महाराष्ट्र में इसबार बीजेपी गठबंधन महायुति को बड़ी जीत मिलती नजर आ रही है. रुझानों से साफ है कि राज्य में बीजेपी ही आ रही है. अभी तक के रुझानों में 288 सीटों में से दो तिहाई सीट पर गठबंधन को बढ़त मिल चुकी है.
राज्य में बीजेपी ने इस बार जितने भी प्रयोग किए थे उन सबका फायदा मिलते नजर आ रहा है. महाराष्ट्र में जीत के कई कारण माने जा रहे हैं. इसमें रणनीतिक योजना, कल्याणकारी योजनाएं, प्रभावी प्रचार और बिखरे हुए विपक्ष जैसे फैक्टर्स शामिल हैं. चलिए डिटेल में समझते हैं-
1. मजबूत नेतृत्व और देवेंद्र फडणवीस की भूमिका
बीजेपी की जीत का केंद्र बिंदु देवेंद्र फडणवीस का प्रभावी नेतृत्व माना जा रहा है. एक साधारण कॉर्पोरेटर से महाराष्ट्र के पहले बीजेपी मुख्यमंत्री (2014) बनने तक का उनका सफर, और अब तीसरा कार्यकाल हासिल करना, उनकी रणनीतिक कुशलता को दिखा रहा है. 2019 के चुनावों में शिवसेना से गठबंधन टूटने के बाद भी, देवेंद्र फडणवीस ने 2022 में उपमुख्यमंत्री की भूमिका अपनाकर राजनीतिक अस्थिरता का सामना किया था. लेकिन इसबार देवेंद्र फडणवीस की साफ-सुथरी छवि ने काफी फायदा दिया है.
2. महिलाओं पर केंद्रित नीतियां
बीजेपी की सफलता का एक सबसे बड़ा कारण महिलाओं पर केंद्रित योजनाएं बताई जा रही हैं. महिला सशक्तिकरण योजना और लाडकी बहना योजना ने बड़ी संख्या में महिला मतदाताओं को आकर्षित किया. सरकार ने लाडकी बहना योजना के तहत महिलाओं को सीधे बैंक में पैसे ट्रांसफर किए. पहले इसमें ₹1,500 और बाद में ₹2,500 का वादा किया गया. इस पहल ने न केवल महिलाओं के बीच आर्थिक चिंताओं खत्म किया बल्कि उन्हें अपने परिवारों में निर्णय लेने में सक्षम बनाया. महिला वोटर्स का समर्थन बीजेपी को मिला.
3. ओबीसी और मराठा मतदाताओं पर फोकस
ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) और मराठा मतदाताओं तक पहुंचना बीजेपी के अभियान का एक और बड़ा लक्ष्य था. इन समूहों के लोगों को लुभाया जा सके, इसके लिए गठबंधन ने कई प्रयास किए थे. इसके साथ ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नारा, "एक हैं तो सुरक्षित हैं", ने ओबीसी मतदाताओं को महायुति के बैनर तले एकजुट करने में बड़ी भूमिका निभाई. इसके अलावा, मराठा समुदाय की शिक्षा और रोजगार में आरक्षण जैसी पुरानी मांगों को संबोधित कर बीजेपी ने इस समूह के बीच अपनी अपील को बढ़ाया.
4. विदर्भ का बड़ा रोल रहा
विदर्भ, जहां बीजेपी पहले किसान असंतोष और लोकल लोगों की शिकायतों के कारण संघर्ष कर रही थी, ने इस बार चुनाव में बड़ा बदलाव देखा. कपास और सोयाबीन किसानों की चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार ने उन्हें जो वित्तीय राहत दी, उसके अच्छे परिणाम मिले. क्षेत्र की कमजोरियों को पहचानते हुए, बीजेपी ने पिछली गलतियों से बचकर उनका विश्वास जीता. इसके लिए उन्होंने अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए. इस रणनीति से विदर्भ में गठबंधन के प्रदर्शन में जबरदस्त सुधार हुआ.
5. RSS का प्रभाव और जमीनी स्तर पर मजबूती
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), ने चुनाव में पर्दे के पीछे बड़ी भूमिका निभाई. नागपुर में मुख्यालय होने के कारण, आरएसएस ने अपने स्वयंसेवक नेटवर्क का काफी उपयोग किया. महायुति के अभियान को मजबूत करने के लिए इनका बड़ा रोल रहा है. हजारों आरएसएस कार्यकर्ताओं ने ग्रामीण और शहरी महाराष्ट्र में जाकर बीजेपी के प्रमुख संदेशों का प्रचार किया और जमीनी स्तर पर मतदाताओं से जुड़ने का काम किया.
इसके अलावा, जहां बीजेपी और उसके सहयोगी एकजुट थे, वहीं विपक्ष अपने आंतरिक मतभेदों से निपट रहा था. कांग्रेस, नेशनल कांग्रेस पार्टी (NCP), और शिवसेना (उद्धव गुट) मतदाताओं की चिंताओं को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में विफल रहे. कांग्रेस विशेष रूप से आंतरिक विवादों के कारण कमजोर कड़ी के रूप में उभरी.