चुनाव के बाद अब चर्चा चल पड़ी है कि अयोध्या का मिल्कीपुर विधानसभा जो कि समाजवादी पार्टी का गढ़ था, क्या इस चुनाव में वह ढह जाएगा? इस चर्चा के पीछे कुछ वजह साफ दिखाई दे रहे हैं. मिल्कीपुर उपचुनाव में करीब 65 फीसदी से ज्यादा वोटिंग ने सियासी जानकारी को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि इतनी बंपर वोटिंग हुई. जबकि साल 2022 विधानसभा चुनाव में 60 फीसदी से कम वोटिंग हुई थी. लेकिन इस बंपर वोटिंग के बाद से बीजेपी नेताओं के चेहरे खिले हुए हैं.
अखिलेश ने लगाए धांधली के आरोप-
समाजवादी पार्टी ने मिल्कीपुर उपचुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली, सरकारी मशनरी का दुरुपयोग और बाहर के वोटरों को बुलाकर फर्जी वोटिंग और बुर्का हटाकर वोटर्स चेकिंग का आरोप लगाया. अखिलेश यादव ने एक के बाद एक X पर कई पोस्ट डालें और अयोध्या प्रशासन और चुनाव आयोग को आड़े हाथों लिया.
क्या है जमीनी हालात-
उधर जमीनी हालात ये बयां कर रहे हैं कि बीजेपी ने सभी मोर्चो पर समाजवादी पार्टीी को घेर लिया है. चाहे जातियों का समीकरण हो या फिर बूथ प्रबंधन, अपने रूठे नेताओं को मनाना हो या अपने वोटरों को बूथ तक ले जाना, भाजपा यहां सपा पर भारी पड़ती दिखाई दी है. जातियों के समीकरण की बात की जाए तो समाजवादी के कोर वोट बैंक में बीजेपी सेंध लगाने में कुछ हद तक सफल दिखाई दी.
यादव वोटबैंक में लगी सेंध?
यादव वोटों में भाजपा की सेंध लगती दिख रही है और इसका क्रेडिट रुदौली के भाजपा विधायक रामचंद्र यादव को जाता है, जिन्होंने यादवों में जबरदस्त मेहनत की है. रुदौली के तीन बार के विधायक रामचंदर यादव की पकड़ इस इलाके में है, यही नहीं, मुलायम सिंह की बहू अपर्णा यादव को लेकर भी विधायक यादव बहुल इलाकों में घूमते रहे. स्थानीय स्तर के यादव नेताओं को चुनाव के पहले बीजेपी में जॉइनिंग कराई. माना जा रहा है कि उनकी मेहनत की बदौलत बीजेपी कुछ हद तक यादव वोटरों में सेंध लगाने में सफल रही है.
दलित वोटर्स में बिखराव-
इस बार दलित वोटो में भी विभाजन हुआ है. चंद्रशेखर आजाद रावण की पार्टी से उम्मीदवार सूरज चौधरी को जाटव बिरादरी का कुछ वोट मिला है, जबकि अन्य दलित बिरादरियों में BJP ने अपनी पकड़ बनाए रखी है.
ज्यादातर सवर्ण और बनिया बिरादरी के वोट परंपरागत तौर पर भाजपा के साथ दिखाई दिए, जबकि समाजवादी पार्टी अपने कर वोट बैंक को संभालने में ज्यादा जद्दोजहद करती दिखाई दी. लड़ाई समाजवादी पार्टी और बीजेपी में ही सिमट गई है. आजाद समाज पार्टी ने तीसरा कोण बनाने की कोशिश की. लेकिन उनका वोट एक जाति विशेष के एक वर्ग तक ही सीमित दिखाई दिया.
पूरा मिल्कीपुर तीन ब्लॉक में बंटा है. हैरिंटिंगगंज, कुमारगंज और मिल्कीपुर ब्लॉक, जिसका अमानीगंज सबसे बड़ा बाजार है. यादवों की संख्या यहां ज्यादा होने से बीजेपी ने यहां मेहनत की है.
समाजवादी पार्टी को यकीन है कि उनका अपना वोट बैंक उनके साथ मजबूती से खड़ा है, यादव मुसलमान और दलित खासकर पासी समाज. यही नहीं, समाजवादी पार्टी ने अपने जाटव नेताओं को भी इस चुनाव में खूब घुमाया.
बीजेपी को नया पासी चेहरा देना लोगों को पसंद आया है. संसाधनों से भरपूर चंद्रभानु पासवान मिल्कीपुर के लिए नया चेहरा है और किसी भी विवाद से परे हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए ये चुनाव सपा के मुकाबले ज़्यादा मुफीद नज़र आ रहा है.
ये भी पढ़ें: