हिमाचल प्रदेश की सियासत में शुरुआती दौर में कांग्रेस का एकछत्र राज रहा. लेकिन कांग्रेस का तिलिस्म उस वक्त टूटा, जब पहली बार जनता पार्टी ने सूबे की कमान संभाली. शांता कुमार हिमाचल प्रदेश के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने. शांता कुमार ने दो बार सूबे की कमान संभाली. पहली बार साल 1977 और दूसरी बार 1990 में मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली. शांता कुमार कई दशकों तक सियासत में सक्रिय रहे और बीजेपी के दिग्गज नेताओं में उनकी गिनती होती है. शांता कुमार ने 2019 का विधानसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया और एक तरह से सियासत से संन्यास ले लिया. चलिए आपको बीजेपी के इस दिग्गज नेता के सियासी कहानी बताते हैं.
शांता कुमार का बचपन-
हिमाचल प्रदेश के कांगना में शांता कुमार का जन्म 12 सितंबर 1934 को हुआ था. उनकी माता का नाम कौशल्या देवी और पिता का नाम जगन्नाथ शर्मा है. शांता कुमार ने जेबीटी की पढ़ाई की और उसके बाद एक स्कूल में टीचिंग का काम करने लगे. लेकिन जल्द ही टीचिंग से उनका मोहभंग हो गया. वो दिल्ली चले गए और वहां संघ के साथ काम करने लगे. हालांकि उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी और ओपन यूनिवर्सिटी से वकालत की डिग्री हासिल की.
पंचायत से सियासी शुरुआत-
शांता कुमार ने सियासी पारी की शुरुआत पंचायत से की. उन्होंने पहली बार साल 1963 में गढ़मूला पंचायत में जीत हासिल की और पंचायत समिति के भवारना से सदस्य नियुक्त किए गए. इसके बाद शांता कुमार ने राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 1965 में शांता कुमार कांगड़ा जिला परिषद के अध्यक्ष चुने गए. वे इस पद पर साल 1970 तक रहे.
जेल गए शांता कुमार-
शांता कुमार आंदोलन से भी जुड़े रहे. वो जम्मू-कश्मीर आंदोलन में सत्याग्रह किया और सिर्फ 19 साल की उम्र में 8 महीने जेल में गुजारा. शांता कुमार की जेल यात्रा यहीं नहीं रूकी. इमरजेंसी के दौरान भी शांता को कुमार जेल जाना पड़ा. साल 1975 में देश में आपातकाल लग गया. इस दौरान बड़े नेताओं को पुलिस ने गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया. शांता कुमार को भी गिरफ्तार कर लिया गया और नाहन जेल भेज दिया गया. 19 महीनों तक शांता जेल में रहे और जब आपातकाल हटा तो उनकी किस्मत बदल गई.
पहली बार सीएम बने शांता-
21 मार्च 1977 को आपातकाल खत्म कर दिया गया था. आपातकाल के बाद साल 1977 में विधानसभा चुनाव हुए. इसमें कांग्रेस बुरी तरह से हार गई. कांग्रेस को सिर्फ 9 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. जनता पार्टी को 53 सीटों पर जीत मिली थी. 6 निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी जनता पार्टी को मिल गया. लेकिन जब विधायक दल का नेता चुनने का मौका आया तो जनता पार्टी में दो गुट आमने-सामने आ गए. विधायकों की वोटिंग कराई गई. शांता कुमार और ठाकुर रणजीत सिंह को 29-29 विधायकों का समर्थन मिला. शांता कुमार ने अपना वोट खुद को दिया और उनके समर्थकों की संख्या 30 हो गई. जबकि ठाकुर रणजीत सिंह सांसद थे. इसलिए उनका कोई वोट नहीं था. इस तरह से शांता कुमार हिमाचल प्रदेश के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बन गए. लेकिन वो ज्यादा दिन तक इस पद पर बने नहीं रह पाए. पार्टी में टूट की वजह से 14 फरवरी 1980 को उनको इस्तीफा देना पड़ा.
दूसरी बार सीएम बने शांता-
साल 1982 में शांता कुमार कुमार दूसरी बार विधायक बने और नेता प्रतिपक्ष बनाए गए. साल 1985 में विधानसभा चुनाव हार गए तो साल 1986 में उनको बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. साल 1990 में हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जीत मिली. इसके साथ ही शांता कुमार भी विधायक बने. इस बार बीजेपी ने उनको अपना नेता चुन लिया और 5 मार्च 1990 को दूसरी बार सूबे के सीएम बने. लेकिन इस बार भी वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. 15 दिसंबर 1992 को सूबे में राष्ट्रपति शासन लग गया.
केंद्र की सियासत में शांता कुमार-
शांता कुमार ने साल 1993 में सुलह विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा. लेकिन वो हार गए. इसके बाद शांता कुमार ने केंद्र की राजनीति में कदम रखा. अटल सरकार में शांता कुमार उपभोक्ता मामलों के मंत्री बने. साल 1999 से 2002 तक वो ग्रामीण विकास मंत्री भी रहे.
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