आज भी जब भी 'बरखुरदार' शब्द सुनते हैं तो प्राण साहब की याद आ जाती है. प्राण कृष्ण सिकंद अहलूवालिया, जिन्हें प्यार से प्राण कहा जाता है को बॉलीवुड के सबसे प्रसिद्ध कलाकारों में से एक के रूप में याद किया जाता है. 350 से अधिक फिल्मों के शानदार करियर के साथ, प्राण को उनके अपार योगदान के लिए प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. जहां अमरीश पुरी साहब ने अपने नेगेटिव किरदारों के लिए काफी सुर्खियां बटोरी तो वहीं प्राण साहब का नाम आते ही सिनेमाघरों में तालियों की गूंज सुनाई दिया करती थी. प्राण अपने किरदार में इतनी जान फूंक देते थे कि वो सचमुच के खलनायाक लगते थे.
दिल्ली में हुआ था जन्म
प्राण का जन्म 12 फरवरी, 1920 को प्राण कृष्ण सिकंद के रूप में हुआ था. प्राण मूल रूप से पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान इलाके के रहने वाले थे. प्राण ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत 1940 में की और विभाजन से पहले लगभग 22 फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें से अधिकांश 1947 तक रिलीज हुईं. भारत के विभाजन के बाद, वो बॉम्बे (अब मुंबई) चले गए. उनके पिता लाला केवल कृष्णन सिकंद पेशे से एक सिविल इंजीनियर थे और प्राण साहब के तीन भाई और तीन बहनें भी थीं. जब उन्हें 1940 में पंजाबी फिल्म यमला जट में पहली भूमिका मिली, तो उनमें अपने पिता को इसके बारे में बताने का साहस नहीं था. रिपोर्ट्स बताती है कि उन्होंने अपनी बहन वो अखबार छिपाने के लिए कहा था जिसमें उनका इंटरव्यू छपा था.
पान की दुकान पर मिला था ऑफर
लाहौर में एक पान की दुकान पर खड़े-खड़े उन्हें फिल्म का ऑफर मिला था. तब लाहौर भारत का ही हिस्सा था. 1947 तक उन्होंने वहीं कई फिल्में कीं, फिर विभाजन के बाद भारत आ गए. और मुंबई में करियर दोबारा शुरू किया. पहली ही फिल्म से प्राण वो विलेन बने, जो हीरो से ज्यादा फीस लेते थे. करीब 70 साल के करियर में उन्होंने 362 फिल्मों में काम किया. लाहौर से मुंबई तक का दो फिल्म इंडस्ट्रीज का उनका सफर बहुत दिलचस्प रहा.
कैसे बने इंडस्ट्री के विलेन
ऐसा कहा जाता है कि वह शुरुआत में एक्टर नहीं बल्कि फोटोग्राफर बनना चाहते थे. साल 1942 में फिल्म खानदान से अपने करियर की शुरुआत करने वाले प्राण ने लगभग 22 फिल्मों में विलेन की भूमिका निभाई. फिल्मों में अपने नकारात्मक किरदारों को लेकर प्राण ने इंडस्ट्री में खलनायक विलन का टैग मिला था. प्राण ऐसे चुनिंदा कलाकारों में से एक हैं जिन्होंने फिल्मों में नायक बनने के बाद मिलने वाली लोकप्रियता की गलतफहमी को लोगों के दिलों से निकाला था. जहां लोगों को लगता था कि फिल्म में हीरो ही सबकुछ होता है प्राण ने उस दशक में अपने काम के जरिए नाम कमाया और जाने माने विलेन बनें.
मंटो ने की थी सिफारिश
मशहूर लेखक सआदत हसन मंटो और एक्टर श्याम ने उनके नाम की सिफारिश डायरेक्टर सईद लतीफ से की. ऑडिशन के लिए उन्हें बॉम्बे टाकीज बुलाया गया, लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वो लोकल ट्रेन से ऑडिशन देने जा पाएं. इसी वजह से वो मुंबई की सुबह वाली पहली लोकल ट्रेन पकड़कर बॉम्बे टॉकीज गए. सुबह का सफर उन्होंने इसलिए चुना, क्योंकि उस वक्त ट्रेन में TT नहीं होता था और टिकट की चेकिंग भी नहीं होती थी. ऑडिशन देने के बाद प्राण को फिल्म जिद्दी में काम करने का मौका मिला. इस फिल्म के लिए उन्हें 500 रुपए महीना सैलरी देने की बात हुई.
लेते थे हीरो से ज्यादा फीस
ऐसा भी कहा जाता है कि प्राण फिल्मों में हीरो से ज्यादा फीस लिया करते थे. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो फिल्म 'डॉन' के लिए अमिताभ बच्चन ने जहां ढाई लाख रुपये लिए थे वहीं प्राण ने दिनों 5 लाख रुपये लिए थे. फिल्म प्रोड्यूसर्स भी उनको पैसा देने से कभी पीछे नहीं हटते थे क्योंकि उन्हें पता था कि एक बार प्राण ने फिल्म साइन कर ली तो फिर फिल्म का हिट होना तय है. प्राण ने अपने करियर में 'देवदास', 'डॉन', 'जंजीर', 'मजबूर', 'दोस्ताना', 'अमर अकबर एंथनी', 'जॉनी मेरा नाम' जैसी शानदार फिल्मों दी. बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि एक अभिनेता के रूप में प्राण की पहली भूमिका 1938 की है, जिसमें उन्होंने शिमला में एक स्थानीय राम लीला शो के दौरान सीता से लेकर मदन पुरी के राम तक का किरदार निभाया था.
फिल्म जिद्दी हिट रही, जिसके बाद प्राण को 3 और फिल्मों के ऑफर आए. साथ ही ये बात भी फैल गई कि ये हर फिल्म के लिए 500 रुपए फीस चार्ज करते हैं क्योंकि इतनी ही फीस हीरो भी लिया करते थे. इस तरह वो ऐसे विलेन बने जिनकी फीस हीरो से ज्यादा होती थी. एक बार उनके पास एक फिल्म का ऑफर आया। उन्होंने काम करने के लिए हामी भर दी, लेकिन प्रोड्यूसर ने कहा कि 500 रुपए फीस नहीं देंगे, क्योंकि फिल्म के हीरो की ही फीस उतनी है. प्राण ने फिल्म करने से मना कर दिया। बाद में उस प्रोड्यूसर को 100 रुपए ज्यादा फीस दे कर उन्हें कास्ट करना पड़ा। इस तरह उन्होंने हीरो से ज्यादा 600 रुपए प्रति महीना उस फिल्म के लिए मिले.
'बॉबी' के लिए चार्ज किए सिर्फ 1 रुपये
महान अभिनेता अपने पेशे के प्रति बेहद भावुक थे. यहां तक कि वह राज कपूर के निर्देशन में बनी फिल्म 'बॉबी' को महज एक रुपये में साइन करने को भी तैयार हो गए थे. प्राण-जिन्होंने बॉबी में मिस्टर नाथ की भूमिका निभाई थी उस समय कपूर की वित्तीय बाधाओं से अच्छी तरह वाकिफ थे और उन्होंने अपनी सामान्य फीस नहीं लेने का फैसला किया.गौरतलब है कि फिल्म में प्राण के योगदान ने इसकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
दोस्त की बहन ने समझा गुंडा
प्राण के निभाए विलेन के किरदार की वजह से लोग उन्हें चलते समय सड़कों पर गालियां देते थे. एक समय में लोगों ने अपने बच्चों का नाम प्राण रखना तक बंद कर दिया था. प्राण ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था- 'उपकार' से पहले सड़क पर मुझे देखकर लोग बदमाश, लफंगा और गुंडा कहा करते थे. उन दिनों जब मैं परदे पर आता था तो बच्चे अपनी मां की गोद में दुबक जाया करते थे और मां की साड़ी में मुंह छुपा लेते. फिल्म ‘जिस देश में गंगा बहती हैं’ में प्राण ने डाकू राका का रोल निभाया था। जब इस फिल्म की शूटिंग दिल्ली में चल रही थी तो वो एक दिन अपने दोस्त के घर चाय पर गए. दोस्त ने उनकी मुलाकात करवाने के लिए अपनी बहन को बुलाया लेकिन वो प्राण को देखते ही अपने कमरे में भाग गई. रात को उनके दोस्त ने कॉल किया और बताया कि बहन उन्हें देखकर डर गई थी इसलिए कमरे में भाग गई. उसने मुझसे कहा कि ऐसे गुंडे को घर क्यों बुलाते हो? ये बात सुनकर प्राण खूब हंसे.
घर पर था खुद का मेकअप आर्टिस्ट
यह आश्चर्य की बात हो सकती है, लेकिन प्राण एक-एक डिटेल पर बारीकियों से ध्यान देने के लिए जाने जाते थे. उनके घर पर एक मेकअप आर्टिस्ट रहता था, जो उनके हिसाब से उनका लुक तैयार करता था.गुमनाम, परवरिश, ज़ंजीर, डॉन और शहीद जैसी फिल्में कुछ उदाहरण हैं जहां उनके रोल और उनका लुक आईकॉनिक बन गए. साल 1990 के दशक में, प्राण ने बढ़ती उम्र की वजह से फिल्में साइन करना बंद कर दिया.