लोकसभा चुनाव 2024 को फतह करने के लिए मोदी सरकार ने कमर कस ली है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अपने चुनावी वादों में से एक-एक करते हुए सबको पूरा करते जा रही है. पहले अनुच्छेध 370 को खत्म किया, इसके बाद राम मंदिर का निर्माण कराया. अब बीजेपी अपने वादों में से एक समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने के दावे के साथ 2024 के लोकसभा चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है. यूसीसी दशकों से पार्टी के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा रहा है.
उत्तराखंड होगा पहला राज्य
उत्तराखंड विधानसभा सत्र 8 फरवरी तक आयोजित किया जाएगा. इसमें पुष्कर सिंह धामी सरकार यूसीसी विधेयक सदन में पेश करेगी. उत्तराखंड कैबिनेट ने उच्च स्तरीय सरकार की ओर से नियुक्त समिति की सिफारिशों के बाद, रविवार को समान यूसीसी विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी है. आजादी के बाद यूसीसी लागू करने वाला पहला राज्य उत्तराखंड होगा. गोवा में पुर्तगाली शासन के समय से ही यूसीसी लागू है.
क्या है समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता यानी एक देश और एक कानून. जिस देश में भी समान नागरिक संहिता लागू होती है, उस देश में विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना, संपत्ति के बंटवारे से लेकर अन्य सभी विषयों को लेकर जो भी कानून बनाए गए हैं, वो सभी धर्म के नागरिकों को समान रूप से मानने होते हैं. फिलहाल भारत में कई निजी कानून धर्म के आधार पर तय हैं.
ऐसे में अगर समान नागरिक संहिता को लागू किया जाता है तो देश में सभी धर्मों के लिए वही कानून लागू होगा, जिसे भारतीय संसद की ओर से तय किया जाएगा. समान नागरिक संहिता भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 का हिस्सा है. संविधान में इसे नीति निदेशक तत्व में शामिल किया गया है. संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है.
बीजेपी को मिल सकता है बड़ा लाभ
समान नागरिक संहिता के लागू होने पर भाजपा मतदाताओं से यह कह सकती है कि उसने राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 और तीन तलाक के बाद समान नागरिक संहिता का एक और वादा निभा दिया. बीजेपी सत्ता में आने पर यूसीसी को लागू करने का वादा करने वाली पहली पार्टी थी और यह मुद्दा उसके 2019 के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र का भी हिस्सा था.
समान नागरिक संहिता लागू करने से भाजपा की विश्वसनीयता और ज्यादा बढ़ जाएगी. उसे इसका बड़ा चुनावी लाभ मिल सकता है. विशेषकर असम, पश्चिम बंगाल या केरल जैसे राज्यों में इसका बड़ा असर हो सकता है. बड़ा चुनावी वादा निभाने के कारण भाजपा को इसका बड़ा चुनावी लाभ मिल सकता है और उसकी सीटों की संख्या बढ़ाने में यह मुद्दा बड़ी भूमिका निभा सकता है. हिंदू ही नहीं मुसलमानों के बीच भी ऐसे लोग हैं जो यूसीसी का समर्थन कर रहे हैं. भाजपा लोकसभा चुनाव 2024 के प्रचार के दौरान जनता से यह कह सकती है कि वह जो भी वादा करती है उसे हर हाल में पूरा करती है. इससे लोगों का इस पार्टी पर और विश्वास बढ़ेगा और वे जमकर वोट बीजेपी को देंगे.
इसलिए कई राज्यों में एक साथ यूसीसी को नहीं ला रही बीजेपी
पूरे देश में एक साथ यूसीसी को लागू करने से इस पर कड़ी प्रतिक्रिया हो सकती है. संभवतः यही कारण है कि भाजपा ने इसे एक साथ पूरे देश में लाने की बजाय कुछ जगहों पर लाकर इसके असर का मूल्यांकन करना चाहती है. यदि बेहतर परिणाम मिले, तो बाद में इसे पूरे देश में लाया जा सकता है. उत्तराखंड के बाद भाजपा का लक्ष्य उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र, असम, त्रिपुरा और मणिपुर में यूसीसी को लागू करना है.
विपक्षी पार्टियां लगा रहीं ये आरोप
समान नागरिक संहिता को लेकर भाजपा की योजना जनता के बीच जाकर यह बताने की है कि समान नागरिक संहिता क्यों जरूरी है और इसके क्या लाभ हैं. उधर कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियों का मानना है कि लोकसभा चुनाव से पहले तूल दिया जा रहा है. यह ध्रुवीकरण की कोशिश है. विपक्ष इसे मतदाताओं को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की कोशिश बता रहा है. उसके अनुसार यह हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद करने की भाजपा की सोची समझी चाल है.
किस धर्म पर क्या पड़ेगा यूसीसी का प्रभाव
1. हिंदू धर्म: यूसीसी यदि आता है तो हिंदू विवाह अधिनियम (1955), हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) जैसे मौजूदा कानूनों को संशोधित करना होगा. हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 2(2) कहती है कि इसके प्रावधान अनुसूचित जनजातियों पर लाग नहीं होंगे. कानून की धारा 5(5) और 7 में कहा गया है कि प्रथागत प्रथाएं प्रावधानों पर हावी रहेंगी. लेकिन यूसीसी के बाद इनकी छूट नहीं मिलेगी.
1. मुस्लिम धर्म: मुस्लिम पर्सनल (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 में कहा गया है कि शरीयत या इस्लामी कानून के तहत शादी, तलाक और भरण-पोषण लागू होगा. यदि यूसीसी लागू होता है तो शरीयत कानून के तहत तय विवाह की न्यूनतम उम्र बदल जाएगी और बहुविवाह जैसी प्रथाएं खत्म हो जाएंगी.
3. सिख धर्म: सिखों की शादी संबंधित कानून 1909 के आनंद विवाह अधिनियम के अंतर्गत आते हैं. हालांकि, इसमें तलाक का कोई प्रावधान नहीं है. ऐसे में तलाक के लिए उनपर हिंदू विवाह अधिनियम लागू होता है. यदि यूसीसी आता है तो एक सामान्य कानून सभी धर्म के लोगों पर लागू होगा. ऐसे में आनंद विवाह अधिनियम भी खत्म हो जाएगा.
4. ईसाई धर्म: ईसाई तलाक अधिनियम 1869 की धारा 10A (1) के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन देने से पहले पति-पत्नी को कम से कम दो साल तक अलग रहना अनिवार्य है. यूसीसी आने के बाद ये खत्म हो जाएगा. 1925 का उत्तराधिकार अधिनियम ईसाई माताओं को उनके मृत बच्चों की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं देता है. ऐसी सारी संपत्ति पिता को विरासत में मिलती है. यूसीसी आने पर यह प्रावधान भी खत्म हो जाएगा.
5. पारसी धर्म: पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 में प्रावधान है कि जो भी महिला किसी अन्य धर्म के व्यक्ति से शादी करती है, वह पारसी रीति-रिवाजों और रीति-रिवाजों के सभी अधिकार खो देगी, लेकिन यूसीसी आने पर यह प्रावधान समाप्त हो जाएगा. पारसी धर्म में गोद ली हुई बेटियों को अधिकार नहीं दिए जाते. जबकि गोद लिया बेटा सिर्फ पिता का अंतिम संस्कार कर सकता है. यदि यूसीसी लागू हुआ तो सभी धर्मों के लिए संरक्षकता और हिरासत कानून सामान्य हो जाएंगे और यह खत्म हो जाएगा.