Uttarakhand Election Result 2022: बीजेपी के चुनाव जीतने के बावजूद अपनी सीट क्यों नहीं बचा पाए CM धामी? जानिए क्या हैं इसके मुख्य कारण

पर्वतीय वोटों में कांग्रेस के भुवन कापड़ी ने जमकर सेंध लगाई. यहां के बयालीस हज़ार पर्वतीय वोटों में कांग्रेस के प्रत्याशी की पकड़ बहुत अच्छी देखी गई. ऐसा भी माना जा रहा है कि भाजपा के साथ पार्टी के ही लोगों ने भितरघात किया है. धामी को कुल दस राउंड में 41598 और कापड़ी को 48177 मत मिले हैं.

Pushkar Singh Dhami
gnttv.com
  • खटीमा,
  • 10 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 8:39 PM IST
  • थारु जनजाति ने कांटे वोट
  • कांग्रेस और भाजपा में कांटे का मुकाबला

उत्तराखंड में खटीमा विधानसभा सीट से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार चुके हैं. धामी को कांग्रेस के भुवन कापड़ी ने कड़ी टक्कर दी है. कांग्रेस प्रत्याशी और प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष भुवन कापड़ी ने 6,579 वोटों के अंतर से उन्हें करारी शिकस्त दी. जबकि पिछले चुनाव में भुवन को धामी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.

मुस्लिम वोटों पर सेंध लगाने की कोशिश
मुख्यमंत्री का चेहरा होने के बावजूद भी पुष्कर सिंह धामी को कांग्रेस ने कड़ी टक्कर दी. हालांकि कांग्रेस के वोट काटने के लिए एआईएमआईएम के प्रत्याशी ने काफी कोशिश की कि वो मुस्लिम वोटों पर सेंध लगा सके लेकिन उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली और सारे मुस्लिम वोट कांग्रेस को ही मिले.  

भाजपा के लोगों ने किया भितरघात
पर्वतीय वोटों में कांग्रेस के भुवन कापड़ी ने जमकर सेंध लगाई. यहां के बयालीस हज़ार पर्वतीय वोटों में कांग्रेस के प्रत्याशी की पकड़ बहुत अच्छी देखी गई. ऐसा भी माना जा रहा है कि भाजपा के साथ पार्टी के ही लोगों ने भितरघात किया है. धामी को कुल दस राउंड में 41598 और कापड़ी को 48177 मत मिले हैं. यह भी माना जा रहा है कि भाजपा के क़द्दावर नेताओं ने भी धामी के खिलाफ काम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. कुल एक लाख तेरह हज़ार वोटों वाली vvip खटीमा विधानसभा में आप के एसएस कलेर और बीएसपी के रमेश राणा ने थारु जनजाति के 28 हज़ार वोटों पर नज़र रखी लेकिन वो वोट भी कांग्रेस के ही खाते में गए. 

थारु जनजाति ने कांटे वोट
आप के एसएस कलेर और  बीएसपी के रमेश राणा को उम्मीद थी कि वो पांच हजार वोट तो जीत ही लेंगे लेकिन ये लोग हजार का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाए. कलेर को कुल 764 तथा BSP के रमेश राणा को 937 वोट ही मिले. इसके पीछे थारु जनजाति की जमीनों(भूमि) को भाजपा के सत्ता में आने के बाद कब्जा कर लेने की अफवाह फैलने का कारण रहा. कुल मिलाकर धामी आज भी पूरे आत्मबल और जोश से भरे दिखे लेकिन हार के बाद मनोबल तो कम हुआ ही है.

कांग्रेस और भाजपा में कांटे का मुकाबला
कांग्रेस और भाजपा में जबरदस्त कांटे का मुकाबला रहा. हर राउंड में कांग्रेस औसत एक हजार मत के अंतर से बढ़त बनाती चली गई. भाजपा के बड़े नेता भी नाम ना लेने की शर्त पर बोले कि धामी के हारने का कारण उनके अगल-बगल रहने वाले स्थानीय लोग ही हैं. उनके कुछ ऐसे कारनामे थे जो वो लोग cm के नाम पर व्यक्तिगत स्वार्थ साधने पर लगे रहे जिसका सीधा जनता में गलत संदेश गया.

निर्दलीय उम्मीदवार ने धामी के विरोध में किया काम
बरेली के एक चिकित्सक डॉक्टर ललित बिष्ट जो पिछले चुनाव में धामी के विरोध में यहां से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ कर लगभग दस हजार मत लेकर तीसरे नम्बर पर रहे थे खटीमा के ही रहने वाले हैं. वो चुनाव के ठीक पांच दिन पहले खटीमा आ गए और धामी के विरोध में खूब काम किया. कुल मिला कर इसे खटीमा का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि अगर धामी यहां से जीतते तो खटीमा के दिन निश्चित रूप से बदल जाते.

कैलाश गहतोड़ी छोड़ेंगे अपनी सीट
धामी के मुख्यमंत्री रहते हुए खटीमा में काफी समय बाद विकास का खूब काम हुआ, जो लगभग बीस सालों के बराबर है. इस बात का कई मतदाताओं ने दुःख भी जताया. अब सबको लग रहा है कि धामी के जीतने से खटीमा का नाम आज पूरे देश में काफी आगे तक जाता. हालांकि यहां के पड़ोसी जनपद चम्पावत के भाजपा विधायक कैलाश गहतोड़ी ने कहा कि वो धामी के लिए अपनी सीट छोड़ देंगे, जिस कारण माना जा रहा है कि धामी एक बार फिर से सीएम बन सकते हैं.

 

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