Jharkhand Assembly Election 2024: आखिर झारखंड में आदिवासी वोटर्स क्यों हैं खास... किस पार्टी को मिलेगा इस समाज का साथ... कौन-कौन से हैं प्रमुख मुद्दे... जानिए पूरी डिटेल

Jharkhand Election 2024: झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 का ऐलान हो चुका है. इस राज्य में आदिवासी समुदाय सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इसी को देखते हुए बीजेपी, जेएमएम, कांग्रेस से लेकर सभी छोटे-बड़े दलों का आदिवासी मतदाताओं पर पैनी नजर है. अब देखना है कि आदिवासी वोटर्स एनडीए या इंडिया गठबंधन, किसकी जीत की राह आसान बनाते हैं.

Jharkhand Assembly Election 2024
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 21 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 11:45 PM IST
  • झारखंड में 13 और 20 नवंबर को दो चरणों में होना है मतदान 
  • वोटों की गिनती 23 नवंबर को

Jharkhand Chunav 2024: झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 (Jharkhand Assembly Elections 2024) का बिगुल बज चुका है. इस राज्य में 13 और 20 नवंबर को दो चरणों में मतदान होगा और वोटों की गिनती 23 नवंबर 2024 को होगी. 23 नवंबर में तय हो जाएगा कि एनडीए (NDA) या इंडिया गठबंधन (India Alliance) में से किसकी सरकार बनेगी. झारखंड में आदिवासी वोटर्स सत्ता की चाबी माने जाते हैं. 

प्रायः हर विधानसभा चुनाव में देखने को मिला है कि आदिवासी समाज के लोगों को झुकाव जिस भी पार्टी की ओर होता है, सरकार उसकी बनती है. इसी को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी (BJP), झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), कांग्रेस (Congress) से लेकर सभी छोटे-बड़े दलों का आदिवासी मतदाताओं पर पैनी नजर है. आइए जानते हैं इस बार एनडीए और इंडिया गठबंधन में कौन-कौन सी पार्टियां शामिल हैं और आदिवासी मतदाताओं की कितनी सीटों पर दबदबा है? इसके साथ ही जानेंगे कि इस बार के प्रमुख मुद्दे कौन-कौन से हैं?

झारखंड में सीट शेयरिंग को लेकर हो चुका है NDA में समझौता 
सीट शेयरिंग को लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए में शामिल दलों में समझौता हो चुका है. बीजेपी 68 विधानसभा सीटें पर चुनाव लड़ रही है. ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU) को 10 सीट मिली है. बिहार के सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की पार्टी जेडीयू (JDU) के खाते में दो सीटें आई हैं. चिराग पासवान (Chirag Paswan) की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को एक सीट मिली है.

इंडिया गठबंधन का सीट शेयरिंग फॉर्मूला
सीट शेयरिंग को लेकर इंडिया गठबंधन में भी लगभग तस्वीर साफ हो चुकी है. अभी तक इंडिया गठबंधन का सीट शेयरिंग का जो फॉर्मूला सामने आया है, उसके मुताबिक झारखंड में कांग्रेस 29 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. जेएमएम 41 सीटों पर, आरजेडी 6, लेफ्ट 4 और अन्य पार्टी को एक सीट मिल सकती है. हालांकि इसमें अभी भी बदलाव हो सकता है.

कुल इतनी सीटों पर है आदिवासी मतदाताओं का है दबदबा
आपका मालूम हो कि झारखंड में कुल 81 विधानसभा सीटें हैं. इनमें से 43 सीटों पर आदिवासियों को दबदबा है. यहां 20 फीसदी से ज्यादा आदिवासी वोटर्स हैं. इतना ही नहीं इन 43 विधानसभा सीटों में से 22 सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासियों की जनसंख्या सबसे अधिक हैं.

हर चुनाव में देखा गया है कि आदिवासी वोटर्स एकमुश्त वोट करते हैं. इसका मतलब है कि इस समाज के लोग जिस भी पार्टी को वोट करते हैं, उसकी जीत पक्की मानी जाती है. इसी को देखते हुए छोटो-बड़े सभी दल इस आदिवासी समाज के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में जुटे रहते हैं. झारखंड में 28 सीटें एसटी के लिए सुरक्षित हैं. आदिवासी भी इसी कैटेगरी में आते हैं. इसको देखते हुए भी आदिवासी वोटर ही सत्ता की चाबी माने जाते हैं. 

कौन-कौन से हैं प्रमुख मुद्दे
हर चुनाव में आदिवासी समाज के लोगों के लिए जल, जंगल, जमीन और सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दे अहम रहे हैं. इस विधानसभा चुनाव में भी आदिवासियों की जमीन की सुरक्षा का मामला सर्वोपरि होगा. इसके अलावा स्थानीयता नीति को परिभाषित करने का मुद्दा भी खास रहेगा. सरना धर्म कोड का मुद्दा भी छाया रहेगा. आदिवासी समाज के लोग अपने लिए सरना धर्म कोड की मांग करते आ रहे हैं. आदिवासियों के लिए विस्थापन हमेशा से बहुत बड़ा मसला रहा है और इस चुनाव में भी वो मसला होगा. विस्थापन की वजह से रोजगार की भी समस्या उत्पन्न होती हैं.

पिछले चुनाव में ऐसा रहा था हाल
आपको मालूम हो कि विधानसभा चुनाव 2019 में एसटी रिजर्व 28 में से 26 सीटें महागठबंधन के हिस्से में गई थी. सिर्फ दो सीट तोरपा और खूंटी पर भाजपा जीत मिली थी. संथाल परगना की 9 एसटी सीटों में से एक पर भी बीजेपी को जीत नहीं मिली थी. सभी सीटों पर झामुमो उम्मीदवारों को विजय मिली थी. इतना ही नहीं कोल्हान में भी सभी सीटों पर  झामुमो की जीत मिली थी. लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी का प्रदर्शन आदिवासी बहुल सीटों पर अच्छा नहीं रहा है और वो सभी पांच सीट पर चुनाव हार गई थी. जेएमएम को तीन सीटों पर और कांग्रेस को दो सीटों पर जीत मिली थी. 

भाजपा को क्यों हैं आदिवासी समाज का साथ मिलने का भरोसा
विधानसभा चुनाव 2019 के नतीजे आने के बाद माना गया था कि प्रमुख आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी के अलग पार्टी बनाकर लड़ने से भाजपा को नुकसान हुआ था.  हालांकि अब मरांडी बीजेपी के साथ हैं. आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर भाजपा ने जो कार्ड चला था उसकी सबसे बड़ी परीक्षा भी झारखंड में ही होगी. इसके साथ ही ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन माझी आदिवासी समाज से आते हैं. 

ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास भी इसी समाज से हैं. इसका लाभ भी बीजेपी को मिलेगा. भाजपा आदिवासी समाज के लिए कई योजनाएं चला रही है. वह इस समाज के लोगों पर विशेष ध्यान दे रही है. इसके अलावा पिछले पांच सालों में झामुमो के कई कद्दावर नेता हेमंत सोरेन से अलग हो चुके हैं. शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन भी शामिल हैं. यह झामुमो के लिए सही नहीं है. इन्हीं सबको देखते हुए बीजेपी को भरोसा है कि इस बार आदिवासी समाज का साथ उसे ही मिलेगा.

जेएमएम ने भी कस ली है कमर 
सीएम हेमंत सोरेन भी आदिवासी और मूलवासी के मुद्दे को पूरे जोरशोर से उठा रहे हैं. झामुमो को भी विश्वास है कि हर बार कि तरह इस विधानसभा चुनाव में भी आदिवासी वोट्स उसे ही अपना मत देंगे. चूकि सीएम हेमंत सोरेन स्वयं आदिवासी समाज से आते हैं. जब वह जेल गए तो उनके समर्थकों का आरोप था कि भाजपा ने आदिवासी मुख्यमंत्री को साजिश के तहत फंसाकर जेल भेजा था. इस बात को विपक्षी दलों ने भी मुखरता से उठाया था, इसलिए भावनात्मक तौर पर आदिवासी समाज के लोग हेमंत सोरेन की पार्टी के साथ भी खड़े हो सकते हैं. उधर, ईसाई धर्म अपना चुके आदिवासियों का कांग्रेस की ओर झुकाव देखा गया है. 

 

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