Filmy Friday Shyam Benegal: समाज के सच को जस का तस परदे पर उतारने वाला डायरेक्टर, मिल चुके हैं 18 National Awards

Filmy Friday: श्याम बेनेगल भारतीय सिनेमा के आयकॉन हैं और Parallel Cinema Movement में उनका योगदान भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को आकार देने में महत्वपूर्ण रहा है.

Shyam Benegal
निशा डागर तंवर
  • नई दिल्ली ,
  • 15 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 4:15 PM IST
  • फिल्ममेकिंग से पहले करते थे एडवरटाइजिंग
  • आर्ट सिनेमा के जनक हैं श्याम बेनगल

श्याम बेनेगल भारतीय सिनेमा इंडस्ट्री का ऐसा नाम है जिनके बारे में बात करने के लिए जरूरी है कि आपने उनका काम देखा हो. वह सिनेमा के ऐसे स्टार हैं जिन्हें उनकी लाइफस्टाइल या रुतबे ने स्टार नहीं बनाया, बल्कि धरातल से जुड़ी उनकी फिल्मों ने उन्हें भारतीय सिनेमा के शिखर पर बिठाया है. श्याम बेनेगल मशहूर फिल्म निर्माता और पटकथा लेखक हैं. अपनी पहली चार फीचर फिल्मों अंकुर (1973), निशांत (1975), मंथन (1976) और भूमिका (1977) के साथ वह भारत में "पैरेलल सिनेमा" के नाम से जानी जाने वाली फिल्मों की नई शैली के अग्रदूत बन गए.  

बेनेगल की फ़िल्में अक्सर लैंगिक समानता, सामाजिक न्याय और राजनीतिक संघर्षों के मुद्दों से डील करती थीं. उन्होंने भारतीय सिनेमा इंडस्ट्री को स्मिता पाटिल, शबाना आज़मी, नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी जैसे अभिनेता दिए. इन स्टार्स के लिए श्याम बेनेगल सिर्फ डायरेक्टर नहीं बल्कि उनके मेंटर हैं. आज #Filmy_Friday में हम आपको बता रहे हैं श्याम बेनेगल और उनके सिनेमा के बारे में, जो बॉलीवुड से बहुत अलग है.

फिल्ममेकिंग से पहले करते थे एडवरटाइजिंग
हैदराबाद में जन्मे श्याम बेनेगल ने निज़ाम कॉलेज से इकॉनोमिक्स की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उन्होंने फिल्म एंड टेलेविजन इंस्टिट्यूट ऑफ पूणे (FTII) से एडवरटाइजिंग में पीजी डिप्लोमा किया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, फिल्मों में आने से पहले श्याम बेनेगल फोटोग्राफी करते थे और फिर उन्होंने एडवरटाइजिंग एजेंसी में बतौर कॉपीराइटर काम किया. भारतीय सिनेमा इंडस्ट्री में उन्होंने बतौर डायरेक्टर अपनी शुरुआत फिल्म अंकुर (1974) से की. अंकुर के बाद उनकी निशांत (1975) और मंथन (1976) जैसी फिल्में आईं. इन सभी फिल्मों में सामंती व्यवस्था के मुद्दे को उठाया गया था.

श्याम बेनेगल की इन फिल्मों को न सिर्फ ऑडियंस का प्यार मिला बल्कि समीक्षकों की कसौटी पर भी ये फिल्में खरी उतरीं. दूसरे देशों में भी इन फिल्मों को क्लासिक फिल्में माना जाता है. हालांकि, बात अगर इन फिल्मों की कहानियों की करें तो बताते हैं कि श्याम बेनेगल की फिल्मों का कंटेंट उनके निजी अनुभवों से प्रेरित रहा है. 1940 के दशक में श्याम बेनेगल ने हैदराबाद में एक कॉलेज के छात्र के रूप में, दमनकारी सामंती सिस्टम के खिलाफ किसान विद्रोह को करीब से देखा. आंदोलन का समर्थन करने वाले उनके कई मित्र जेल में बंद रहे और उन्होंने देखा कि कैसे धरातल पर लोगों के साथ अन्याय होता है. और उनके यही अनुभव उनकी फिल्मों का आधार बने. 

आर्ट सिनेमा के जनक- श्याम बेनगल 
श्याम बेनेगल की फिल्मों ने भारतीय समाज में प्रचलित विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर प्रकाश डाला. उनकी फिल्मों में निशांत, भूमिका, मंडी, जुनून और त्रिकाल शामिल हैं. उन्होंने कई टेलीविजन सीरिज का भी निर्देशन किया, जिनमें बेहद लोकप्रिय 'भारत एक खोज' भी शामिल है. बेनेगल का सिनेमा सत्यजीत रे और विटोरियो डी सिका से प्रभावित था. उन्होंने पारंपरिक बॉलीवुड फॉर्मूले को चुनौती दी और फिल्मों के लिए यथार्थवादी और सामाजिक रूप से जागरूक दृष्टिकोण प्रस्तुत करने की कोशिश की. इसलिए उन्हें भारत में आर्ट सिनेमा का जनक कहा गया. 

उनकी फिल्मों का न सिर्फ कंटेंट बल्कि फिल्म बनाने का तरीका भी दूसरों से अलग था. श्याम कमर्शियल सफलता से ज्यादा रियलिज्म के बारे में सोचते थे. यह उनके काम करने का तरीका ही था कि मंथन जैसी क्लासिक फिल्म की फंडिंग किसी कंपनी ने नहीं बल्कि किसानों ने की. लगभग पांच लाख किसानों ने फिल्म के लिए दो-दो रुपए का चंदा इकट्ठा किया और यह भारत की पहली क्राउडफंडेड फिल्म थी.  

अलग होता था बेनेगल के सेट का माहौल 
श्याम बेनेगल के साथ काम करने वाले अभिनेता और अभिनेत्रियों के लिए वह किसी फिल्म स्कूल से कम नहीं हैं. एक्टर रजित कपूर ने उनके बारे में एक इंटरव्यू में बताया कि श्याम बेनेगल के मूवी सेट बहुत अलग होते थे. उनके सेट पर गाली-गलौच करने की मनाही थी. वह एक्टर के काम को देखकर उसे पूरी आजादी देते थे और उसके हिसाब से अपने सीन, डायलॉग तक बदल देते थे. रजित का कहना है कि बेनेगल अगर देखते थे कि एक्टर बहुत मेहनत कर रहा है तो वह हर तरह से उसकी मदद करते थे. 

उनका सेट अपने टाइम-टेबल और अनुशासन के लिए जाना जाता था. वह एक्टर्स को हमेशा सेट पर आने से पहले अपनी लाइनें याद करने की नसीहत देते थे ताकि समय से शूट हो सके. उनके सेट पर 8 से 9 घंटे की ही शूटिंग होती थी क्योंकि सभी एक्टर पहले से तैयार होकर आते थे. 

मिले हैं कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार
श्याम बेनेगल ने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं, दुनिया भर में उनकी फिल्मों की स्क्रीनिंग हुई हैं और उन्हें कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में जूरी के रूप में आमंत्रित किया गया है. एक विपुल लेखक और एक लोकप्रिय वक्ता, श्याम बेनेगल को हाशिये पर पड़े लोगों की तर्कपूर्ण आवाज़ के रूप में जाना जाता है. उन्हें 1976 में पद्म श्री और 1991 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.

उन्हें जीवन भर की उपलब्धि के लिए भारतीय सिनेमा में सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उन्होंने सात बार हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए नेशनल अवॉर्ड जीते. अपनी 24 फिल्मों के लिए उन्हें 18 नेशनल अवॉर्ड्स मिल चुके हैं. अगर आपको फिल्मों में दिलचस्पी है तो श्याम बेनेगल की फिल्में जरूर देखें. 

 

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