Delhi Siyasi Kisse: जब दिल्ली में चुनाव जीतने पर मुख्यमंत्री को लेकर छिड़ गई मैराथन, फिर Sheila Dixit ऐसे बनीं दूसरी बार CM, जानिए ये सियासी किस्सा

साल 2003 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election) हुए. शीला दीक्षित (Sheila Dixit) के चेहरे पर कांग्रेस (Congress) चुनाव में उतरी. कांग्रेस ने 47 सीटें जीतीं और बीजेपी (BJP) सिर्फ 20 सीटें ला पाई. शीला दीक्षित दूसरी बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं. हालांकि, ये इतना भी आसान नहीं था.

Sheila Dixit Become Delhi CM in 2003 (Photo Credit: Getty)
ऋषभ देव
  • नई दिल्ली,
  • 02 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 5:18 PM IST
  • 2003 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए
  • 2003 के चुनाव में कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया

दिल्ली में चुनाव (Delhi Assembly Election 2025) की तारीख पास आ गई है. कुछ ही दिनों में दिल्ली की जनता का फैसला ईवीएम में बंद हो जाएगा. 8 फरवरी को ये तय हो जाएगा कि दिल्ली में किसकी सरकार बनेगी. दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) और भाजपा (BJP) के बीच टक्कर मानी जा रही है.

दिल्ली में कांग्रेस (Delhi Congress) खुद को बचाने के लिए लड़ रही है. दिल्ली कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था. दिल्ली में कांग्रेस बड़े मार्जिन से जीतती थी और मुख्यमंत्री चुनती है. दिल्ली में कांग्रेस की ओर से शीला दीक्षित (Sheila Dixit) लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रहीं.

दिल्ली में शीला दीक्षित कांग्रेस का चेहरा हुआ करती थीं लेकिन मुख्यमंत्री को लेकर मैराथन छिड़ जाती थी. दूसरी बार चुनाव जीतने के बाद भी कुछ ऐसी ही रस्साकशी हो जाती थी. शीला दीक्षित दूसरी बार दिल्ली की मुख्यमंत्री कैसे बनीं? आइए इस बारे में जानते हैं.

शीला के 5 साल
साल 1998 में शीला दीक्षित पहली बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं. सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने शीला दीक्षित को दिल्ली में कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. दिल्ली में कांग्रेस बहुमत में आई तो मुख्यमंत्री भी शीला दीक्षित को चुना. शीला दीक्षित ने पांच साल अच्छे से काम किया.  

इन पांच सालों में कांग्रेस पार्टी में कुछ विरोध जरूर देखने को मिला. 2002 में दिल्ली में नगर निगम के चुनाव हुए. नगर निगम के इलेक्शन (Delhi Nagar Nigam Election) में पहली बार कांग्रेस ने बीजेपी को हराया. इस जीत से कांग्रेस खुश थी क्योंकि अगले साल ही विधानसभा चुनाव होने थे.

दिल्ली में फिर जीत
2003 में कांग्रेस और बीजेपी एक बार फिर से एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव में उतरी. कांग्रेस शीला दीक्षित के चेहरे पर चुनाव लड़ी. बीजेपी ने भी अच्छा प्रचार. 1 दिसंबर 2003 को दिल्ली में वोटिंग हुई और 4 दिसंबर को नतीजे आ गए.

दिल्ली की जनता ने फिर से कांग्रेस को पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने का जनादेश. कांग्रेस 47 सीटों पर जीती और भाजपा की 20 सीटें आईं. पिछले चुनाव की तुलना में कांग्रेस को 5 सीटों का नुकसान हुआ और भाजपा की 5 सीटें ज्यादा आईं. इससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा क्योंकि सरकार तो कांग्रेस की बननी थी.

कौन बनेगा CM?
दिल्ली में कांग्रेस जीत का जश्न तो मना रही थी लेकिन मुख्यमंत्री को लेकर चुप्पी छाई हुई थी. शीला दीक्षित अपनी ऑटोबायोग्राफी सिटीजन दिल्ली माई टाइम्स माई लाइफ में लिखती हैं, एक वर्ग का मानना था कि जिसने दिल्ली में जीत दिलाई, उसे ही जिम्मेदारी मिलनी चाहिए. वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जो शीला दीक्षित को बाहर देखना चाहते थे.

कांग्रेस हाईकमान दिल्ली में किसी विकल्प की तलाश में थी. कुछ लोगों ने शीला दीक्षित को सलाह दी कि आगे बढ़कर सरकार बनाने का दावा पेश करना चाहिए. शीला दीक्षित ने ऐसा करने से इंकार कर दिया. शीला दीक्षित कांग्रेस हाईकमान के फैसले के इंतजार में थीं.

शीला के नाम पर मुहर
2003 में दिल्ली के साथ राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा चुनाव हुए थे. कांग्रेस कहीं भी जीत नहीं पाई थी. सिर्फ दिल्ली में ही कांग्रेस जीत हासिल कर पाई. ऐसे में शीला दीक्षित का पलड़ा भारी माना जा रहा था. कांग्रेस हाईकमान पार्टी के अंदर की कलह को खत्म करने के बारे में सोच रही थी.

कुछ ही महीनों के बाद देश में आम चुनाव भी थे. ऐसे में कांग्रेस हाईकमान एक स्थिर सरकार बनाना चाहते थे. कुछ दिनों के बाद कांग्रेस के कुछ नेताओं की एक मीटिंग हुई. इस बैठक में शीला दीक्षित, प्रणब मुखर्जी और दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा भी थे. 

दूसरी बार मुख्यमंत्री
इस मीटिंग में कांग्रेस नेताओं को साफ कहा गया कि सरकार चलाने में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए. दिसंबर के दूसरे सप्ताह में विधानसभा में विधायक दल का नेता चुना. प्रणब मुखर्जी ने शीला दीक्षित को विधायक दल का नेता घोषित किया. विधायकों ने शीला दीक्षित के नाम पर मुहर लगा दी. इस तरह से शीला दीक्षित दूसरी बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं.

Read more!

RECOMMENDED