Ashok Kumar Birth Anniversary: बॉम्बे टॉकीज में लैब असिस्टेंट से बॉलीवुड के दादा मुनी बनने का सफर, जानिए अशोक कुमार की पूरी कहानी

दादा मुनी कभी भी अपना जन्मदिन नहीं मनाना चाहते थे. दरअसल इसी दिन उनके भाई किशोर कुमार का निधन हो गया था. वो इस बात से इतने टूट गए कि उन्होंने इसके बाद फिर कभी अपना जन्मदिन नहीं मनाया. किशोर कुमार उनसे 18 साल छोटे थे.

अशोक कुमार
शताक्षी सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 13 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 11:44 AM IST
  • जब बतौर हीरो नहीं कास्ट किए जाते थे दादा मुनी
  • जब लॉ कॉलेज में फेल हुए दादा मुनी 

"दिल था तुम्हारी याद में तपिश-ए-गम से बेकरार... आंखें तुम्हारी शकल को ढूंढ़ रही थी बार बार" ये डायलॉग है 1981 में आई फिल्म शौकीन का, इस डायलॉग को दादा मुनी अशोक कुमार ने बोला था. हिंदी फिल्मों की शुरुआती दौर में अशोक कुमार एक ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने प्रचलित पारसी थिएटर के संस्कारों को ताक पर रखते हुए, अपने अभिनय के दम पर स्टारडम खड़ा किया. उन्होंने कभी भी अपनी छवि को कहीं बंधने नहीं दिया. अपनी खास छवि के कारण वो लोगों के दिलों पर छा गए. अलहड़ स्वभाव और कोई भी किरदार करने की क्षमता ने उन्हें असल मायनों में सुपरस्टार बना दिया था. अशोक कुमार को उनकी बेहतरीन अदाकारी के लिए दादा फाल्के अवार्ड और पद्म भूषण जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. 13 अक्टूबर 1911 को भागलपुर में जन्में अशोक कुमार ने इंडस्ट्री में बहुत बड़ा योगदान दिया है.

जब बतौर हीरो नहीं कास्ट किए जाते थे दादा मुनी
शायद बहुत कम ये बात जानते हैं कि इतने बड़े सुपरस्टार अशोक कुमार को शुरुआती समय में उन्हें हीरो के तौर पर फिल्मों में कास्ट करने से साफ इंकार कर दिया था. इसके बाद वो बॉम्बे टॉकीज में लैब असिस्टेंट बन गए. लेकिन उनकी किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था. फिर एक वक्त ऐसा आया जब  अशोक कुमार इंडस्ट्री का जाना माना नाम बन गए. दरअसल अशोक कुमार का असली नाम कुमुद कुमार गांगुली है लेकिन उन्हें दादा मुनी भी बुलाया जाता था. अशोक कुमार जब भी पर्दे पर उतरते वह किरदारों को जिंदा कर देते थे.

जब लॉ कॉलेज में फेल हुए दादा मुनी 
दादा मुनी का जन्म 13 अक्टूबर 1911 बिहार के मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार हुआ था. वैसे तो दादा मुनी का असली नाम कुमुदलाल गांगुली था, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में उनका नाम अशोक कुमार पड़ा. अशोक कुमार के पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने अशोक कुमार का एडमिशन एक लॉ कॉलेज में करवाया. लेकिन क्योंकि अशोक कुमार की किस्मत में तो बॉलीवुड सुपरस्टार बनना ही लिखा था, तो वो लॉ कॉलेज में फेल हो गए.

बॉम्बे टॉकीज में बतौर लैब अस्सिटेंट करते थे काम
दादा मुनी का नाम लेकर अशोक कुमार ने 40 के दशक में फिल्मों में अपनी अभिनय क्षमता से नई इबारत लिखी. अशोक कुमार ने अभिनय की प्रचलित शैलियों को दरकिनार कर दिया और अपनी स्वाभाविक शैली विकसित की. दरअसल अशोक कुमार काम की तलाश में मुंबई पहुंचे थे. 1934 में उन्होंने बॉम्बे टॉकीज में बतौर लैब असिस्टेंट का करना शुरू किया. इसी दौरान शधर अशोक कुमार को हिमांशु राय के पास ले गए थे. उस वक्त राय ने उन्हें एक्टर बनने के लिए कहा था, लेकिन अशोक कुमार ने मना कर दिया था. बाद में अशोक कुमार डायरेक्शन में असिस्ट करने लगे. धीरे-धीरे दादा मुनी को फिल्मों में काम करने का भी मौका मिला. उनकी पहली फिल्म जीवन नैया’ (1936) थी. 

कुछ इस तरह मिला था पहला रोल
अशोक कुमार को पहली फिल्म मिलने के पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है. फिल्म जीवन नैय्या के लिए डायरेक्टर ने पहले नजम-उल-हसन और देविका रानी को चुना था. लेकिन जब दोनों प्रोजेक्ट छोड़ कर भाग गए तो ऐसे में  डायरेक्टर ने अपने गुड लुकिंग लैब असिस्टेंट को फिल्म में हीरो बनाने का फैसला किया. बाद में देविका रानी ने फिल्म में वापस से एंट्री की और शूटिंग पूरी हुई.  देविका रानी के साथ फिल्म अछूत कन्या ने अशोक कुमार को ज्यादा पहचान दिलाई.

अपना जन्मदिन नहीं मनाते थे दादा मुनी
अशोक कुमार की जिंदगी में एक ऐसा समय भी आया जब उन्हें जन्मदिन से शायद नफरत सी होने लगी थी. यहां तक की उन्होंने अपना जन्मदिन मनाना तक छोड़ दिया. दरअसल 13 अक्टूबर 1987 को अशोक कुमार का 76वां जन्मदिन था और अचानक उन्हें खबर मिली कि उनके छोटे भाई किशोर कुमार का निधन हो गया है. वो इस बात से इतने टूट गए कि उन्होंने इसके बाद फिर कभी अपना जन्मदिन नहीं मनाया. बता दें कि अशोक कुमार अपने भाई किशोर कुमार से 18 साल बड़े थे.

टूट गई थी पहली शादी
कहा जाता है कि जब अशोक कुमार हीरो बने तो उनके घर  खंडवा में हड़कंप मच गया और उनकी तय शादी टूट गई. उसके बाद उनकी मां रोने लगीं जिसके बाद उनके पिता को उन्हें समझाने के लिए नागपुर जाना पड़ा. अशोक कुमार के पिता ने उन्हें एक्टिंग छोड़ने के लिए कहा. किन उस समय हिमांशु राय ने अकेले में उनके पिता से बात की. उसके थोड़ी देर बाद उनके पिता उनके पास आए और नौकरी के कागज फाड़ दिए और उन्होंने अशोक से कहा, ‘वो (हिमांशु राय) कहते हैं कि अगर तुम यही काम करोगे तो बहुत ऊंचे मकाम तक पहुंचोगे। तो मुझे लगता है तुम्हें यहीं रुकना चाहिए’.

 

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