सिद्धार्थनगर में काला नमक चावल पर सियासी घमासान, गौतम बुद्ध का प्रसाद बना चुनावी मुद्दा

उत्तर प्रदेश के स‍िद्धार्थनगर में काला नमक चावल को भगवान बुद्ध का प्रसाद माना जाता है. चुनावी हलचल के बीच यहां के किसान कहते हैं कि गौतम बुद्ध ने सोचा था कि यहां के किसानों का उद्धार हो, वैसे ही नेताओं को हमारे बारे में सोचना चाहिए.

इस चावल को भगवान बुद्ध के प्रसाद के तौर पर जाना जाता है
वरुण सिन्हा
  • सिद्धार्थनगर ,
  • 01 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 2:52 PM IST
  • 2500 हजार साल पहले गौतम बुद्ध ने यहां के लोगों को दिया था प्रसाद
  • सिद्धार्थनगर को गौतम बुद्ध की कर्मस्थली भी कहते हैं

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर को गौतम बुद्ध की कर्मस्थली भी कहते हैं. भगवान बुद्ध ने अपने जीवन के करीब 29 साल यहां ब‍िताए. कहते हैं क‍ि यहां से जाते हुए गौतम बुद्ध के यहां के लोगों को काला नमक चावल दिया और इसकी खेती करने को कहा. तब से अब तक यहां इसे भगवान बुद्ध के प्रसाद के तौर पर जाना जाता है. इस बार इसकी खेती करने वाले किसान और व्यापारी गौतम बुद्ध की दुहाई देकर अपने मुद्दों की बात रख रहे हैं.

इतिहास में कई बार वर्तमान को जोड़ने से भी भविष्य बेहतर होने की संभावना होती है. गौतम बुद्ध की कर्मस्थली सिद्धार्थनगर में भगवान बुद्ध ने करीब 29 साल गुजारे इसलिए इस स्थान को सिद्धार्थनगर नाम दिया गया. मान्यता है क‍ि गौतम बुद्ध ने जब ये स्थान छोड़ा तो उन्होंने जाते समय एक धान की फसल के बीज यहां के किसानों को दिए. इससे पहले यहां के किसानों ने उस फसल के बारे में नही सुना था. 

कहा जाता है क‍ि यहां का एक किसान काफी समय से गौतम बुद्ध की सेवा कर रहा था. भगवान बुद्ध ने उस क‍िसान को प्रसाद के तौर पर ये बीज दिए और उस इस प्रसाद को अपने खेतों में लगा लेने को कहा. तब से लेकर आज तक यहां के किसान इसी फसल से अपना जीवन यापन कर रहे हैं.

यहां के एक क‍िसान ने बताया, 'ये प्रसाद गौतम बुद्ध का है. हर कोई यहां फसल लगाने से पहले बुद्ध की आराधना करता है. उनका आशीर्वाद मिल जाए तभी फसल अच्छी होती है. 2500 साल पहले गौतम बुद्ध द्वारा दिये गए बीज से आज यहां सिद्धार्थनगर की जनता कुछ कमा पा रही है.

यहां काला नमक चावल को भगवान बुद्ध का प्रसाद माना जाता है. यहां के किसान कहते हैं कि गौतम बुद्ध ने सोचा था कि यहां के किसानों का उद्धार हो, वैसे ही नेताओं को हमारे बारे में सोचना चाहिए. यहां उगने वाले इस चावल की डिमांड नेपाल, म्यांमार, चीन, थाईलैंड तक में है. वहां भी इसे प्रसाद के तौर पर दिया जाता है, पर भारत में ये किसान फिलहाल अभी भी आने आगे बढ़ने के रास्ते तलाश रहे हैं.

यहां के क‍िसान कहते हैं, 'हमें सिर्फ इतना कहना है कि हमारी आधी फसल को सही दाम तो मिलता है लेक‍िन बाजार नहीं मिलता. बाहर के देशों में इसकी डिमांड है पर ब्रैंडिंग नहीं है. कोई प्रचार नही हैं. इस चावल की जानकारी लेकर लोग या भक्त खुद ही यहां आते हैं.' 

सिद्धार्थ नगर के किसान या व्यापारी चाहते हैं कि इस बार की सियासत उनके लिए नए रास्ते लेकर आए. नेताओं ने इस बार भी चुनाव प्रचार में वादे किये. कइयों ने तो गौतम बुद्ध के इस प्रसाद की ब्रैंडिंग कराने तक का वादा कर दिया पर असल में ये किसान इन सबसे ऊपर बस आमदनी बढ़ाना चाहते हैं.
 

 

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