसमें बीजेपी का माइक्रो मैनेजमेंट सबसे अहम रहा. बीजेपी ने कई रैलियां भी की. लेकिन उनका फोकस डोर टू डोर कैंपेन पर था. बीजेपी ने घर-घर जाकर अपने काम को गिनाया और जनता को यह समझाने में कामयाब रही कि असली विकास बीजेपी ही कर रही है. बीजेपी ने कई सीटों पर जाट और गैर-जाट की रणनीति अपनाई. एक-एक चीजों का ध्यान दिया. जिसका फायदा नतीजों में दिखाई दिया.

सवाल- लगातार तीसरी बार बीजेपी को सत्ता तक पहुंचाने में  क्या दलित वोटर्स की अहम भूमिका रही? कांग्रेस में दलित लीडर कुमारी सैलजा को लेकर असमंजस की स्थिति का फायदा बीजेपी को मिला?

जवाब- हरियाणा में कांग्रेस की रणनीति जाट केंद्रित रही. उनका प्रचार-प्रसार भी इस तरह से हुआ कि लोगों को लगा कि वो सिर्फ जाटों की बात कर रहे हैं. पार्टी की दलित लीडर कुमारी सैलजा के बयानों ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी. कुमारी सैलजा ने जिस तरह से कहा कि वो चुनाव लड़ना चाहती थीं. इससे जनता में संदेश गया कि पार्टी में उनको सम्मान नहीं मिल रहा है और दूसरी तरफ बीजेपी ने दलितों पर फोकस किया. जिसका फायदा पार्टी को हुआ.

सवाल-  क्या विनेश फोगाट को लेकर अधिक एक्टिव रहना कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हुआ. क्या कांग्रेस इस मामले से जितना जाटों से जुड़ती गई, उतना ही ओबीसी और दूसरे वर्गों से दूर होती गई?

जवाब- विनेश फोगाट के मामले को कांग्रेस ने इतना हाईलाइट किया कि जनता में मैसेज चला गया कि पार्टी को सूबे के बाकी वर्गों की कोई परवाह नहीं है. सोशल मीडिया, टीवी में भी विनेश और कांग्रेस का मुद्दा दिखाई दिया. उसी समय बीजेपी डोर टू डोर कैंपेन के जरिए ओबीसी और दलित वर्गों तक पहुंच रही थी और खुद को उनसे जुड़ा महसूस करा रही थी. इस चुनाव में कांग्रेस कभी भी मजबूती से ओबीसी और दलितों की बात करती नहीं दिखी. इन सबके बावजूद कांग्रेस का ओवर-कॉन्फिडेंस भी हार की वजह रही.

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