'गुस्सा...ग़म...ओवर कॉन्फिडेंस...काउंटर पोलराइजेशन', वादी में कमल मुरझाया, जाटलैंड में गैरजाट गुगली से कांग्रेस बोल्ड...

आतंक और डर के आगे जम्मू कश्मीर में लोगों ने बढ़-चढ़कर वोटिंग की. जबरदस्त मतदान ने साबित किया कि जम्हूरियत पर जनता का कितना भरोसा है. वहीं, हरियाणा में यह माना जा रहा था कि कांग्रेस क्लीन स्वीप करते हुए एकतरफा जीत हासिल करेगी.

उमर अब्दुल्ला, नायब सैनी और भूपेंद्र हुड्डा
अनुज खरे
  • नई दिल्ली,
  • 08 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 3:35 PM IST

हर आदमी मे होते हैं दस-बीस आदमी,
जिस को भी देखना हो कई बार देखना...

हरियाणा, जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनावों के नतीजों को देखकर निदा फ़ाजली का यह शेर बड़ा मौजूं सा लगता है. माशूका क्या सोचती है? जनता के दिल में क्या है? यह जानना समझना टेढ़ी खीर है. जनता के किसी फैसले के पीछे क्या वजह होती हैं? यह जानना भी आसान नहीं है. नतीजे कुछ ऐसा ही दिखा रहे हैं. हालांकि यह बात भी है कि जनता के फैसले आपको सरप्राइज ज़रूर कर सकते हैं लेकिन Disappoint नहीं करते. कुल मिलाकर यही जनमत की खूबसूरती है. ऐसा ही इस बार भी दिखा.

आतंक और डर के आगे जम्मू कश्मीर में लोगों ने बढ़-चढ़कर वोटिंग की. जबरदस्त मतदान ने साबित किया कि जम्हूरियत पर जनता का कितना भरोसा है. वहीं, हरियाणा में यह माना जा रहा था कि कांग्रेस क्लीन स्वीप करते हुए एकतरफा जीत हासिल करेगी. सभी एग्जिट पोल हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनने की बात कह रहे थे. लेकिन जनता यहां भाजपा की हैट्रिक बनवाते हुए नजर आ रही है. हरियाणा के नतीजों ने चौंकाया वहीं जम्मू कश्मीर के परिणाम लगभग अनुमान के मुताबिक ही रहे.

आइए, पहले समझते हैं कि हरियाणा चुनाव में प्रमुख मुद्दे क्या थे. मोटे तौर पर ऐसा माना जा सकता है कि वहां चुनाव इन 5 मुद्दों के इर्द-गिर्द घूम रहा था...

1. बीजेपी सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी
2. किसानों का गुस्सा, केंद्र सरकार की उपेक्षा
3. पूर्व सीएम मनोहरलाल खट्टर की अलोकप्रियता
4. खिलाड़ियों के खिलाफ अन्याय पर रोष
5. अग्निवीर योजना पर आक्रोश
अब जो परिणाम आया है उससे साफ है कि भले ही प्रचार में ये मुद्दे हावी रहे हों लेकिन परिणाम की वजह कोई दूसरे ही फैक्टर बन गए...
|
कांग्रेस पर ओवर कॉन्फिडेंस भारी, काउंटर पोलराइजेशन से हारी!
ऐसा माना जा सकता है कि कांग्रेस को जिस तरह से भाजपा सरकार के खिलाफ जनता के गुस्से का फीडबैक मिला उसे लेकर वो बहुत ओवर कॉन्फिडेंस में थी. यही ओवर कॉन्फिडेंस कहीं न कहीं पार्टी पर भारी पड़ गया. कांग्रेस को उम्मीद थी कि जाट बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर उन्हें वोट करेंगे. जाटों की राज्य में आबादी लगभग 25% फीसदी है. लगभग 40 सीटों पर उनका सीधा प्रभाव है. कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का गुस्सा, विनेश फोगाट, साक्षी मलिक जैसे खिलाड़ियों के खिलाफ हुए अन्याय पर रोष, पिछली दो सरकारों में जाटों की उपेक्षा का दंश... जैसी वजहों से जाट भाजपा के खिलाफ थे.

उनके इस गुस्से को कांग्रेस अपने पक्ष में मानकर चल रही थी. इन सभी बातों से कांग्रेस को लगा कि जाटों का एकमुश्त वोट उन्हें ही जाने वाला है. लेकिन वे यह नहीं समझ पाए कि भाजपा ने पिछली दो सरकारें इन्हीं जाटों के खिलाफ गैर जाट जातियों को एकजुट करके बनाई थीं. इस बार भी यही हुआ. जैसा ही जाटों की एकजुटता के बारे में गैर जाट जातियों को अहसास हुआ वे काउंटर पोलराइज हो गईं. जबकि इस बार भी जाट वोट बांटने के लिए जेजेपी, इनेलो जैसी पार्टियां भी मैदान में थीं.

`नायब ` दांव से काटी एंटी इनकंबेंसी पूर्व सीएम खट्टर की अलोकप्रियता को भी भाजपा ने भांप लिया था. नायब सिंह सैनी को सीएम बनाकर इस मुद्दे को खत्म करने की कोशिश की गई. गुजरात में यह प्रयोग भाजपा कर चुकी थी. जब पहली बार के विधायक भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाकर तत्कालीन सीएम रुपाणी के खिलाफ चल रहा लोगों का गुस्सा खत्म करने की कोशिश हुई थी. परिणाम बताते हैं यह दांव भी भाजपा के पक्ष में काम कर गया. सैनी ने ना सिर्फ खट्टर सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को कम किया बल्कि वे पिछड़ी जाति के वोट को भाजपा के पक्ष में लाने में सफल रहे.

बीजेपी ने यह भी सावधानी रखी कि पूरे इलेक्शन में कहीं भी खट्टर दिखाई न दें. उन्हें पूरे कैंपेन से दूर रखा गया. सैनी ने पिछड़ा वर्ग के लिए कई योजनाएं शुरू कीं जिन्हें केंद्र सरकार की गरीब कल्याण और किसानों को फायदा पहुंचाने की योजनाओं की बहुत मदद मिली.ऐसा मानने में भी कोई गुरेज नहीं है कि डायरेक्ट बेनेफिट वाली इन योजनाओं ने हरियाणा की भाजपा सरकार की बहुत मदद की.

सैलजा के बहाने टारगेट पर दलित सम्मान
चुनाव के बाद से लगातार भाजपा सैलजा के बहाने दलित उपेक्षा की बात कर रही थी. सैलजा को दलित आत्म सम्मान का मुद्दा बना रही थी. सैलजा भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधकर भाजपा के कैंपेन को अघोषित तौर पर मदद ही कर रही थीं. हालांकि वोटिंग के पहले जरूर उन्होंने कुछ बयान पार्टी के फेवर में दिए. लेकिन कांग्रेस वक्त पर सैलजा को साधने में कामयाब नहीं हो पाई. इसी तरह ऐसा माना जा सकता है कि इनेलो, जेजेपी और बसपा, आजाद समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियों के गठबंधन ने भी दलितों के वोट काटे. इससे भाजपा को कहीं न कहीं फायदा जरूर पहुंचा.

काश! AAP हमारे होते...
हरियाणा में आप का कांग्रेस के साथ अलायंस नहीं हो पाया. आप जितनी सीटें राज्य में मांग रही थी कांग्रेस उतनी देने को तैयार नहीं थी. इससे समझौता नहीं हो पाया. आप ने अपनी तरफ से राज्य की सभी सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए. चूंकि आप और कांग्रेस का वोट लगभग एक ही तबके से आता है. इन वोटों में कहीं न कहीं AAP ने सेंध लगा दी. कई सीटों पर हार-जीत में आप के पक्ष में गए वोटों ने भी बड़ी भूमिका निभाई. जिन सीटों पर कम मार्जिन से हार-जीत हुई है. वहां आप ने इन डायरेक्टली भाजपा को फायदा पहुंचा दिया.

हिन्दी बेल्ट में भाजपा का गढ़ फिर अभेद
भाजपा हिन्दी बेल्ट के राज्यों में सामान्यतः जोरदार प्रदर्शन करती है. एक तरह से मध्य प्रदेश, यूपी, राजस्थान, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्य उसके अभेद गढ़ बन चुके हैं. उसका इन राज्यों में अच्छा खासा लॉयल वोट बैंक बन चुका है. यदि पिछले लोकसभा चुनावों के प्रदर्शन को छोड़े दें तो भाजपा ने पिछले एक दशक से हरियाणा में भी जबरदस्त प्रदर्शन किया है. यही प्रदर्शन वो इस चुनाव में भी दोहराने में सफल रही.

जम्मू-कश्मीर में क्या हुआ...
यहां भी चुनाव इन मुद्दों के इर्द-गिर्द घूम रहा था...

1.भाजपा की नीतियों के खिलाफ रोष
2.जम्मू-कश्मीर से पूर्ण राज्य का दर्जा छीनने का मामला
3.बेरोजगारी बढ़ने का मुद्दा
4.दस वर्ष तक जम्मू-कश्मीर की उपेक्षा करने का आरोप
5.370 के खिलाफ रोष
6.राज्यपाल की बढ़ी हुई शक्तियां

वहीं, भाजपा के मुद्दे थे-
1. कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस के पाकिस्तान से संबंध
2. अब्दुल्ला और कांग्रेस का परिवारवाद
3. कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस के लोगों से झूठे वायदे

जम्मू कश्मीर का परिणाम देखें तो साफ समझ में आता है कि यहां पॉकेट्स में ही मुद्दे और वोटिंग हुई है. यानी घाटी के मुद्दे अलग रहे. वहीं जम्मू में किन्हीं और मुद्दों ने काम किया. मौटे तौर पर देखें तो कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस की जीत में उनकी कुछ बातों का योगदान माना जा सकता है.

स्मार्ट इलेक्शन स्ट्रेटजी, कांग्रेस गठबंधन की धुरी
परिणाम यह भी बता रहे हैं कि स्मार्ट इलेक्शन स्ट्रेटजी, सीटों का सही तरीके से बंटवारा, वोट ट्रांसफर करने में सफलता विनिंग कैंडिडेट का चयन ये सभी फैक्टर मिलकर भाजपा से जीतने की रेसिपी बन सकते हैं. इसे आगे के चुनावों में रिप्लीकेट करने की भी कोशिश की जाएगी. जहां हरियाणा में क्षेत्रीय दल इंडियन नेशनल लोकदल (INLD), जननायक जनता पार्टी (JJP) जैसी पार्टियां कुछ खास हासिल नहीं कर पाईं. वहीं जम्मू-कश्मीर में लगभग अनुमान के आसपास आए परिणामों ने गठबंधन की राजनीति को और मजबूत बनाने की दिशा में एक कदम और बढ़ा दिया है.

वादी में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कांग्रेस के साथ मिलकर सत्ता पाने में कामयाब पाई. इस जीत से INDIA ब्लॉक राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत होगा. कांग्रेस को फायदा पहुंचेगा. कांग्रेस गठबंधन की धुरी के रूप में सामने आएगी. भाजपा विरोधी पार्टियां कांग्रेस के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन बनाने के लिए आगे आएंगी. हालांकि इस जीत के साथ ऐसा भी माना जा सकता है कि धारा 370 का मुद्दा फिर उभरता हुआ दिखेगा. नेशनल कॉन्फ्रेंस को फिर से राजनीतिक प्राणवायु मिलेगी. पीडीपी को अपने मुद्दे, आधार वोट बैंक, कार्यशैली पर फिर से विचार करने पर मजबूर होना पड़ेगा.

वादी से मिलेगी ब्रॉन्ड राहुल को मजबूती
जम्मू कश्मीर की जीत से राहुल को भी फायदा पहुंचेगा. भारत जोड़ो यात्रा के बाद से ही राहुल अपना ब्रॉन्ड बनाने की कोशिश कर रहे हैं. जिस तरह से वे विपक्ष के नेता के रूप में अपनी पारी को खेलने की कोशिश कर रहे हैं. इस जीत से उनकी उस इमेज को बढ़ाने में जरूर ही मदद मिलेगी.

महाराष्ट्र-झारखंड चुनावों में दोनों पार्टियों को बूस्टअप इन नतीजों का असर महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों पर भी पड़ेगा, जहां जल्द ही चुनाव होने की उम्मीद है. हालांकि महाराष्ट्र और झारखंड में भाजपा को जहां हरियाणा की जीत से फायदा मिलेगा वहीं कांग्रेस को भी जम्मू-कश्मीर की जीत से बूस्टअप मिलने की उम्मीद रहेगी.

Read more!

RECOMMENDED