ज्यादातर फिल्में एक्शन, रोमांस, ड्रामा या फिर थ्रिलर आदि जॉनर पर बनती हैं. एक ऐसी कॉमेडी फिल्म बनाना जो दर्शकों को एंटरटेन कर सके बहुत बड़ी बात होती है.वैसे तो इंडस्ट्री में कई बेहतरीन कॉमेडियन थे लेकिन यहां सूरमा भोपाली की जगह कोई नहीं ले सकता है. फिल्म 'शोले' में सूरमा भोपाली का किरदार निभाने वाले जगदीप ने 7 दशक के करियर में 400 फिल्मों में काम किया. जगदीप एक बेहतरीन कॉमेडियन थे.सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी के रूप में जन्मे जगदीप जिन्हें लोग सूरमा भोपाली के नाम से भी जानते हैं को अपने जीवन की शुरुआत से ही कई कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा.
मां को करनी पड़ी रसोइये की नौकरी
जगदीप का जन्म 29 मार्च 1939 को मध्य प्रदेश के दतिया में हुआ था. परिवार संपन्न था और जगदीप बड़े नाज़ो में पले थे. लेकिन विभाजन के दंश ने उन्हें बरबाद कर दिया. भारत-पाक बंटवारे में हुए दंगों में उनके पिता मारे गए.जगदीप के पिता बैरिस्टर थे.विभाजन में उनके शेष परिवार को आजीविका की तलाश में मुंबई आने के लिए मजबूर होना पड़ा. घरवालों के पास कुछ भी सेविंग्स नहीं थी. इस वजह से जगदीप की मां को एक स्थानीय अनाथालय में रसोइया की नौकरी करनी पड़ी. जगदीप के 6 भाई और 2 बहनों में सबसे छोटे थे.परिवार के भरण-पोषण के लिए और मां को संघर्ष करता देख जगदीप अक्सर छोटी-मोटी नौकरियों की तलाश में शहर में घूमते रहते थे. उन्होंने पढ़ाई छोड़कर यही काम करने का मन बना लिया. लेकिन जब मां को ये बात पता चली तो उन्होंने बहुत गुस्सा किया.लेकिन काफी मनाने के बाद वो मान गई. जगदीप पढ़ाई छोड़कर काम करने लगे. जब वो 7 या 8 साल के थे तो उन्होंने सड़कों पर गुब्बारे, साबुन-कंघी आदि बेचे और फैक्ट्री में भी काम किया.
कैसे मिली पहली फिल्म
यह बात है साल 1951 की जब एक दिन वो शहर में घूम रहे थे और उन्हें डेस्टिनी का बुलावा आया. उस दौरान एक निर्माता बी आर चोपड़ा अपनी आने वाली फिल्म अफसाना के लिए प्रतिभा की तलाश कर रहे थे और एक ऐसा एक्टर खोज रहे थे जो औरों से अलग हो. यहीं पर जगदीप की मुलाकात बीआर चोपड़ा से हुई. जावेद जाफरी ने अपने पिता के सिनेमा सफर को याद करते हुए एक बार कहा था,"मेरे पिता बच्चे थे जब वह विभाजन के बाद नौकरी की तलाश में थे. तब किसी ने उनसे पूछा कि क्या वह फिल्मों में काम करना चाहते हैं तो उन्होंने कहा कि उन्हें बस एक नौकरी की जरूरत है. उन्हें एक चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर फिल्म में अभिनय करने के लिए सड़क से चुना गया था. उनका इंडस्ट्री में आना तय था,यह भाग्य है.”
टीम को चाइल्ड आर्टिस्ट की तलाश थी. चोपड़ा की कास्टिंग टीम ने उनसे फिल्मों में काम करने के लिए पूछा. जगदीप को ये बहुत ही दिलचस्प लगा. उन्होंने फिल्मों के बारे में ना कभी सुना था और ना ही कोई फिल्म देखी थी.उन्होंने पूछा कि इस काम के लिए उन्हें कितना मेहनताना मिलेगा. जवाब मिला- 3 रुपए. इतना सुनते ही जगदीप ने फिल्म में काम करने के लिए हां कर दी.फिल्म अफसाना के बाद जगदीप को लैला मजनू, फुटपाथ जैसी फिल्मों में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम करने का ऑफर मिला.
नेहरू ने दी अपनी छड़ी
जगदीप ने मुन्ना,अब दिल्ली दूर नहीं है,हम पंछी एक डाल के जैसी फिल्म में चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर काम किया था.ये सभी बेहतरीन फिल्म थीं.इन फिल्मों को तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने भी देखा और सभी बाल कलाकारों को घर नाश्ते पर बुलाया.इस दौरान चाचा नेहरू सभी बच्चों को गुलदस्ता भी दे रहे थे लेकिन जब जगदीप की बारी आई तो गुलदस्ते खत्म हो गए. इस पर प्रधानमंत्री ने जगदीप को अपनी छड़ी उपहार के तौर पर दे दी.प्रधानमंत्री नेहरू की दी हुई छड़ी को जगदीप ने ताउम्र संभाल कर रखा.
खराब गले में बोला डायलॉग
फिल्म सुरक्षा की शूटिंग के दौरान जगदीप का गला खराब हो गया था. जब काफी दिनों के आराम के बाद भी उनका गला ठीक नहीं हुआ तो मेकर्स ने उन्हें वैसे ही डायलॉग बोलने के लिए कहा. जब फिल्म रिलीज हुई तो दर्शकों को दबी आवाज में उनकी डायलॉग डिलीवरी काफी पसंद आई. इसके बाद कई फिल्मों में उन्हें इसी तरह डायलॉग बोलने के लिए कहा गया.
कैसे बने सूरमा भोपाली
'सूरमा भोपाली' का किरदार भोपाल के फॉरेस्ट ऑफिसर नाहर सिंह पर आधारित था. फिल्म शोले में ये किरदार जगदीप ने निभाया था.भोपाल में अरसे तक रहे जावेद अख्तर ने नाहर सिंह के किस्से सुन रखे थे,उन्होंने नाहर से मिलता जुलता किरदार सूरमा भोपाली बनाया और ये रोल जगदीप को ऑफर किया.शोले और सूरमा भोपाली का रोल, दोनों ही हिट रहे.