Haryana Election 2024: हरियाणा में जाट के ठाट! 90 में से 32 सीटों पर जीत-हार का फैसला इनके पास, 17 और सीटें पर भी नहीं किया जा सकता नजरअंदाज, बीजेपी-कांग्रेस, INLD-JJP में से आखिर यह समुदाय किसके साथ?

Haryana Assembly Election 2024: इस बार हरियाणा विधानसभा का चुनावी दंगल जबरदस्त होने वाला है. मुकबला कांटे का होगा. जीत की राह यदि बीजेपी के लिए मुश्किल है तो कांग्रेस के लिए भी उतनी आसान नहीं है. हरियाणा की आबादी में जाटों की आबादी 27 फीसदी है. इस विधानसभा चुनाव में जाट वोट कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल और जेजेपी में बंटने की संभावना है. भाजपा इस उम्मीद में है इसका फायदा उसे मिलेगा. 

Haryana Election 2024:
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 13 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 3:21 AM IST
  • हरियाणा में जाटों के बाद सबसे ज्यादा हैं एससी मतदाता 
  • प्रदेश के राजनीतिक दल बना रहे जातीय समीकरण

Jat Vote: हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Assembly Election) 5 अक्टूबर 2024 को होने हैं. भारतीय जनता पार्टी (BJP) जहां जीत की हैट्रिक लगाने में जुटी है तो वहीं कांग्रेस विधानसभा चुनाव 2014 और 2019 के नतीजों से सबक लेते हुए इस बार कोई चूक नहीं करना चाहती. उधर, इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) और जननायक जनता पार्टी (JJP) जैसे क्षेत्रीय दल भी जीत दर्ज करने के लिए चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं. 

इस बार चुनाव में देखने को मिलेगी कांटे की टक्कर 
हरियाणा में चुनाव हो और जाट की बात न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. जी हां, क्योंकि राज्य में इस समुदाय की सबसे ज्यादा संख्या है. कुल आबादी में 27 फीसदी संख्या जाटों की है. हरियाणा विधानसभा की कुल 90 विधानसभा सीटों में से 32 सीटों पर सीधे तौर पर उम्मीदवारों की जीत-हार का फैसला जाट समुदाय के लोग ही करते हैं. इसके अलावा 17 और सीटें पर भी इस जाति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. इस तरह से इस जाति का लगभग 50 सीटों पर प्रभाव है. कहा जा रहा है कि इस बार जाट बीजेपी से नाराज हैं तो क्या इसका फायदा सीधे कांग्रेस को होगा? ऐसा तो नहीं दिख रहा है क्योंकि विधानसभा चुनाव में जाट वोट बंटने की संभावना है. 

अभय चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) और दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (JJP) भी चुनावी मैदान में हैं. इन दोनों स्थानीय पार्टियों का भी जाट समुदाय पर अच्छी पकड़ है. ऐसे में वोट बंटने की पूरी संभावना है. यदि ऐसा होता है तो भाजपा को फायदा मिल सकता है. बहरहाल, इसका पता तो 5 अक्टूबर को वोटिंग के बाद 8 अक्टूबर 2024 को मतों कि गिनती के बाद चल जाएगा. लेकिन एक बात तो तय है कि इस बार चुनाव में कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी. जीत की राह यदि बीजेपी के लिए मुश्किल है तो कांग्रेस के लिए भी उतनी आसान नहीं है. 

बीजेपी को अपने वोट से ज्यादा भरोसा है जाट वोट के बंटने पर 
इस विधानसभा चुनाव में भाजपा अकेले चुनावी संग्राम को फतह करने की फिराक में है. बीजेपी और जेजेपी गठबंधन टूट गया है. हालांकि कुछ राजनीति के जानकारों का मानना है कि जेजेपी से गठबंधन नहीं करना बीजेपी की रणनीति हो सकती है क्योंकि जेजेपी की पकड़ जाट समुदाय पर अच्छी-खासी है. इस चुनाव में बीजेपी को अपने वोट से ज्यादा भरोसा जाट वोट के बंटने पर है. इसी वजह से लोकसभा चुनाव में भी जेजेपी से गठबंधन तोड़ लिया था. भाजपा इस बार दलित और गैर जाट वोटों को साधने की कोशिश में लगी है. हरियाणा में अधिकतर किसान जाट हैं. किसानों का विरोध प्रदर्शन और उस पर केंद्र सरकार ने जैसी प्रतिक्रिया दी, उसे किसान बीजेपी से नाराज हैं. भाजपा का साथ देने के कारण जेजेपी से भी जाट दूरी बनाए हुए हैं. 

महिला पहलवानों के साथ हुए व्यवहार से भी जाट बीजेपी से दूर हुए हैं. इसके अलावा जाटों का आरोप है कि केंद्र में 2024 में बीजेपी ने प्रदेश से एक भी जाट को मंत्री नहीं बनाया. मनोहर लाल खट्टर पंजाबी, कृष्ण्पाल सिंह गुज्जर और राव इंद्रजीत यादव हैं. पिछड़े वर्ग के वोटर्स पर निर्भरता और जाटों की अनदेखी के आरोपों के चलते जाट समुदाय और भगवा पार्टी के बीच दूरियां बढ़ रही हैं. इनसब के बावजूद बीजेपी ने कई जाटों को इस विधानसभा चुनाव में टिकट दिया है. बीजेपी स्थानीय जाट नेताओं से जुड़ने की कोशिश कर रही है.

2019 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के लिए जाट वोटरों को ही जिम्मेदार माना गया था. उसके 6 जाट उम्मीदवारों में से 5 चुनाव हार गए थे. बीजेपी के पास एक दिक्कत ये भी है कि उसके पास मजबूत या प्रभावशाली जाट नेता नहीं है. बीजेपी को मुख्य रूप से गैर-जाटों का समर्थन मिलता रहा है. पिछले दो लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने इन गैर-जाट समुदायों को लुभाकर जाटों के प्रभाव को हाशिये पर धकेल दिया. हालांकि, बीजेपी जाटों को पूरी तरह से नजरअंदाज करने की कोशिश नहीं कर सकती क्योंकि ऐसा करने पर उसे काफी नुकसान हो सकता है. 

कांग्रेस जाट और दलितों को साधकर सत्ता हासिल करने की कवायद में 
कांग्रेस जाट और दलितों को साधकर सत्ता हासिल करने की कवायद में जुटी है. जाट मतदाताओं का रूझान अधिकांश समय कांग्रेस के पाले में रहा है. कांग्रेस के पास कई बड़े जाट नेता हैं जैसे भूपेंद्र सिंह हुड्डा, रणदीप सिंह सुरजेवाला और चौधरी बीरेंद्र सिंह. हालांकि बीरेंद्र सिंह का हुड्डा विरोधी माना जाता है और उनके कांग्रेस में आने से जाटों के थोड़ा छिटकने की भी संभावना है. 

उधर, जाटों पर पकड़ रखने वाली इंडियन नेशनल लोक दल ने मायावती की पार्टी बसपा (BSP) से गठबंधन किया है. जननायक जनता पार्टी ने चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ मिलकर चुनावी समर में है. लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव में भी जाट वोटों के कांग्रेस, आईएनएलडी और जेजेपी में बंटने की संभावना है. बीजेपी ग्रामीण हरियाणा में कुछ जाट बहुल सीटों में सेंधमारी करने की कोशिश में है. कांग्रेस और चौटाला परिवार में आंतरिक लड़ाई का बीजेपी को इस चुनाव में कुछ फायदा जरूर मिल सकता है. 

राज्य के कई बड़े जिलों पर जाटों की पकड़ अच्छी
हरियाणा में जाट के ठाट, ऐसा इसलिए हम कह रहे हैं क्योंकि राज्य के कई बड़े जिलों पर इस समुदाय की अच्छी पकड़ है. चाहे वह रोहतक हो, सोनीपत या पानीपत. कैथल, जींद, सिरसा, झज्जर, फतेहाबाद, हिसार और भिवानी में जाटों की अच्छी संख्या है. राज्य में सबसे अधिक संख्या जाटों के होने के कारण इसे जाटलैंड भी कहा जाता है.

33 साल तक जाट समुदाय के ही रहे हैं मुख्यमंत्री
पंजाब से साल 1966 में अलग होने के बाद जाट समुदाय का हरियाणा की राजनीति में प्रभुत्व रहा. इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि हरियाणा में 33 साल तक मुख्यमंत्री जाट समुदाय के ही रहे हैं. तीन जाट परिवारों देवीलाल, बंसीलाल और भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सबसे लंबे समय तक राज्य पर शासन किया है. दोवीलाल दो बार मुख्यमंत्री रहे. वह जनता दल सरकार के दौरान उप प्रधानमंत्री भी रहे थे.

बंसीलाल इंदिरा गांधी की सरकार में रक्षा और रेल मंत्री भी रहे हैं. भूपेंद्र हुड्डा के पिता रणबीर सिंह हुड्डा संविधान सभा के सदस्य रह चुके हैं. भूपेंद्र हुड्डा 10 साल तक मुख्यमंत्री रहे हैं. वह इस बार फिर सीएम की कुर्सी पर बैठने की आस में हैं. एक और प्रभावशाली जाट परिवारों में छोटू राम का परिवार भी है. उनके पोते बीरेंद्र सिंह केंद्रीय मंत्री रहे हैं. उधर, गैर-जाट मुख्यमंत्रियों में भगवत दयाल शर्मा और राव बीरेंद्र सिंह शामिल हैं. बिश्नोई समुदाय से भजन लाल, पंजाबी से मनोहर लाल खट्टर और मौजूदा सीएम नायब सिंह सैनी एक ओबीसी नेता हैं.

हरियाणा में क्या है जातियों की स्थिति
1. जाट: 27 प्रतिशत
2. अनुसूचित जाति: 21 प्रतिशत
3. पंजाबी : 8 प्रतिशत
4. ब्राह्मण: 7.5 प्रतिशत
5. अहीर : 5.14 प्रतिशत
6. वैश्य: 5 प्रतिशत
7. जाट सिख: 4 प्रतिशत
8. मुस्लिम: 3.8 प्रतिशत
9. राजपूत: 3.4 प्रतिशत
10. गुर्जर: 3.35 प्रतिशत
11. बिश्नोई: 0.7 प्रतिशत
12. अन्य: 15.91 प्रतिशत

चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के साथ कब और कितने जाट 
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2014 में कांग्रेस के साथ जाट 42 प्रतिशत रहे. उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में 40.7 प्रतिशत जाटों ने कांग्रेस उम्मीदवार को मतदान किया. इसके बाद विधानसभा चुनाव 2019 में 38.7 प्रतिशत और लोकसभा चुनाव में 39.8 प्रतिशत जाटों ने कांग्रेस प्रत्याशी को अपना मत दिया. उधर, विधानसभा चुनाव 2014 बीजेपी को जाट वोट 24 फीसदी मिला. उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में 32.9 फीसदी जाटों ने बीजेपी उम्मीदवार को अपना मत दिया. इसके बाद विधानसभा चुनाव 2019 में 33.7 फीसदी जाटों ने बीजेपी को वोट दिया. उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 42.4 फीसदी जाटों ने अपना मत दिया.
 

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