उत्तर प्रदेश की राजनीति में हमेशा से पूर्वांचल का दबदबा रहा है. उत्तर प्रदेश के चुनाव में पूर्वांचल को हमेशा से क्रेंद्र माना गया है.पूर्वांचल ने उत्तर प्रदेश को 8 मुख्यमंत्री दिये हैं. पूर्वांचल में कई ऐसे दिग्गज हैं जिन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी बदल कर भी अपनी बादशाहत कायम रखी. वहीं कुछ विधानसभा क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां दशकों से एक पार्टी या परिवार विशेष का कब्जा है. आइए उनके बारे में विस्तार से जानते हैं.
1. वाराणसी कैंट पर 1991 से है एक परिवार का कब्जा
वाराणसी की कैंट सीट से ज्योत्सना श्रीवास्तव ने बीजेपी से सीट जीती. तब से लेकर अब तक उनके परिवार का ही इस सीट पर कब्जा है. इस बार उनके बेटे सौरभ मौदान में हैं.
2. वाराणसी दक्षिणी पर पिछले 8 चुनाव से भाजपा जीत रही
दक्षिणी सीट पर 8 चुनाव से भाजपा का कब्जा है. यहां से सात बार श्यामदेव राय चौधरी विधायक बने. 2017 में बीजेपी की तरफ से डॉ नीलकंठ तिवारी मैदान में उतरे और बादशाहत कायम रखी. इस बार भी वही भाजपा से मैदान में उतरे हैं.
3. गोरखपुर सीट पर 31 साल से जीत रही भाजपा
मुख्यमंत्री योगी आदित्याथ गोरखपुर सदर से मैदान में हैं. भाजपा यहां 31 सालों से जीत रही है. 1986 से 1996 तक शिव प्रताप शुक्ला यहां से चार बार जीते. वहीं 2002 से लेकर 2017 तक जीत का ताज भाजपा के ही मंत्री रहे डॉ राधा मोहन दास अग्रवाल के नाम रहा.
4. बंसी सीट से 7 बार जीत चुके जय प्रताप, फिर मैदान में
सिद्धार्थनगर जिले की बंसी विधानसभा सीट जय प्रताप के नाम रही. 1989 और 1991 में यहां से निर्दलीय उम्मीदवार जीते. हालांकि उसके बाद से 2007 का चुनाव छोड़ सभी बार बीजेपी का कब्जा रहा. बीजेपी आठवीं बार यहां किस्मत आजमाने उतरेगी.
5. निजामाबाद से आलमबदी 5वीं बार विधायक की रेस में
निजामाबाद सीट से सपा के आलमबादी आजमी चार बार चुनाव जीत चुके हैं. इस सीट से वो 5वीं बार मैदान में उतरे हैं. आजमी अपनी ईमानदार छवि और सादगी के लिए क्षेत्र में मशहूर हैं.
6.आजमगढ़ की सदर सीट पर सपा का कब्जा
आजमगढ़ जिले की सदर सीट पर सपा के दुर्गा प्रसाद यादव ने 8 बार चुनाव जीतकर रिकॉर्ड कायम किया. इस विधानसभा चुनाव में वो नौंवी बार मैदान में उतरे हैं.
7.कैपियरगंज सीट पर 7 चुनाव से एक ही परिवार
पूर्व सीएम वीर बहादुर के बेटे फतेह बहादुर सिंह कैपियरगंज से लगातार छह बार विधायक बने. सातवीं बार वो भाजपा के टिकट से अपनी किस्मत आजमाने उतरेंगे.
8.पथरदेवा सीट से विधायकी की रेस में सूर्य प्रताप
देवरिया जिले के पथरदेवा से प्रत्याशी बनाए गए सूर्य प्रताप शाही चार बार चुनाव जीत चुके हैं. 2012 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था, जबकि 2017 में उन्होंने फिर से जीत दर्ज की. सूर्य प्रताप योगी सरकार में कृषि मंत्री हैं.
9.ज्ञानपुर से विजय मिश्र 5वीं बार विधायक की दौड़ में
भदोही जिले की ज्ञानपुर से विजय मिश्रा ने 3 बार सपा के टिकट पर जीत दर्ज की. वहीं 2017 में निषाद पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर चौथी बार विधानसभा पहुंचे. जेल में बंद विजय मिश्र प्रगतिशील मानव समाज पार्टी से मैदान में है.
10. 8 बार चुनाव जीत चुके विजय सिंह, 9वीं बार आजमाएंगे किस्मत
विजय सिंह गौड़ सोनभद्र जिले के दुद्धी सीट से 1980,1985 और 1989 में कांग्रेस में विधायक बने. इसके बाद 1991 व 1993 में जनता दल और 1996, 2002 में सपा से जीते. हालांकि 2017 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इस बार वो सपा के टिकट पर फिर मैदान में हैं.
11. ओम प्रकाश सिंह छठवीं जीत के लिए मैदान में
ओमप्रकाश सिंह का 33 साल पुराना सियासी करियर है. दिलदारनगर से उन्हें साल 1989,1991, 1995, 2002 में सफलता मिली. 2012 में वो जमानिया सीट से जीते, जबकि 2017 में वो चुनाव हार गए. इस बार वो फिर ताल ठोक रहे हैं.
12. रामगोविंद 1997 में पहली जीते और अब 9वीं जीत की आस
रामगोविंद चौधरी पहली बार 1977 में विधायक बने. फिर 1980, 1985, 1989, 1991, 2002, 2012 और 2017 में उन्होंने जीत दर्ज की. अब बलिया नगर से सपा के टिकट पर नौवीं बार चुनावी मैदान में हैं.
13. चार चुनाव जीत चुके अजय राय फिर चुनावी मैदान में
अजय राय कोलसला विधानसभा (अब पिंडरा) से पहली बार 1996 में बीजेपी के टिकट से जीते. 2002 और 2007 में भी उन्होंने भाजपा से ही चुनाव लड़ा. इसके बाद 2012 में कांग्रेस का दामन थामकर फिर चुनाव जीता. हालांकि 2017 में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. इस बार वह फिर मैदान में हैं.
14.शैलेंद्र यादव पांचवी बार जीत की आस लेकर मैदान में
जौनपुर जिले से शैलेंद्र यादव ललई भी चार विधानसभा चुनाव से जीत रहे हैं. 2002 और 2007 का चुनाव खुटहन सीट से जीता. इसके बाद 2012 और 2017 का चुनाव शाहगंज से जीता. इस बार सपा के टिकट पर शाहगंज से मैदान में हैं.
15. चिल्लूपार में तिवारी परिवार का दबदबा
1985 से चिल्लूपार सीट पर हरिशंकर तिवारी परिवार का दबदबा है. हरिशंकर तिवारी 1985 से 2002 तक वो इस सीट पर चुनाव जीतते रहे. 2007-2012 में उन्हें हार मिली. साल 2017 में उनके बेटे विनय शंकर को जीत मिली. इस बार वो सपा से चुनाव लड़ रहे हैं.