Jharkhand Politics: झारखंड विधानसभा की कुल 81 सीटों के लिए 13 नवंबर और 20 नवंबर को मतदान होना है. चुनाव के नतीजे 23 नंवबर 2024 को घोषित किए जाएंगे. इस बार मुख्य मुकाबला एनडीए (NDA) में शामिल भारतीय जनता पार्टी (BJP) और इंडिया गठबंधन (India Alliance) से जुड़ी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के बीच है.
आज हम आपको जेएमएम के अध्यक्ष और मौजूदा समय में राज्यसभा के सांसद शिबू सोरेन (Shibu Soren) से जुड़ा एक किस्सा बताने जा रहे हैं. हम आपको बताएंगे कि कैसे सैकड़ों विधायक और दर्जनों सांसद बनाने वाले शिबू सोरेन के लिए उनके बेटे-बहू से लेकर दोस्तों तक ने अपनी विधानसभा सीट नहीं छोड़ी थी. इसके कारण दिशोम गुरु शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ गया था.
शिबू सोरेन पहली बार ऐसे बने थे झारखंड के सीएम
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को नेमरा (तत्कालीन हजारीबाग व वर्तमान में रामगढ़ जिला) गांव में हुआ था. शिबू सोरेन झारखंड के कुल तीन बार सीएम (CM) रह चुके हैं लेकिन वह कभी भी 6 महीने तक सीएम की कुर्सी पर नहीं रहे. पहली बार वह सीएम 2 मार्च 2005 को बने थे, लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण 10 दिन में ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ गया था. दरअसल, साल 2005 हुए विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. बीजेपी को सबसे अधिक 30 सीटें मिली थी.
एनडीए में शामिल नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) को 6 सीटों पर जीत मिली थी. इस तरह से एनडीए को कुल 36 सीटों पर जीत मिली थी. उधर, शिबू सोरेन की पार्टी JMM को कुल 17 सीटों पर विजय मिली थी. कांग्रेस के 9 विधायक जीते थे. इस तरह से यूपीए में शामिल जेएमएम और कांग्रेस को मिलाकर कुल 26 सीटों पर विजय मिली थी. उस समय केंद्र में यूपीए कि सरकार थी. झारखंड के राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी थे. एनडीए से सीट कम होने के बावजूद राज्यपाल ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था. शिबू सोरेन ने 2 मार्च 2005 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. हालांकि वह विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाए और उनकी सरकार 10 दिनों में ही गिर गई.
दूसरी बार ऐसे ली थी मुख्यमंत्री पद की शपथ
शिबू सोरेन की सरकार गिरने के बाद बीजेपी ने तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन से अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में सरकार बनाई. यह सरकार सितंबर 2006 में निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा व अन्य के समर्थन वापस लेने के बाद गिर गई. इसके बाद 18 सितंबर 2026 को निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा ने सीएम पद की शपथ ली. कोड़ा सरकार में जेएमएम, राजद, एनसीपी, फॉरवर्ड ब्लॉक शामिल रही. इस सरकार को कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिय था. कोयला घोटाला में फंसने के बाद मधु कोड़ा की कुर्सी चली गई. इसके बाद 28 अगस्त 2008 को शिबू सोरेन दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने.
जब कोई नहीं हुआ अपनी सीट छोड़ने को तैयार
शिबू सोरेन जब दूसरी बार सीएम बने थे तो उस समय वह विधायक नहीं बल्कि दुमका लोकसभा सीट से सांसद थे. मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए शिबू सोरेन को छह महीने के अंदर किसी विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर झारखंड विधानसभा का सदस्य बनने की संवैधानिक मजबूरी थी. उन्हें जीत के लिए एक सुरक्षित सीट की जरूरत थी. सैकड़ों विधायक और दर्जनों सांसद बनाने वाले शिबू सोरेन को लग रहा था उनके लिए कोई भी अपनी सीट छोड़ देगा लेकिन वह गलत थे.
उनके अपनों ने भी धोखा दिया. वरिष्ठ पत्रकार अनुज कुमार सिन्हा ने अपनी किताब में इस बात का उल्लेख किया है. उन्होंने 'झारखंड: राजनीति और हालात' नामक किताब में लिखा है कि शिबू सोरेन के लिए उस समय कोई भी सीट खाली करने को तैयार नहीं हुआ था. यहां तक कि बेटा हेमंत सोरेन और बहू भी अपनी सीट छोड़ने को राजी नहीं हुए थे. उनके जिगरी दोस्तों ने भी सीट छोड़ने से मना कर दिया था. उन्होंने कहा था कि जब आपके बेटे-बहू ने सीट खाली नहीं की तो हम क्यों करें?. किताब में लिखा है कि तब उनके ही विधायकों ने उनसे बोर्ड-निगम में पदों के लिए खूब बारगेनिंग की थी. चंपई सोरेन भी तब सरायकेला से झामुमो के ही विधायक थे.
उपचुनाव में मिली थी हार
जदयू विधायक रमेश सिंह मुंडा के निधन के बाद तमाड़ विधानसभा सीट पर उपचुनाव कराने का ऐलान हुआ. यूपीए ने गठबंधन की ओर से शिबू सोरेन को अपना उम्मीदवार बनाया. हालांकि शिबू सोरेन इस विधानसभा सीट से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे. वह जानते थे कि तमाड़ क्षेत्र मुंडा बहुल है. उन्हें यहां जीत दर्ज करने में परेशानी होगी. हालांकि मजबूरी में उन्होंने यहां से पर्चा दाखिल किया. शिबू के सामने झारखंड पार्टी के उम्मीदवार गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर चुनावी मैदान में थे.
8 जनवरी 2009 को चुनाव के नतीजे घोषित किए गए. इसमें मुख्यमंत्री शिबू सोरेन करीब 9 हजार मतों से उपचुनाव हार गए थे. इस तरह से शिबू सोरेन को दूसरी बार सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ गया. उन्होंने मुख्यमंत्री पद से 18 जनवरी 2009 को इस्तीफा दिया था. इसके बाद झारखंड में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा था. शिबू सोरेन तीसरी बार झारखंड के सीएम 30 दिसंबर 2009 को बने थे. इस बार भी उन्हें 5 महीने ही सीएम की कुर्सी पर बैठने का मौका मिला. उन्होंने 31 मई 2009 को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था.