कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और चार बार के विधायक सुखविंदर सिंह सुक्खू हिमाचल प्रदेश के 15वें मुख्यमंत्री होंगे.एक बड़ा सवाल उठता है कि मुख्यमंत्री पद के लिए सुक्खू ही क्यों? दरअसल कांग्रेस आलाकमान ने फैसला यू हीं नहीं लिया है. कई बातों को ध्यान में रखते हुए प्रतिभा सिंह और मुकेश अग्निहोत्री के बजाय सुखविंदर सिंह सुक्खू को सीएम बनाने का फैसला लिया गया है. जानिए इसकी बड़ी वजह.
उपचुनाव नहीं चाहती पार्टी
कांग्रेस हाईकमान उपचुनाव नहीं चाहती है. सुखविंदर सिंह सुक्खू विधायक चुने जा चुके हैं, जबकि प्रतिभा सिंह अभी सांसद हैं. अगर प्रतिभा सिंह को मुख्यमंत्री बनाया जाता, तो कांग्रेस को दो उपचुनाव कराने पड़ते. पहला विधानसभा और दूसरा मंडी लोकसभा सीट पर. इस बार हिमाचल प्रदेश में हुए चुनाव में मंडी लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाली 17 में से 12 विधानसभा सीटों पर भाजपा की जीत हुई है. मतलब अगर उपचुनाव होते तो कांग्रेस को ये सीट हारने का डर था. वहीं, विधानसभा के अन्य सीटों पर भी जो जीत मिली है, वो बहुत कम मार्जिन से मिली है. ऐसे में उपचुनाव में भी हार का डर था.
सुक्खू की सेल्फ मेड इमेज ने अहम भूमिका निभाई
सुक्खू की सेल्फ मेड इमेज ने भी अहम भूमिका निभाई. उनके प्रतिद्वंद्वियों प्रतिभा सिंह और मुकेश अग्निहोत्री ने वीरभद्र सिंह की छाया में राजनीति शुरू की थी. प्रतिभा सिंह ने पत्नी होने के नाते और अग्निहोत्री एक पत्रकार-सह-संरक्षित व्यक्ति के रूप में. वह पूर्व छात्र नेता सुखविंदर सुक्खू की खुद के बलबूते बनाई गई छवि के खिलाफ थे, जो कभी दूध बेचते थे और जिनके पिता एक बस ड्राइवर थे.
आधे से ज्यादा विधायकों का समर्थन हासिल
68 के सदन में 40 कांग्रेस विधायकों में से सुखविंदर सुक्खू को आधे से ज्यादा का समर्थन हासिल है. यहां तक कि उनके गृह जिले हमीरपुर में जो बीजेपी के केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और उनके पिता प्रेम कुमार धूमल के गृह जिले भी हैं. यहां से कांग्रेस ने पांच में से चार सीटें जीतीं, जबकि पांचवीं भी एक कांग्रेसी नेता के पास गई, जो बागी बन गए थे.
परिवारवाद के आरोपों को खारिज करना चाहती है पार्टी
कांग्रेस पर हमेशा से परिवारवाद का आरोप लगता रहा है. प्रतिभा सिंह के पति वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश में लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे. उनके बेटे भी विधायक हैं और खुद प्रतिभा सिंह सांसद हैं. ऐसे में अगर प्रतिभा सिंह को मुख्यमंत्री बनाया जाता तो एक बार फिर से कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगता.
पार्टी के सभी स्तरों पर किया है काम
चार दशकों तक सुखविंदर सुक्खू ने हिमाचल में पार्टी के लगभग सभी स्तरों पर काम किया है. वह भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) से युवा कांग्रेस की ओर बढ़ते हुए राज्य इकाई के प्रमुख बने. उन्होंने टॉप सीट के लिए दावा किया. वीरभद्र सिंह के साथ अपनी प्रतिद्वंद्विता का कोई रहस्य नहीं बनाया. उनकी इसी स्टाइल ने उन्हें सबसे अलग नेता बनाया.
प्रियंका गांधी ने सुखविंदर के साथ मिलकर चुनाव का एजेंडा सेट किया था
हिमाचल प्रदेश चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी ने शिमला में डेरा डाल रखा था. शिमला में स्थित अपने घर से वह पूरे चुनाव पर नजर बनाए हुईं थीं. इस दौरान सुखविंदर सिंह के साथ मिलकर उन्होंने चुनाव का पूरा एजेंडा सेट किया. सुखविंदर कैंपेन के प्रभारी थे. ऐसे में दोनों ने मिलकर पूरे चुनाव की रूपरेखा ही बदल डाली.
पंजाब तक पड़ेगा असर
हिमाचल प्रदेश से सटे पंजाब में इस बार कांग्रेस को काफी नुकसान उठाना पड़ा. सत्ता तो हाथ से गई ही, साथ में सीटों में भी भारी नुकसान उठाना पड़ा. ऐसे में सुखविंदर सिंह सुक्खू के जरिए कांग्रेस पंजाब में भी अपनी पकड़ मजबूत बनाने की कोशिश करेगी.