`अंतिम गेंद फेंके जाने तक किसी मैच का फैसला नहीं होता है... `
भले ही यह बात किसी क्रिकेट मैच के लिए सही साबित नहीं हो लेकिन झारखंड चुनाव परिणाम के लिए तो एकदम सटीक रही है. नेक टू नेक मुकाबले की बात हो रही थी. एक दो परसेंट के बीच वोट शेयर का डिफरेंस होने की बात की जा रही थी. लेकिन परिणाम आया तो हेमंत सोरेन काफी अंतर से अपनी सरकार बचाने में सफल रहे. वहीं, महाराष्ट्र में सभी अनुमानों को ध्वस्त करते हुए महायुति ने प्रचंड जीत हासिल करने में सफलता पाई. महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन की इस जबर्दस्त जीत ने विश्लेषकों को चौंका दिया है. आइए, सिलसिलेवार तरीके से जानते हैं कि आखिर इन नतीजों के पीछे किन फैक्टर्स का हाथ रहा. पहले बात करते हैं महाराष्ट्र में किन मुद्दों ने महायुति को दिलाई बंपर जीत.
1. `बंटेंगे तो कटेंगे ` से हिदुत्व का ध्रुवीकरण
2. `माधव ` कार्ड से OBC को साधने की कवायद
3. `लाडकी बहीण ` से महिला वोटर्स को लुभाया
4. दलितों को दोबारा साथ लाने पर फोकस किया
5. MVA का ओवर कॉन्फिडेंस
6. कपास-प्याज-सोयाबीन-हल्दी की कीमतों के मुद्दे को साधा
7. आरएसएस कैडर की सक्रियता, मिला नतीजा
1. `बंटेंगे तो कटेंगे`वाला हिन्दुत्व का दांव, कर गया काम
सबसे पहले योगी ने यूपी में `बंटेंगे तो कटेंगे ` का नारा दिया था. इस नारे को बाद में मोदी ने अपने तरीके से एक हैं तो सेफ हैं...किया. इस नारे को आगे बढ़ाने का मूल उद्देश्य था कि इससे माध्यम से हिन्दू वोटों का धुव्रीकरण किया जाए. पिछले लोकसभा परिणामों के बाद से ही भाजपा को इस बात का अच्छी तरह से अहसास हो गया था कि मुस्लिम वोट उनके पक्ष में नहीं आएंगे. बल्कि वे एकमुश्त भाजपा विरोधी पार्टियों के पक्ष में पोलराइज होंगे. काफी मंथन के बाद इस बार भाजपा ने पूरी तरह से जोर हिन्दू वोटर्स को एक करने पर जोर दिया. मोदी-योगी की सभाओं के माध्यम से हिन्दुत्व के पक्ष में माहौल बनाया, परिणाम बता रहे हैं कि इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला. इसके अलावा कांग्रेस का जाति गणना वाला दांव या आरक्षण वाला कार्ड भी बहुत प्रभावी नहीं दिखा. ऐसा दिखाई देता है कि विरोधी पार्टियों की रणनीति के खिलाफ भाजपा की `हिन्दुत्व काट ` बहुत सफल दिखाई दे रही है.
2. ओबीसी एकीकरण के लिए माधव फॉर्मूला
मराठा प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए भाजपा ने ओबीसी वोटों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया. इस रणनीति में विभिन्न ओबीसी समुदायों को एकजुट करने के लिए ऐतिहासिक माधव फॉर्मूले का लाभ उठाना भी शामिल था. भाजपा ने माली, धनगर, और वंजारी समुदायों के पहले अक्षर को मिलाकर बने माधव फॉर्मूले पर काम किया. इस समुदाय में अधिकांश किसान हैं तो इनके लिए कृषि उपज पर काम किया गया. विशेषकर प्याज पर निर्यात शुल्क को घटाया गया. बंजारा विरासत म्यूजियम बनाना इसी स्ट्रेटजी का हिस्सा था. इसी तरह धनगर समुदाय के लिए अहमदनगर का नाम बदलकर अहिल्या नगर रखने का मास्टर स्ट्रोक चला. इसके अलावा कुनबी जाति को ओबीसी में शामिल करने की मांग मान ली गई. साथ ही एक और ओबीसी जाति तेली को भी एड्रेस करने के लिए भाजपा ने चंद्रशेखर बावनकुले को अध्यक्ष बनाया. इन जातियों को साधने से महाराष्ट्र के कोर एरिया मराठवाड़ा, पश्चिम क्षेत्र और विदर्भ की लगभग 155 सीटों पर सीधे-सीधे प्रभाव पड़ा.
3.`लाडकी बहीण योजना ` से महिला वोटर्स को लुभाया
पिछले विधानसभा चुनावों से ही भाजपा महिला वोटर्स पर बहुत फोकस करती रही है. उनके लिए अलग तरह की योजनाएं लाती रही है. विशेषकर मप्र-छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में लाड़ली बहन-महतारी योजना की वजह से महिलाओं ने भाजपा के पक्ष में बंपर मतदान किया था. महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन को समय रहते विरोधियों की बढ़त और अपनी कमजोरियों की जानकारी मिल गई. इससे काउंटर करने के लिए उन्होंने तत्काल सीएम लाडकी बहीण योजना लॉन्च की...इसमें हर महीने 1500 रुपये दिए जाते हैं. जून से यह योजना शुरू कर दी गई. महिलाओं को इस योजना का लाभ लगातार मिल रहा है. सीएम शिंदे की तरफ से यह घोषणा भी की गई थी कि यदि वे वापस सत्ता में आते हैं यह राशि बढ़ाकर 2100 रुपये कर दी जाएगी. अब ऐसा मानने में कोई गुरेज नहीं है कि इस योजना के दम पर महायुति ने डैमेज कंट्रोल किया और अपने पक्ष में महिलाओं की सहानुभूति पैदा कर ली. ऐसा ही कुछ झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने भी किया था. वहां का परिणाम भी बता रहा है कि यह योजना किस स्तर पर महिलाओं की सहानुभूति सत्ता पक्ष की तरफ मोड़ रही है.
4. दलित वोटर्स को साथ लाने की कवायद
महाराष्ट्र में अच्छी खासी दलित आबादी है. जो परंपरागत तौर पर कांग्रेस को वोट करती है. पिछले लोकसभा चुनावों में दलितों ने जमकर कांग्रेस फेवर में वोटिंग की थी. इस बात से सबक लेकर महायुति ने इनके लिए कई लोक-लुभावन योजनाओं की घोषणा कर दी. इसी तरह कैंडिडेट्स चयन में दलित जाति का विशेष घ्यान रखा गया.
5. MVA का ओवर कॉन्फिडेंस
महायुति की इस जीते पीछे महाविकास अधाड़ी का ओवर कॉन्फिडेंस भी किसी हद तक जिम्मेदार है. नेता आपस में लड़ते रहे. मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान करते रहे. आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते रहे. जिस तरह से महायुति अपनी गलतियों से सबक लेकर कोर्स करेक्शन कर रही थी. उस तरह का जज्बा महाविकास अघाड़ी में दिखाई नहीं दिया. लोकसभा में कांग्रेस ने संविधान खत्म करने, आरक्षण खत्म करने और राज्य के साथ केंद्र के भेदभाव को मुद्दा बनाए थी. MVA लोकसभा में अपने पक्ष में किए गए वोटिंग सेंटिमेंट के भरोसे ही रहे. उन्हें लगा यह मूमेंट्म जारी रहेगा. महाविकास अघाड़ी से इमोशनल अपील तो बहुत की गई लेकिन लगता है कि वह मुद्दों को जमीन पर उतरकर लोगों को समझाने में सफल नहीं हो पाई.
6. कपास-प्याज-सोयाबीन-हल्दी की कीमतों पर समय रहते काम किया
महाराष्ट्र में ऐसा माना जाता है कि वहां प्याज के किसान सरकार बदल देते हैं. इस पर भी यही होने वाला था कि प्याज के किसानों को अपने उत्पाद की कीमतें बहुत ही कम मिल रही थीं. इसे समय रहते भाजपा के रणनीतिकारों ने भांप लिया. प्याज उत्पादकों को सही कीमत मिले इसके लिए प्याज एक्सपोर्ट से बैन हटा लिया गया. इससे प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी होने लगी. इस कवायद से महायुति के खिलाफ बड़ा होने वाला एक मुद्दा समय रहते ही एड्रेस कर लिया गया. इसी तरह एमएसपी बढ़ाने की बात करके बाकी उत्पादों के किसानों को भी साधने की कोशिश की गई.
7. आरएसएस कैडर की सक्रियता, मिला नतीजा- महाराष्ट्र आरएसएस का गढ़ रहा है. पूरे राज्य में आरएसएस कैडर की बहुत पैठ है. लोगों को प्रभावित करने और अपने पक्ष के वोटरों को पोलिंग बूथ तक लाने में इस कैडर की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. भाजपा के कांग्रेस से पीछे रह जाने की भविष्यवाणी के बाद यह कैडर जबर्दस्त तरीके से सक्रिय हुआ. इसकी सक्रियता की बदौलत गांव-शहर के भाजपा के परंपरागत वोटर बाहर निकले, जो लगातार हार की तरफ बढ़ती भाजपा को जीत दिलाने में कामयाब रहे. ऐसा माना जा सकता है कि यह पहली बार हुआ है कि आरएसएस कैडर ने लगभग पूरी तरह से भाजपा कार्यकर्ता बनकर ही काम किया. सामान्य तौर पर आरएसएस कैडर सीधे तौर पर इतनी राजनीतिक सक्रियता नहीं दिखाता है, बल्कि इनडायरेक्ट तरीके से वोटर को इन्फ्लूएंस करने का काम करता है.
झारखंडः
अब बात करते हैं आदिवासी राज्य झारखंड की. यहां मौटे तौर पर 3-4 मुद्दों ने जनता का मानस तय करने का काम किया. पहले जान लेते हैं कि इस राज्य में कितनी सीटें हैं. बहुमत के लिए कितनी सीटें चाहिए.
झारखंड में कुल सीट- 81.
बहुमत के लिए चाहिए - 41
सीधा मुकाबला- झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच.
फिलहाल परिणाम क्या कह रहा है- इंडिया ब्लॉक सरकार बना रहा है.
अब बात करते हैं कि राज्य में मुद्दे क्या थे जो जेएमएम लीड गठबंधन के पक्ष मे काम कर गए.
1. मुख्यमंत्री सोरेन के अपमान का मामला
2. महिलाओं की मइयां सम्मान योजना काम कर गई
3. भाजपा रोटी-बेटी और माटी के मुद्दे अपील नहीं कर पाए
1. मुख्यमंत्री सोरेन के अपमान का मामला
जिस तरीके से राज्य के मुख्यमंत्री सोरेन को भ्रष्टाचार के मामले में जेल भेजा गया था उसने लोकसभा इलेक्शन में भी भाजपा के खिलाफ काम किया था. इसे इस चुनाव में भी जेएमएम ने मुद्दा बनाया था. इसे आदिवासी अस्मिता से भी जोड़ दिया था. आदिवासियों में इस मुद्दे पर कहीं आक्रोश था. आदिवासी पर भाजपा का होल्ड ज्यादा नहीं है. जबकि राज्य की एससी सीटों पर पार्टी का काफी प्रभाव है. इसी कमी को दूर करने के लिए और आदिवासियों को अपने साथ लाने के लिए इस बार पार्टी ने अपने ही पुराने नेता और झारखंड के पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी और जेएमएम से लाए गए चम्पाई सोरेन पर भरोसा किया. विशेषतौर पर चंपाई के साथ भाजपा को उम्मीद थी कि उनके इलाके कोल्हान के आदिवासी पार्टी के साथ जुड़कर वोटिंग करेंगे. लेकिन दिखाई देता है कि यह दोनों नेता भी आदिवासियों को भाजपा से जोड़ने में उतने सफल नहीं रहे.
2. महिलाओं की मइयां सम्मान योजना काम कर गई
महिलाओं के लेकर भाजपा ने जिस लाडली बहन योजना के दम पर कई राज्यों में सत्ता कब्जाई थी उसे INDIA ब्लॉक ने भी झारखंड के लिए जारी की गई अपनी 7 गारंटी में शामिल किया था. इन गारंटियों में मइयां सम्मान की गारंटी पर सबसे ज्यादा जोर था. इस योजना के अंतर्गत पहले महिलाओं को प्रति माह 1000 रुपये दिए जाते थे जिन्हें चुनाव से पहले बढ़ाकर 2500 रुपये कर दिया गया. इस योजना की बड़ी बात थी कि इसे लागू किया जाना. झारखंड जैसे राज्य में प्रति माह 2500 रुपये की राशि बहुत बड़ी बात होती है. इस गारंटी ने सबसे ज्यादा काम किया. इसके अलावा खाद्य सुरक्षा को लेकर भी गारंटी दी गई थी. इसमें 7 किलो राशन प्रति व्यक्ति देने का वादा किया गया था. साथ ही गैस सिलेंडर राज्य के हर गरीब परिवार को 450 रुपये में देने का वादा किया गया. झारखंड जैसे राज्य में इन बातों का भरपूर असर हुआ.
3. भाजपा रोटी-बेटी और माटी के मुद्दे अपील नहीं कर पाए
भाजपा ने कोशिश की थी कि बांग्लादेशी घुसपैठियों का मामला उठाकर राज्य में सत्ता पर काबिज हो सकें. लेकिन ऐसा लगता है कि भाजपा घुसपैठियों की बात को सही तरीके से लोगों समझा पाने में विफल रही. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भाजपा का संकल्प पत्र जारी किया था. उन्होंने जमकर हेमंत सोरेन सरकार पर हमला किया था और कहा था कि झारखंड का ये चुनाव न केवल सरकार बदलने का चुनाव है, बल्कि झारखंड का भविष्य सुरक्षित करने का चुनाव है. अमित शाह ने आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार झारखंड की अस्मिता - रोटी, बेटी, माटी को बचाने में विफल रही है. झारखंड की महान जनता को तय करना है कि आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई सरकार चाहिए या विकास के रास्ते पर चलती हुई मोदी जी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार चाहिए. भाजपा ने बांग्लादेशी घुसपैठिए के स्थानीय आदिवासी महिलाओं के साथ शादी करके उनकी प्रॉपर्टी पर कब्जा करने और इस बहाने नागरिकता प्राप्त करने के प्रयासों को हाइलाइट किया था. यानी घुसपैठिए राज्य को लोगों की रोटी-बेटी-माटी पर कब्जा करने की साजिश रच रहे हैं. लेकिन परिणाम बता रहे हैं कि भाजपा इन मुद्दों से लोगों को प्रभावित करने में विफल रही. इससे अलावा बिरसा मुंडा जयंती उनकी मूर्ति का अनावरण, आदिवासी गौरव जैसे प्रयासों के माध्यम से आदिवासी समाज को साधने की कोशिश की गई. लेकिन यह प्रयास भी जनता को अपील करने में कारगर साबित नहीं हुए.
कुल मिलाकर माना जा सकता है कि भाजपा के बांग्लादेशी घुसपैठ मुद्दे और मोदी सरकार के विकास कार्यों पर JMM का आदिवासी अस्मिता मुद्दा भारी पड़ गया.