Mithun Chakraborty: एक नक्सली से दादासाहेब फाल्के पुरस्कार विजेता बनने तक… दृढ़ संकल्प, बदलाव, और सिनेमा के प्रति अटूट जुनून की कहानी

मिथुन को पहचान तब मिली जब उन्हें फिल्म मृगया (1976) में मेन किरदार मिला. फिल्म के डायरेक्टर और कोई नहीं बल्कि मृणाल सेन थे. आदिवासी युवक की भूमिका निभाते हुए मिथुन को बेस्ट एक्टर के लिए नेशनल अवार्ड मिला. यह एक शानदार शुरुआत थी. उनकी गिनती बॉलीवुड के बड़े स्टार्स में होने लगी. एक डिस्को डांसर जो लड़ सकता था, नाच सकता था, और दर्शकों को हंसा और रुला सकता था. उन्होंने डिस्को डांसर, प्यार झुकता नहीं, और अग्निपथ जैसी फिल्मों में अपनी भूमिकाओं से लाखों लोगों का दिल जीता.

Mithun Chakraborty (Photo/Getty Images)
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 30 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 6:24 PM IST
  • बेस्ट एक्टर के लिए मिला था नेशनल अवार्ड 
  • कई बड़े डायरेक्टर्स के साथ काम किया 

अगर आज कोई फिल्म स्टार अपने नक्सली होने की बात कह दे तो उसका करियर खत्म हो सकता है. लेकिन बॉलीवुड का एक बड़ा स्टार ऐसा है, जो फिल्मों में आने से पहले एक सक्रिय नक्सली था. ये और कोई नहीं बल्कि डिस्को डांसर (Disco Dancer) के नाम से पॉपुलर मिथुन चक्रवर्ती (Mithun Chakraborty) हैं.

मिथुन चक्रवर्ती, जिन्हें प्यार से मिथुन दा कहा जाता है, की कहानी किसी बॉलीवुड स्क्रिप्ट से कम नहीं है. इसमें हर वो चीज है जो किसी भी फिल्म की कहानी को ब्लॉकबस्टर बनाती है- विद्रोह, संघर्ष, बदलाव, और राष्ट्रीय प्रतीक बनने की यात्रा. 

16 जुलाई 1950 को एक साधारण बंगाली परिवार में जन्मे गौरण्ग चक्रवर्ती ने तेजी से बदलती दुनिया में कदम रखा था...1960 के दशक के आखिर में, कोलकाता में क्रांति का माहौल था और नक्सलवादी आंदोलन अपने चरम पर था... आंदोलन कई युवाओं को आकर्षित कर रहा था. ये वो लोग थे जो एक आदर्श समाज की उम्मीद लिए बैठे थे. हजारों दूसरे आदर्शवादी युवाओं की तरह, मिथुन चक्रवर्ती भी इस आंदोलन में बह गए और उग्रवादी विचारधारा को अपना लिया. 

इस दौरान मिथुन चक्रवर्ती के परिवार पर एक त्रासदी आई. मिथुन ने अपने छोटे भाई को एक दुखद दुर्घटना में खो दिया. इस सदमे और दुख ने उन्हें अपनी प्राथमिकताओं पर फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया. मिथुन को एहसास हुआ कि उनके परिवार को उनकी जरूरत है. एक सशस्त्र आंदोलन में शामिल होने के खतरे बहुत बड़े थे और मिथुन जानते थे कि वे अपने परिवार को और खतरे में नहीं डाल सकते. तब उन्होंने आंदोलन को छोड़कर एक नई शुरुआत करने का फैसला लिया. हालांकि, ये फैसला आसान नहीं था - इसका मतलब था कि अपने सभी आदर्शों को छोड़कर एक नए सफर की शुरुआत करना.

कोलकाता से मुंबई: स्टारडम के लिए संघर्ष
ग्रेजुएशन के बाद, मिथुन मुंबई चले गए, जिसे सपनों का शहर भी कहा जाता है, ताकि फिल्म इंडस्ट्री में अपनी किस्मत आजमा सकें. मिथुन ने एक्टिंग के अपने जुनून का पीछा करने का फैसला किया. उन्होंने पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) में दाखिला लिया. हालांकि, स्टारडम तक का रास्ता आसान नहीं था. उन्हें कई बार रिजेक्ट किया गया, कई फिल्म निर्माताओं ने उन्हें मौका देने से इनकार कर दिया. उनका चेहरा बॉलीवुड के हीरो की पारंपरिक छवि में फिट नहीं बैठता था- वे सांवले थे, दिखने में वे पारंपरिक रूप से हैंडसम नहीं थे, और उनके पास फिल्म इंडस्ट्री में कोई गॉडफादर भी नहीं था. लेकिन मिथुन ने हार नहीं मानी. उन्होंने छोटी-मोटी नौकरियां कीं, फुटपाथों पर सोए, और कई बार भूखे भी रहे, लेकिन उन्होंने अपने सपने को कभी नहीं छोड़ा. 

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बी-ग्रेड फिल्मों में किया काम
हालांकि, एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने सोचा कि उनका करियर केवल बी-ग्रेड फिल्मों तक ही सीमित रह जाएगा. जी हां, मिथुन ने कई बी-ग्रेड फिल्में कीं. उन्हें बड़ी बजट और प्रतिष्ठित फिल्मों में काम करने का मौका नहीं मिल रहा था, और उस दौर में कोई भी बड़ी एक्ट्रेस उनके साथ काम करने के लिए तैयार नहीं थी. लेकिन उनकी किस्मत तब बदल गई जब प्रसिद्ध अभिनेत्री ज़ीनत अमान ने उनके साथ एक फिल्म में काम करने का फैसला किया. जीनत अमान का उस समय फिल्म जगत में एक बड़ा नाम थी, और उनके साथ काम करने से मिथुन की छवि में बड़ा बदलाव आया. आखिरकार उन्हें बड़ी बजट की ए-ग्रेड फिल्मों में काम करने के मौके मिलने लगे. 

मिथुन का संघर्ष तब सफल हुआ जब उन्हें फिल्म मृगया (1976) में मेन किरदार मिला. फिल्म के डायरेक्टर और कोई नहीं बल्कि मृणाल सेन (Director Mrinal Sen) थे. आदिवासी युवक की भूमिका निभाते हुए मिथुन को बेस्ट एक्टर के लिए नेशनल अवार्ड (National Award) मिला. यह एक शानदार शुरुआत थी. आने वाले दशकों में मिथुन का करियर ऊंचाइयों पर पहुंचा. उनकी गिनती बॉलीवुड के बड़े स्टार्स में होने लगी. एक डिस्को डांसर जो लड़ सकता था, नाच सकता था, और दर्शकों को हंसा और रुला सकता था. उन्होंने "डिस्को डांसर", "प्यार झुकता नहीं", और "अग्निपथ" जैसी फिल्मों में अपनी भूमिकाओं से लाखों लोगों का दिल जीता. 

नक्सलवाद पर भी की थी फिल्म
अपने अतीत को अपनी पहचान न बनने देने के लिए मिथुन ने बॉम्बे आने पर खुद का एक नया नाम रखा "राणा रेज". लेकिन तब तक उनकी किस्मत नहीं बदली थी. ऐसे में उनकी मुलाकात लेखक और फिल्मकार ख़्वाजा अहमद अब्बास से हुई. अब्बास ने उन्हें अपनी फिल्म "द नक्सलाइट्स" (1980) में मुख्य किरदार निभाने का ऑफर दिया. ये कहानी उसी आंदोलन से प्रेरित थी जिसका मिथुन कभी हिस्सा हुए करते थे. मुश्किल यह थी कि मिथुन इस किरदार को निभाने से हिचक रहे थे. लेकिन अब्बास के प्रति उनके सम्मान ने इस चुनौती को स्वीकार किया. 

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"द नक्सलाइट्स" भले ही बॉक्स ऑफिस (Box Office) पर अच्छा नहीं कर पाई, लेकिन यह मिथुन के करियर में एक बड़ा पड़ाव थी. मिथुन कई इंटरव्यू में इसे अपने करियर की सबसे यादगार फिल्मों में से एक बताते हैं. 

बॉलीवुड का डिस्को किंग
जहां मृगया ने मिथुन को एक बेहतरीन और सीरियस एक्टर के रूप में स्थापित किया, वहीं 1982 की फिल्म डिस्को डांसर ने उन्हें स्टारडम की ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया. बी. सुभाष द्वारा निर्देशित डिस्को डांसर एक म्यूजिक फिल्म थी, जो एक सड़क कलाकार की रैग्स-टू-रिचेस कहानी बताती है. यह फिल्म न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, विशेष रूप से सोवियत संघ में भी जबरदस्त हिट साबित हुई, और मिथुन घर-घर में लिए जाने वाला नाम बन गए.

“डिस्को डांसर” की सफलता ने मिथुन को बॉलीवुड के "डिस्को किंग" का खिताब दिलाया. उनका अपना ही एक अलग डांस स्टाइल था. ये वो समय था जब मिथुन एक नए तरह के सिनेमा का चेहरा बन गए थे. ये चेहरा चकाचौंध से भरा था, मनोरंजक था, और म्यूजिक और डांस इसकी पहचान थी.

एक साल में 19 फिल्मों में बतौर लीड एक्टर काम किया
उनकी मेहनत और प्रतिभा का नतीजा यह रहा कि उन्होंने साल 1989 में ऐसा रिकॉर्ड बनाया जिसे अब तक कोई और एक्टर नहीं तोड़ पाया है. मिथुन ने उस साल 19 फिल्मों में बतौर लीड एक्टर काम किया, जो किसी भी एक्टर के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी. इस रिकॉर्ड को 'लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स' में दर्ज किया गया और यह अब तक कायम है. 

मिथुन ने "डांस डांस", "कसम पैदा करने वाले की", और "कमांडो" जैसी पॉपुलर फिल्मों की झड़ी लगा दी. इन फिल्मों में उनके किरदारों को खूब सराहा गया. मिथुन के किरदार से आम आदमी से जुड़ाव महसूस करने लगा था. लोग मिथुन से खुद को रिलेट कर पा रहे थे. इसके कारण थे- वे अपने समय के कई दूसरे फिल्मी स्टार्स से एकदम अलग थे, वे किसी फिल्मी परिवार से नहीं थे, और न ही उनके पास किसी पारंपरिक बॉलीवुड हीरो की चमक-दमक थी. वे एक बाहरी व्यक्ति थे, जिन्होंने कड़ी मेहनत और प्रतिभा के दम पर सफलता पाई थी, और इसने ही उन्हें देश भर के दर्शकों का प्रिय बना दिया. मुंबई की झुग्गियों से लेकर स्टारडम की ऊंचाइयों तक का उनका सफर लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बन गया, और वे उन सभी के लिए आशा का प्रतीक बन गए जिन्होंने बड़े सपने देखने की हिम्मत की.

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कई डायरेक्टर्स के साथ काम किया 
मिथुन ने इंडस्ट्री के कुछ सबसे सम्मानित फिल्म डायरेक्टर्स जैसे शक्ति सामंत, बासु चटर्जी, और गौतम घोष के साथ काम किया और तहदर कथा, स्वामी विवेकानंद, और भूमिका जैसी फिल्मों में जबरदस्त एक्टिंग की. इतना ही नहीं, मिथुन के भारतीय सिनेमा में योगदान को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. इसमें तीन बार बेस्ट एक्टर के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार शामिल है. विशेष रूप से तहदर कथा (1992) में उनकी एक्टिंग को क्रिटिक्स ने भी काफी पसंद किया.

2015 में, उन्हें कला के क्षेत्र में योगदान के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक, पद्म श्री से सम्मानित किया गया. अब मिथुन चक्रवर्ती को भारतीय सिनेमा में सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (Dadasaheb Phalke Award 2024) से सम्मानित किया जा रहा है. अपने नक्सलवादी अतीत से छुपते हुए भगोड़े जीवन से लेकर भारतीय सिनेमा में सबसे बड़ा सम्मान मिलने तक, मिथुन चक्रवर्ती की कहानी लाखों को प्रेरणा देती है. 


 

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