तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक की खाली हुई कुल 15 राज्यसभा सीटों पर 27 फरवरी 2024 को चुनाव हुए. इसमें क्रॉस वोटिंग (Cross Voting) से समाजवादी पार्टी यानी सपा (Samajwadi Party) और कांग्रेस (Congress) का बना बनाया खेल बिगड़ गया. भारतीय जनता पार्टी ने कुल 10 सीटों पर जीत दर्ज की. बीजेपी (BJP) यूपी की आठ, कर्नाटक की एक और हिमाचल प्रदेश की खाली हुई एकमात्र सीट पर भी जीत दर्ज करने में सफल हुई. कांग्रेस को कर्नाटक की तीन और सपा को यूपी की दो सीटों पर संतोष करना पड़ा.
आखिर क्या होती है क्रॉस वोटिंग
विधायक राज्यसभा की खाली हुई सीटों के लिए चुनाव के दौरान यह निर्णय करते हैं कि उन्हें किसे अपना मत देना है. इसके बाद पार्टी प्रमुख को वोटों को दिखाया जाता है. फिर इसे सभापति के पास जमा कर दिया जाता है. जब कोई विधायक चुनाव में खड़े अपनी पार्टी के उम्मीदवार को वोट देने की जगह विपक्षी पार्टी को मत दे देता है तो इसे ही क्रॉस वोटिंग कहते हैं. मंगलवार को हुए चुनाव में बीजेपी को क्रॉस वोटिंग का फायदा हुआ. उसके उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रहे.
पहली बार राज्यसभा चुनाव में इस समय हुई थी क्रॉस वोटिंग
ऐसा नहीं है कि 27 फरवरी 2024 को पहली बार क्रॉस वोटिंग हुई है. राज्यसभा चुनाव और राष्ट्रपति चुनाव में इससे पहले भी ऐसा हो चुका है.पहली बार 1998 के राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग हुई थी. उस समय कांग्रेस उम्मीदवार को हार मिली थी. महाराष्ट्र की खाली राज्यसभा सीट पर कांग्रेस ने अपने दो उम्मीदवार नजमा हेपतुल्ला और राम प्रधान को खड़ा किया था. इस चुनाव में राम प्रधान को हार मिली थी.
कांग्रेस के एक वर्ग ने इस हार के लिए शरद पवार को जिम्मेदार ठहराया था. पवार उस समय कांग्रेस में थे. वह राम प्रधान की उम्मीदवारी के विरोध में थे. इस मामले में पार्टी हाईकमान ने 10 विधायकों, प्रफुल्ल पटेल समेत शरद पवार के सहयोगियों को कारण बताओं नोटिस जारी किया था. इतना ही नहीं 1999 के विधानसभा चुनाव में पवार के करीबियों को टिकट भी नहीं दिया गया था. कहा जाता है कि इस चुनाव के बाद से ही शरद पवार ने अपनी अलग पार्टी बनाने का फैसला कर लिया था और 10 जून 1999 को एनसीपी का गठन किया.
दलबदल कानून क्या हो सकता है लागू
दलबदल कानून क्रॉस वोटिंग करने वालों पर लागू नहीं होता है. यह तभी लागू होता है जब किसी पार्टी का सदस्य इस्तीफा देकर दूसरी पार्टी से जुड़ता है. कांग्रेस उम्मीदवार की 1998 में हार के बाद बैलेट का नियम लाया गया. इसके तहत हर विधायक को अपना मत पार्टी प्रमुख को दिखाना होता है. इसके बावजूद क्रॉस वोटिंग नहीं थमी. कई बार ऐसा हो चुका है. यदि पार्टी क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायक के बारे में जानती है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है. कांग्रेस नेता कुलदीप बिश्नोई ने 2022 में क्रॉस वोटिंग की थी.
हालांकि वह बाद में भाजाप में शामिल हो गए थे. इस चुनाव में राजस्थान से बीजेपी नेता शोभारानी कुशवाह ने भी क्रॉस वोटिंग की थी. वह पार्टी से निकाल दी गईं थीं. यूपी में साल 2016 में कांग्रेस के छह नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी के लिए क्रॉस वोटिंग की थी. हाईकमान ने पार्टी को सभी को निष्कासित कर दिया था. 2017 में कांग्रेस की अपील पर दो नेताओं के वोट खारिज हो गए थे, क्योंकि इन दोनों ने अपना बैलेट पेपर अमित शाह को दिखाया था. कांग्रेस के अहमद पटेल इसके बाद राज्यसभा सांसद बने थे.