बॉलीवुड का जौहर परिवार, धर्मा प्रोडक्शंस (Dharma Productions) का फिल्म इंडस्ट्री में जाना-माना नाम है. धर्मा प्रोडक्शन हाउस के संस्थापक यश जौहर आज भी भारत के सर्वश्रेष्ठ दिग्गज फिल्म निर्माताओं में से एक माने जाते हैं. उनके बेटे करण जौहर (Karan Johar) अब धर्मा प्रोडक्शंस का चेहरा हैं और प्रोडक्शन हाउस इंडस्ट्री में सबसे प्रतिष्ठित लोगों में से एक हैं.
जहां यश जौहर (Yash Johar) और करण जौहर को लगभग हर कोई जानता है, वहीं कई लोग करण के चाचा और यश जौहर के बड़े भाई इंद्रसेन जौहर (I.S. Johar) को नहीं जानते हैं. इंद्रसेन जौहर यानी आईएस जौहर अपने समय के प्रतिभाशाली एक्टर्स में से एक थे. आईएस जौहर को डॉयरेक्शन और एक्टिंग समेत सभी विधाओं में महारत हासिल थी. हालांकि आईएस जौहर के यश जौहर या करण से संबंध के बारे में कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं है. लेकिन कई मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि यश जौहर उनके छोटे भाई थे. कहते हैं कि असल जिंदगी में मस्तमौला और बेबाक आई.एस. जौहर की शख्सियत इतनी कमाल थी कि अपनी हाजिर जवाबी से वो बड़ों-बड़ों की बोलती बंद कर देते थे. मजाकिया अंदाज और बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग के चलते कई लोग उन्हें 'इंडियन चार्ली चैपलिन' (Indian Charlie Chaplin ) कहते थे, हालांकि आई एस जौहर इसे अपनी बेइज्जती समझते थे.
भाई के चक्कर में पिटाई हो जाती थी
आई.एस जौहर का जन्म 16 फरवरी 1920 को तत्कालीन ब्रिटिश इंडिया के झेलम जिले के तलागंग में हुआ था. बंटवारे के बाद तलागंग, पाकिस्तान के हिस्से आया था. यश जौहर (करण जौहर के पिता) उनके बड़े भाई थे. इसके अलावा उनका एक जुड़वा भाई भी था जिसकी वजह से उसकी कई बदमाशियों की सजा इन्हें मिलती थी. उनका भाई बदमाशी करके भाग जाता था, लेकिन पिता गलतफहमी में उन्हें पीट देते थे. आई.एस.जौहर पढ़ने-लिखने में अच्छे थे लेकिन भाई अपराधी प्रवृत्ति का था. एक बार भाई के अपराध के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा.
आईएस जौहर को उस वक्त हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का सबसे पढ़ा-लिखा कलाकार कहा जाता था. उन्होंने इकोनॉमिक्स और पॉलिटिक्स में मास्टर डिग्री हासिल की थी और इसके बाद उन्होंने एलएलबी भी की. आजादी से पहले उस जमाने में इतनी पढ़ाई कोई नहीं करता था और ये आसान भी नहीं था.
भारत आए और फिर लौट ही नहीं पाए
साल 1947 में अंग्रेजों से आजादी मिलने के साथ ही भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हो गया. बंटवारे में आई.एस.जौहर का गांव तलागंग, पाकिस्तान के हिस्से में आ गया. हालांकि उस दौरान भी पाकिस्तान के लोग रिश्तेदारों से मिलने-मिलाने के लिए अक्सर भारत आते रहते थे. इसी दौरान आई.एस.जौहर भी अपने परिवार के साथ एक शादी में शामिल होने के लिए पाकिस्तान से पटियाला आए थे. इसी बीच दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ गया और दंगे शुरू हो गए. दंगों में पाकिस्तान की हिंदू कॉलोनी जला दी गई. दंगों में इतने लोग मारे गए कि डर की वजह से आई.एस.जौहर का परिवार फिर कभी पाकिस्तान नहीं लौटा और भारत में ही बस गया.
फिल्मों में कैसे आए?
आई.एस. जौहर को लिखने का भी बहुत शौक था. उन्होंने फिल्म 'एक थी लड़की' की स्क्रिप्ट लिखी थी. ये स्क्रिप्ट 40 के दशक के रूप के. शौरी को इतनी पसंद आई कि उन्होंने इस टाइटल के साथ फिल्म बनाई. बतौर लेखक ये उनकी पहली फिल्म थी. उन्होंने फिल्म में एक हास्य कलाकार का रोल भी प्ले किया था. अभिनय के साथ-साथ आई.एस. जौहर ने 12 फिल्मों का निर्देशन भी किया और करीब 4 फिल्में प्रोड्यूस कीं. इनमें बेवकूफ (1960), जौहर महमूद इन गोवा (1965), 5 राइफल्स (1974), नसबंदी (1978) शामिल हैं.
अपने नाम पर फिल्म बनाने का था शौक
साल 1965 में आई.एस. जौहर ने अपने नाम पर फिल्म जौहर महमूद इन गोवा डायरेक्ट की. फिल्म चल गई और उन्हें इससे अच्छे पैसे भी मिले. इससे इंद्रसेन इतने उत्साहित हुए कि उन्होंने अपने नाम के टाइटल से कई फिल्म बना डालीं. ये फिल्में थीं जौहर महमूद इन गोवा, जौहर इन कश्मीर, जौहर इन बॉम्बे, मेरा नाम जौहर, जौहर महमूद इन हॉन्ग कॉन्ग. इसके अलावा उन्होंने 7 फिल्मों में अपना नाम जौहर ही रखा.
5 शादी और 5 तलाक
आई.एस. जौहर को भारत का पहला रजिस्टर्ड तलाक लेकर तलाक का ट्रेंड लाने का क्रेडिट भी दिया जाता है. उन्होंने 5 शादियां की और पांचों से तलाक ले लिया था. जौहर ने 1943 में लाहौर में रम्मा बैंस से शादी की. बाद में जौहर और रम्मा का तलाक हो गया और यह देश के सबसे शुरुआती कानूनी तलाक में से एक बन गया.
मेनका गांधी की मैगजीन के लिए ब्लॉग लिखे
साल 1978 में मेनका गांधी ने सूर्या नाम की मैगजीन लॉन्च की. इस मैगजीन का एक कॉलम आई.एस. जौहर के खाते में आया. वो इस मैगजीन में राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर व्यंग्य लिखते थे. इसके अलावा वो पॉपुलर फिल्मफेयर मैगजीन में Question Box नाम से एक कॉलम लिखते थे.
जब भुट्टो भारत आई थीं
साल 1971 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध में पाकिस्तान की हार के बाद 1972 में वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो भारत आए. वो शिमला समझौते को लेकर बातचीत करना चाहते थे. जुल्फिकार के साथ उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो भी भारत आई थीं. आई.एस. जौहर इतने बेबाक थे कि इतने सेंसिटिव मुद्दे के बीच उन्होंने 18 साल की बेनजीर भुट्टो को अपनी फिल्म में हीरोइन बनने का ऑफर दे दिया. उनके इस ऑफर की भारत समेत बांग्लादेश, पाकिस्तान में भी खूब चर्चा हुई थी. हालांकि बेनजीर ने इसके लिए मना कर दिया और कहा कि वो जीवन में कुछ और करना चाहती हैं.
10 मार्च 1984 को आई.एस. जौहर का लंबी बीमारी से निधन हो गया. उन्होंने मौत से दो-तीन दिन पहले ही अपने बच्चों से कहा था कि उनके मरने की खबर किसी को न दी जाए. उनके बच्चों ने ऐसा ही किया बहुत कम लोगों कि मौजूदगी में ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया.