National cinema day: लड़की की तरह थे नैन नक्श तो दादा साहेब फाल्के ने लड़के को बना दिया हीरोइन, कुछ इस तरह अन्ना सालुंके बन गए हिंदी सिनेमा की पहली 'एक्ट्रेस'

दादा साहब फाल्के ने हरिश्चंद्र और तारामती के बेटे रोहिताश्व की भूमिका के लिए कई लड़कों का ऑडिशन लिया, लेकिन किसी भी माता-पिता ने अपने बच्चों को फिल्म में काम करने नहीं दिखा. आखिर में फाल्के ने अपने बड़े बेटे भालचंद्र को ही पर्दे पर उतार दिया. भालचंद्र भारतीय सिनेमा में पहले चाइल्ड एक्टर थे.

Raja Harishchandra
अपूर्वा राय
  • नई दिल्ली,
  • 20 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 5:16 PM IST
  • हिंदी सिनेमा की पहली हीरोइन औरत नहीं थी
  • तवायफ भी नहीं हुई काम करने के लिए राजी

आज नेशनल सिनेमा डे है. इस खास मौके पर देश के सभी थियेटर्स में फिल्में 99 रुपये में दिखाई जा रही हैं. बात जब भारतीय सिनेमा की होती है तो भारतीय फिल्म राजा हरिश्चंद्र की चर्चा खुद ब खुद होने लगती है. इस फिल्म का निर्देशन दादा साहेब फाल्के ने किया था. लेकिन इस फिल्म को बनाने के लिए उन्होंने कई मुसीबतें झेली थीं.

अखबार में निकाले विज्ञापन
कम पैसे में बेहतर फिल्म बनाने की कोशिश दादा साहेब फाल्के ने शुरू कर दी. फाल्के फिल्म निर्माण सीखने के लिए लंदन गए. फिल्म बनाने के लिए जिन इक्विपमेंट्स की जरूरत थी वो सब विदेशों से मंगवाए गए. कास्ट एंड क्रू के लिए अखबार में विज्ञापन निकाले. दादा साहब फाल्के फिल्म प्रोसेसिंग के साथ-साथ पटकथा, निर्देशन, प्रोडक्शन डिजाइन, मेकअप, फिल्म एडिटिंग सभी की जिम्मेदारी खुद उठाई. अब बारी थी कास्टिंग की.

फिल्मों में काम करना नहीं माना जाता था अच्छा
फाल्के ने अपने फिल्म स्टूडियो के लिए लगभग चालीस लोगों को काम पर रखा. अब चूंकि उन दिनों फिल्मों में काम करना अच्छी बात नहीं थी इसलिए दादा साहब फाल्के ने अपने कलाकारों से कहा कि वे दूसरों को बताएं कि वे लोग हरिश्चंद्र नाम के एक शख्स की फैक्ट्री में काम कर रहे हैं. Dattatraya Damodar Dabke ने राजा हरिशचंद्र के किरदार के लिए हामी भर दी. लेकिन उनकी पत्नी तारामती का रोल निभाने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ. दादा साहेब फाल्के ने अपनी पत्नी सरस्वती से फिल्म में हीरोइन बनने को कहा लेकिन उनके पास पहले से ही इतनी जिम्मेदारियां थीं कि वो हां नहीं कर पाईं.

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तवायफ भी नहीं हुई काम करने के लिए राजी
दादा साहब फाल्के ने कई दिनों तक विज्ञापन दिए लेकिन कोई नहीं आया. अच्छे घर की लड़कियां तो दूर तवायफों ने भी फिल्मों में काम करने से मना कर दिया. एक दो तवायफों ने हामी भरी भी लेकिन कुछ दिनों बाद काम करने से मना कर दिया. एक दिन दादा साहब ग्रांट रोड स्थित एक ढाबे पर बैठे थे. उन्होंने अपने लिए एक चाय मंगवाई, जो वेटर ये चाय लेकर आया उसके हाथ बेहद कोमल और नजाकत वाले थे. दुबली-पतली कमर और महिलाओं की कद काठी वाला एक पुरुष था, जोकि चाल-ढाल में महिलाओं की तरह था. बस फिर क्या था दादा साहब फाल्के को मिल गई उनकी हीरोइन.

हिंदी सिनेमा की पहली हीरोइन औरत नहीं थी
जी हां अन्ना हरि सालुंके ही वो एक्टर थे जो पहली बार पर्दे पर हीरोइन के करिदार में दिखे थे. उन्होंने फिल्म में रानी तारामती का रोल किया था. सालुंके मजबूरी में ढाबे पर काम करते थे तो बस फिर 15 रुपए महीने पर नौकरी देकर फाल्के ने उन्हें अपने यहां काम पर रख लिया. इस फिल्म में कई मेल एक्टर्स ऐसे थे जिन्हें पर्दे पर फीमेल दिखना था. इसके लिए उन्हें मूंछें कटवाने पड़ती. कोई भी इसके लिए तैयार नहीं था क्योंकि हिंदू रीति-रिवाजों में कोई व्यक्ति तब ही मूंछें हटवाता है जब उसके पिता का देहांत हो जाए.

Raja Harishchandra/Photo:airnewsalerts

फिल्म का प्रोडक्शन डिजाइन 1912 के मानसून सीजन के बाद शुरू हुआ. जबकि सेट दादर में फाल्के के बंगले में बनाया गया था. फाल्के ने सभी से विनती की तो सालुंके सहित बाकी एक्टर्स को उनकी बात माननी पड़ी. फाल्के ने छह महीने और 27 दिनों में लगभग चार रील की फिल्म बनाई. सभी कलाकारों के रहने खाने का खर्च दादा साहब फाल्के उठाते थे. सभी फाल्के के घर में ही रहते थे. कुछ इस तरह भारत की पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र 15000 रुपए के खर्च में बनकर तैयार हुई.

दादा साहब फाल्के ने हरिश्चंद्र और तारामती के बेटे रोहिताश्व की भूमिका के लिए कई लड़कों का ऑडिशन लिया, लेकिन किसी भी माता-पिता ने अपने बच्चों को फिल्म में काम करने नहीं दिखा. आखिर में फाल्के ने अपने बड़े बेटे भालचंद्र को ही पर्दे पर उतार दिया. भालचंद्र भारतीय सिनेमा में पहले चाइल्ड एक्टर थे.

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