अपनी कविताओं से करोड़ों दिलों पर राज करने वाले कुमार विश्वास (Kumar Vishwas) आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. भारत के प्रेमियों के दिलों की धड़कन और प्रसिद्ध कवि राजनेता कुमार विश्वास का आज 52वां जन्मदिन है. एक राजनेता होने के बावजूद लोग आज भी उन्हें कवि के रूप में सम्मान देते हैं. खैर, उनका खूबसूरत वर्तमान तो सभी देख रहे हैं, लेकिन शुरुआत से ही विश्वास की यह सफलता उनके साथ नहीं थी. उन्होंने भी लंबा सफर तय किया है और अपने जीवन में कई मुश्किलों का भी सामना किया है.
2014 में अमेठी से लड़ा चुनाव
कुमार का जन्म 10 फरवरी, 1970 को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के पिलखुआ में हुआ था. इनके पिता, डॉ. चंद्रपाल शर्मा आरएसएस डिग्री कॉलेज में प्रिंसिपल हैं और मां, रमा शर्मा एक हाउसवाइफ है. चार भाइयों में सबसे छोटे कुमार विश्वास सिर्फ अपनी कविताओं के लिए ही नहीं बल्कि अपने उथल-पुथल भरे राजनीतिक सफर के लिए भी चर्चा में रहे हैं. कुमार विश्वास ने आम आदमी पार्टी (आप) के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी, लेकिन बाद में कुछ मतभेदों के कारण उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी. इस दौरान उन्होंने 2014 में अमेठी से राहुल गांधी और स्मृति ईरानी के खिलाफ लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन जीत नहीं पाए थे. फिलहाल वह राजनीति से अलग हो गए हैं. वह कहते हैं कि राजनीति और भ्रष्टाचार का चोली-दामन का रिश्ता है.
इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में छोड़ थामा हिंदी का साथ
कुमार विश्वास के पिता कुमार को इंजीनियर बनाना चाहते थे, लेकिन कुमार विश्वास का सपना कुछ अलग ही करने का था. उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और हिंदी साहित्य में स्नातक किया. कुमार विश्वास 2011 में जनलोकपाल आंदोलन का भी हिस्सा रहे थे. कवि से राजनेता बने कुमार विश्वास ने कविताओं से अपना रिश्ता बनाए रखा है और वो कवि सम्मेलनों में हिस्सा लेते रहते हैं. एक इंटरव्यू में कुमार ने खुलासा किया था कि शुरुआती दौर में जब वे कवि गोष्ठियों से देर रात लौटते, तो पैसे बचाने के लिए ट्रक में लिफ्ट लेते थे. इस वजह से उन्हें घर पहुंचने में देर हो जाती थी और उनके पिता नाराज हो जाते थे.
पिता की डांट के बाद लिया अहम फैसला
उनके पिता को यह सब नापसंद था. विश्वास ने बताया कि एक बार कवि सम्मेलन से रात को घर पहुंचे, तो उनके पिताजी उनसे गुस्सा गए. पिता गुस्से में बोले, ‘हां, इनके लिए बनाओ हलवा, ये सीमा से लड़कर जो आए हैं.’ पिता की ये बात उन्हें चुभ गई. उसी समय उन्होंने ठान लिया कि अब इसी दिशा में आगे जाना है. कुमार ने बताया कि शुरुआत में लोगों ने उनपर लांछन भी लगाए, लेकिन उन्होंने कविता का साथ कभी नहीं छोड़ा. उस दौर में कोई सोच भी नहीं सकता था कि एक दिन ऐसा भी आएगा, जब कविता के टीवी शो के लिए लाखों रुपये मिलेंगे.
‘कोई दीवाना कहता है’ से हुए मशहूर
‘कौरवी लोकगीतों में लोकचेतना’ विषय पर पीएचडी करने के बाद उन्होंने 1994 में राजस्थान के एक कॉलेज से लेक्चरर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी. उन्होंने कई कवि-सम्मेलनों में हिस्सा लिया है और इसके साथ ही वह मैग्जीन के लिए भी लिखते हैं. उनकी कविता ‘कोई दीवाना कहता है’ से उन्हें सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली. उन्होंने आदित्य दत्त की फिल्म ‘चाय गरम’ में अभिनय भी किया है. उनके दो काव्य-संग्रह ‘एक पगली लड़की के बिन’ और ‘कोई दीवाना कहता है’ भी प्रकाशित हुए हैं.
चार महिलाओं को देते हैं सफलता का श्रेय
विख्यात लेखक धर्मवीर भारती ने कुमार विश्वास को अपनी पीढ़ी का सबसे ज्यादा संभावनाओं वाला कवि कहा था तो वहीं प्रसिद्ध हिंदी गीतकार नीरज ने उन्हें ‘निशा-नियाम’ की संज्ञा दी थी. विश्वास कहते हैं कि उनकी जिंदगी में चार महिलाओं का अहम योगदान रहा, जिनकी वजह से शायद आज वो इस मुकाम पर हैं. वे बताते हैं कि उन्हें मां ने गाने का सलीका और बड़ी बहन से नाम मिला. प्रेमिका ने उन्हें कवि तो वहीं पत्नी ने उन्हें एंटरप्रिन्योर बना दिया.