Maharashtra Assembly Election 2024: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election 2024) का ऐलान हो गया है. महाराष्ट्र में 20 नवंबर को वोटिंग होगी और 23 नवंबर को नतीजे आएंगे. महाराष्ट्र में इस बार का चुनाव 2019 से काफी अलग है.
महाराष्ट्र में इस बार एनसीपी (NCP) और शिवसेना (Shiv Sena) के दो-दो धड़े हो चुके हैं. इस बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव महायुति बनाम महाविकास अघाड़ी (Mahayuti vs Maha Vikas Aghadi) के बीच में है. ऐसा पहली बार नहीं है जब महाराष्ट्र में एक ही नाम की दो पार्टियां चुनाव में उतरीं हों. ऐसा पहली भी कई बार हो चुका है.
शरद पवार अपने भतीजे अजीत पवार को पार्टी तोड़ने के लिए कोसते रहते हैं. इस समय पार्टी तोड़ने के लिए शरद पवार अजीत पवार (Ajit Pawar) को जिम्मेदार बताते है लेकिन शरद पवार भी पहले ऐसा कर चुके हैं. जब शरद पवार ने अपने गुरु का बात ना मानकर महाराष्ट्र में सरकार गिरा दी थी. आइए शरद पवार के बगावत के उस किस्से पर नजर डालते हैं.
कांग्रेस के शरद
ये घटना साल 1978 की है. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने आपातकाल खत्म करने की घोषणा कर दी. केन्द्र में जनता पार्टी की लहर चली. मोरारजी देसाई (Morarji Desai) प्रधानमंत्री बने. इसी बीच कांग्रेस दो धड़ों में बंट गई. इंदिरा गांधी के खिलाफ शंकरराव रेड्डी खड़े हो गए. कांग्रेस (I) यानी कांग्रेस इंदिरा और कांग्रेस (S) यानी कांग्रेस शंकरराव आमने-सामने हो गए.
दिल्ली की राजनीति का असर महाराष्ट्र पर भी पड़ा. महाराष्ट्र में पहली बार कांग्रेस दो धड़ों में बंट गई. वसंत दादा पाटिल (Vasant Dada Patil) और शरद पवार सरीखे लोग कांग्रेस (एस) में शामिल हो गए. वहीं यशवंत राव चव्हाण और नाशिकराव तिरपुडे जैसे लोग इंदिरा गांधी के साथ रहे.
कांग्रेस गुट की सरकार
साल 1978 में महाराष्ट्र विधानसभा (Maharashtra Election 1978) के चुनाव हो गए. पूरे देश में जनता पार्टी की लहर थी. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. जनता पार्टी को 99 सीटें मिलीं. वहीं कांग्रेस (एस) को 69 और कांग्रेस (आई) ने 65 सीटों पर कब्जा किया.
सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद जनता पार्टी महाराष्ट्र में सरकार नहीं बना सकी. सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के दोनों गुट एक साथ आए. इस तरह से विभाजन होने के बावजूद महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार बन गई. वसन्त दादा पाटिल मुख्यमंत्री बने. वहीं तिरपुडे डिप्टी सीएम और शरद पवार को इंडिस्ट्रियल मंत्री की जिम्मेदारी मिली.
सरकार में फूट
महाराष्ट्र में कांग्रेस के दोनों गुटों की सरकार तो थी लेकिन नेताओं के बीच मतभेद बने हुए थे. इसी बीच डिप्टी सीएम तिरपुडे ने एक बयान दिया. उन्होंने कहा- हमें इस बात की चिन्ता नहीं है कि हम सरकार में रहें या न रहें. शरद पवार ने अपनी आत्मकथा अपनी शर्तों पर में इस घटना का जिक्र भी किया है.
इस बयान से कांग्रेस (एस) के नेता भड़क उठे. मुख्यमंत्री वसंत दादा पाटिल को भी गुस्सा आ गया. शरद पवार अपनी किताब में इस बात का जिक्र करते हैं. शरद पवार लिखते हैं 'बसंतदादा पाटिल ने उनका बुलाया और कहा- मैं तिरपुडे के निंदा अभियान से थक गया हूं. क्या हम लोगों को ऐसे ही सरकार से निकल जाना चाहिए? चव्हाण साहब से इस पर बात करो'.
शरद पवार की बगावत
कांग्रेस (एस) के कुछ नेताओं ने कांग्रेस (आई) से अलग होकर सरकार बनाने की पहल की. इसमें आबासाहेब कुलकर्णी और किसनवीर थे. शरद पवार के घर पर जनता पार्टी के अध्यक्ष चन्द्रशेखर से कांग्रेस (एस) के कई नेता मिले. चन्द्रशेखर ने महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस (एस) का साथ देने का वादा कर दिया.
अब आगे का काम शरद पवार को दिया गया. तब शरद पवार, सुशील शिंदे, दत्ता मेघे, सुंदरराव सोलंकी ने मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा भेज दिया. महाराष्ट्र में हो रही बगावत की आहट को दिल्ली को मिल गई. इंदिरा गांधी ने इस पर यशवंतराव चव्हाण से बात की.
अपने गुरु की नहीं मानी बात
शरद पवार को रोकने के लिए यशवंत राव चव्हाण ने महाराष्ट्र फोन घुमाया. यशवंत राव चव्हाण ने शरद पवार को रूकने को कहा. शरद पवार ने इस बात का किताब में जिक्र किया है. शरद पवार को लगा कि यशवंत राव सरकार गिराने में उनके साथ हैं. जब यशवंत राव ने रूकने को कहा तो शरद पवार चौंक गए.
यशवंत राव चव्हाण की वजह से शरद पवार राजनीति में इतना आगे गए थे. शरद पवार ने यशवंत राव चव्हाण से कहा- हम अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री को पहले ही भेज चुके हैं. अब आपके कहने पर रूक गया तो बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी.
शरद पवार ने गिराई सरकार
शरद पवार किताब में लिखते हैं कि वो यशवंत राव चव्हाण के खिलाफ नहीं जाना चाहते थे. किसनवीर समेत अन्य नेताओं के भविष्य की वजह से उन्होंने ऐसा फैसला लिया. मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल जनता पार्टी के साथ सरकार बनाने के खिलाफ थे.
जुलाई 1978 में महाराष्ट्र विधानसभा का सेशन चल रहा था. इस दौरान डिप्टी सीएम तिरपुडे ने वसंत दादा पाटिल को बताया कि शरद पवार सरकार गिराने वाले हैं. वसंत दादा पाटिल तिरपुडे की इस बात से काफी हैरान हुए क्योंकि कुछ देर पहले ही शरद पवार उनसे मिलकर गए थे.
सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री
विधानसभा के सेशन के दौरान कांग्रेस (एस) के 38 विधायक सरकार से अलग हो गए. इसमें शरद पवार भी शामिल थे. वसंत दादा पाटिल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. वसंत दादा पाटिल ने कहा- शरद पवार ने उनकी पीठ में छुरा घोंपा है.
इसी दौरान दादा साहेब रूपावते की अगुवाई में पैरलल कांग्रेस बनी. इसके बाद महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए जनता पार्टी, पैरलल कांग्रेस और पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी के विधायक दल की एक मीटिंग हुई. इस बैठक में नई सरकार को संभालने के लिए शरद पवार के नाम की घोषणा हुई.
18 जुलाई 1978 को शरद पवार ने पहली बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की शपथ ली. शरद पवार के साथ तीन मंत्रियों ने भी शपथ ली. शरद पवार उस समय 38 साल के थे. शरद पवार सबसे कम उम्र के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए. महाराष्ट्र में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी.