Filmy Friday: ये शाम मस्तानी... जिंदगी एक सफर है सुहाना... किशोर कुमार गानों में लेकर आए थे योडलिंग टेकनीक, रफी, लता और आशा भोसले से भी निकल गए थे आगे

योडलिंग किसी तरह का कोई डिवाइस या इक्विपमेंट नहीं है. ये एक तरह का सिंगिंग फॉर्म है. इसकी जड़ें स्विस आल्प्स में मिलती हैं,  जहां चरवाहे दूर तक अपनी आवाज को पहुंचाने के लिए इस तकनीक का उपयोग करते थे. इसमें हाई पिच और लो पिच का कॉन्सेप्ट होता है.

Kishore Kumar (Photo: India Today Group)
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 06 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 10:22 AM IST
  • झुमरू में किया योडलिंग का इस्तेमाल 
  • सिनेमा के साउंडस्केप को हमेशा के लिए बदल दिया

थोड़ी सी जो पी ली है… ये शाम मस्तानी ... जिंदगी एक सफर है सुहाना... किशोर कुमार के ये गाने आपको सुनने में नॉर्मल गानों की तरह लग सकते हैं. लेकिन ये काफी अलग थे क्योंकि इसमें योडलिंग टेक्नीक का इस्तेमाल हुआ था. जी हां योडलिंग …  

दरअसल, साल 1969 कई कारणों से काफी महत्वपूर्ण रहा है. ये वो साल था जब दुनिया ने पहली बार किसी इंसान को चांद पर उतरते देखा था. ठीक इसी समय बॉलीवुड भी बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा था. इस पूरे बदलाव का फोकस पॉइंट थे किशोर कुमार और उनकी योडलिंग टेक्नीक. इस टेक्नीक ने भारतीय सिनेमा के साउंडस्केप को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया. उनकी अलग सिंगिंग स्किल में स्विस और ऑस्ट्रेलियाई योडलिंग की गूंज थी. और यही वजह रही कि किशोर कुमार के गाने पॉपुलैरिटी में मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर और आशा भोसले जैसे महान गायकों से भी आगे निकल गए. 

संगीत में योडलिंग का इतिहास
दरअसल, योडलिंग किसी तरह का कोई डिवाइस या इक्विपमेंट नहीं है. ये एक तरह का सिंगिंग फॉर्म है. इसकी जड़ें स्विस आल्प्स में मिलती हैं,  जहां चरवाहे दूर तक अपनी आवाज को पहुंचाने के लिए इस तकनीक का उपयोग करते थे. इसमें हाई पिच और लो पिच का कॉन्सेप्ट होता है. इसके लिए छाती की आवाज और फाल्सेटो के बीच तेजी से बदलाव करने होते हैं, जिससे एक अलग तरह की हाई पिच वाली साउंड निकलती है. खुली जगहों पर ये और भी अच्छी तरह से फैलती है. समय के साथ, योडलिंग केवल एक संचार करने का तरीका नहीं था बल्कि एक सिंगिंग टेक्नीक बन गई. विशेष रूप से स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया और दक्षिणी जर्मनी में गानों में इसका इस्तेमाल किया जाने लगा. 

अमेरिकी लोक और देशी संगीत ने भी योडलिंग को अपनाया. जिम्मी रॉजर्स ने इसे सबसे पहले इस्तेमाल किया, जिन्हें "कंट्री म्यूजिक के जनक" के रूप में जाना जाता है. 1920 के दशक के अंत और 1930 के दशक की शुरुआत में जिम्मी रॉजर्स की *ब्लू योडेल* सीरीज ने अमेरिकी दर्शकों को काफी प्रभावित किया था. 

किशोर कुमार की योडलिंग
किशोर कुमार, का जन्म आभास कुमार गांगुली के नाम से हुआ था. लेकिन बाद में चलकर वे किशोर कुमार बन गए. हालांकि, संगीत में उनके पास कोई प्रोफेशनल ट्रेनिंग नहीं थी, लेकिन अपनी नेचुरल स्किल से उन्होंने एक ऐसी गायन शैली को अपनाया कि लोग उनके दीवाने हो गए. बॉलीवुड संगीत में उनके सबसे अनूठे योगदानों में से एक उनका योडलिंग का उपयोग था. 

डेरेक बोस द्वारा लिखित उनकी जीवनी “किशोर कुमार: मेथड इन मैडनेस” के अनुसार, किशोर को उनके छोटे भाई, अनुप कुमार ने योडलिंग से परिचित कराया था. उनके पास ऑस्ट्रियाई म्यूजिक की कुछ रिकॉर्डिंग थी जिनमें योडलिंग का इस्तेमाल हुआ था. किशोर कुमार को ये टेक्नीक काफी पसंद आई. उन्होंने इसका तब तक अभ्यास किया जब तक उन्होंने इसमें महारत हासिल नहीं कर ली. 

फोटो- इंडिया टुडे

झुमरू में किया योडलिंग का इस्तेमाल 
योडलिंग के प्रयोग सबसे पहली बार उन्होंने 1961 की फिल्म झुमरू में किया था. इसके मेन ट्रैक “मैं हूं झूम झूम झुमरू” में योडलिंग और भारतीय लोक संगीत का एक मिश्रण था. भारतीय दर्शक पहली बार इस तरह की तकनीक को सुन रहे थे. 

मोहम्मद रफी, मन्ना डे और लता मंगेशकर जैसे प्रोफेशनल सिंगर्स की दुनिया में किशोर कुमार के योडलिंग वाले गाने अलग ही दिखने लगे. उनकी योडलिंग एक ट्रेडमार्क बन गई. 

बॉलीवुड म्यूजिक का साल 1969 
जबकि किशोर कुमार 1950 के दशक से बॉलीवुड में सक्रिय थे, लेकिन वे साल 1969 में पॉपुलर हुए. यही वह साल था जब उन्होंने फिल्म ‘आराधना’ में राजेश खन्ना के लिए गाना गाया. आराधना के ज्यादातर गाने, जैसे- मेरे सपनों की रानी और रूप तेरा मस्ताना-काफी ज्यादा हिट हुए. 

दिलचस्प बात यह है कि एस.डी. बर्मन ने मूल रूप से मोहम्मद रफी के साथ कुछ गाने रिकॉर्ड किए थे, लेकिन जब रफी एक अंतरराष्ट्रीय दौरे पर गए, तो आर.डी. बर्मन ने किशोर कुमार को गाने के लिए कहा. बस यही निर्णय गेम-चेंजर साबित हुआ. किशोर का गाना ‘रूप तेरा मस्ताना’ ने लोगों को उनका दीवाना बना दिया था. किशोर कुमार की अलग आवाज और अंदाज मोहम्मद रफी जैसे दिग्गजों पर भी भारी पड़ने लगा. 

योडलिंग के साथ किशोर कुमार के पॉपुलर गाने

गाना

फिल्म

नखरेवाली

नई दिल्ली (1956)
पांच रुपैया बारह आना और हाल कैसा है जनाब का

चलती का नाम गाड़ी (1958)

मैं हूं झुम झुम झुम झुमरू

झुमरू (1961)

ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत

तीन देवियां (1965)

ये दिल ना होता बेचारा 

ज्वेल थीफ (1967)

तुम बिन जाऊं कहां 

 प्यार का मौसम (1969)

ये शाम मस्तानी 

कटी पतंग (1970)

चला जाता हूं 

मेरे जीवन साथी (1972)

कितने सपने कितने अरमान

मेरे जीवन साथी (1972)

देखा ना हाय रे 

बॉम्बे टू गोवा (1972)

ऐसे ना मुझे तुम देखो

डार्लिंग डार्लिंग (1977)

वह गाना जिसने डील पक्की कर दी: "तुम बिन जाऊं कहां"
फिल्म ‘प्यार का मौसम’ (1969) में, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार दोनों ने ‘तुम बिन जाऊं कहां’ गाने के अलग-अलग वर्जन रिकॉर्ड किए. रफी का वर्जन, जो पहले रिकॉर्ड किया गया था, काफी सीधा था. इस गीत को खूब सराहा गया. हालांकि, किशोर का वर्जन, जो बाद में आया, इससे युवा लोग काफी प्रभावित हुए. जबकि मोहम्मद रफी का वर्जन फिल्म की रिलीज पर काफी पॉपुलर हुआ, लेकिन फिर भी किशोर वाला वर्जन योडलिंग की वजह से यादगार बन गया. 

इसी गाने ने बॉलीवुड प्लेबैक सिंगिंग में बदलाव ला दिया. किशोर कुमार की गिनती मोहम्मद रफी जैसे फेमस सिंगर में होने लगी. 

किशोर कुमार की योडलिंग की विरासत
किशोर कुमार की योडलिंग ने बॉलीवुड संगीत पर अमिट छाप छोड़ी. यही वजह रही कि 1960 और 70 के दशक की युवा पीढ़ी के बीच उनके गाने गूंजते रहे. जबकि रफी, लता और आशा जैसे शास्त्रीय गायकों का बॉलीवुड में अपना अनूठा योगदान था, किशोर के योडलिंग वाले गानों ने एक नई धुन बॉलीवुड को दी. उनके गाने बॉलीवुड के लापरवाह, रोमांटिक हीरो का पर्याय बन गए, जिसका प्रतीक 1960 और 70 के दशक में राजेश खन्ना थे.

फोटो- इंडिया टुडे



 

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