Raj Kapoor Death Anniversary: जमीन पर सोने और महंगी शराब के शौकीन राज कपूर की कहानी, जानिए शो मैन के जीवन से जुड़े दिलचस्प किस्से

राज कपूर की परवरिश और उन्हें "द राज कपूर" बनाने में उनके पिता पृथ्वीराज कपूर का बहुत बड़ा हाथ था. जब राज कपूर ने उनके सामने फिल्मों में काम करने की इच्छा जताई थी, तो पृथ्वीराज कपूर ने राज कपूर को 1 रुपए महीने की नौकरी दी थी, और काम दिया था स्टूडियो में झाड़ू लगाने का.

राज कपूर
शताक्षी सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 02 जून 2022,
  • अपडेटेड 12:12 PM IST
  • जब नेहरू ने रूस में सुनाया था 'आवारा हूं'
  • हमेशा जमीन पर सोते थे राज कपूर

"अपने पे हंसकर, जग को हंसाया...बनके तमाशा, मेले में आया, हिंदू न मुस्लिम, पूर्व ना पश्चिम, मजहब है अपना हंसना हंसाना." ये लाइनें हैं उस शख्स की जिसे भारतीय फिल्म इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा शो मैन कहा जाता है. राज कपूर बहुत से लोगों के लिए बहुत कुछ थे, निर्माता, निर्देशक, अभिनेता, संपादक, संगीतकार, कहानीकार, भारतीय फिल्म उद्योग की फर्स्ट फैमिली के कर्ता, प्रेमी, समाजवादी और ना जाने क्या क्या. 

जब नेहरू ने रूस में सुनाया था 'आवारा हूं'
राज कपूर के बारे में एक कहानी कई बार सुनाई जाती है कि जब नेहरू रूस गए, तो सरकारी भोज के दौरान, नेहरू के बाद वहां के उस समय के प्रधानमंत्री निकोलाई बुल्गानिन के बोलने की बारी आई तो उन्होंने अपने मंत्रियों के साथ 'आवारा हूं' गाकर उन्हें चकित कर दिया. 1996 में जब राज कपूर के बेटे रणधीर कपूर और बेटी रितु नंदा चीन गए तो उन्हें देखते ही चीनी 'आवारा हूं' गुनगुनाने लगे. उन लोगों को ये नहीं पता था कि वो कौन थे, लेकिन वो ये गीत गाकर राज कपूर और भारत का सम्मान कर रहे थे. कहा तो ये भी जाता है कि आवारा माओ ज़ेडोंग की पसंदीदा फिल्मों में से एक थी. 

राज कपूर की परवरिश में पिता का बहुत बड़ा हाथ था...
राज कपूर की परवरिश और उन्हें "द राज कपूर" बनाने में उनके पिता पृथ्वीराज कपूर का बहुत बड़ा हाथ था. जब राज कपूर ने उनके सामने फिल्मों में काम करने की इच्छा जताई थी, तो पृथ्वीराज कपूर ने राज कपूर को 1 रुपए महीने की नौकरी दी थी, और काम दिया था स्टूडियो में झाड़ू लगाने का. राज कपूर की बेटी रितु नंदा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि, "उनके पिता राज कपूर के जीवन पर उनके दादा पृथ्वीराज की परवरिश का काफी प्रभाव था." रितु नंदा एक किस्सा याद करते हुए बताती हैं कि, "एक बार राज कपूर अपने पिता के साथ एक तालाब के किनारे पिकनिक पर गए थे, उस वक्त पृथ्वीराज ने उन्हें पानी में फेंक दिया, लेकिन राज कपूर को तैरना नहीं आता था, ये देख कर उनकी मां घबरा गई, और रोने लगी, तब पृथ्वीराज ने कहा कि, ये ऐसे ही तैरना सीखेगा, जिंदगी ऐसी ही है."

जब बारिश में पिता ने गाड़ी देने से किया था मना...
एक बार की बात है जब कपूर परिवार कोलकाता में रहता था, उस वक्त राज कपूर ट्रैम से स्कूल जाते थे. लेकिन एक दिन अचानक काफी तेज बारिश होने की वजह से स्कूल जाना मुश्किल लग रहा था, तब राज कपूर ने अपनी मां से स्कूल से गाड़ी से छुड़ाने के लिए कहा. लेकिन जब उनकी मां ने पृथ्वीराज कपूर ने पूछा तो उन्होंने मना कर दिया और ट्रैम से जाने को कहा. दरअसल उनका कहना था, कि जिंदगी इन्हीं कठिनाइयों से बनी है, और कठिनाइयों से निकलने के लिए आप जिन अनुभवों से गुजरते हैं, वो आगे जिंदगी में आपके काम आते हैं. ये सारी बात राज कपूर दरवाजे के पीछे से सुन रहे थे. राज कपूर ने फौरन अपना बस्ता उठाया, सिर पर पन्नी चढ़ाई और निकल गए. ये देखते ही पृथ्वीराज ने राज की मां से कहा था कि, "देखना एक दिन ये लड़का अपनी जिंदगी में बहुत आगे जाएगा."

हमेशा जमीन पर सोते थे राज कपूर
राज कपूर कभी बिस्तर पर नहीं सोते थे, वो हमेशा जमीन पर सोते थे. उनके परिवार पर लिखी एक किताब में इस बात का जिक्र है कि राज कपूर अगर होटल में जाते थे, वो वहां पर पड़े बेड का गद्दा खींच कर जमीन पर बिछा लेते थे. जिसके चलते एक बार तो वो मुसीबत में फंस गए. एक बार जब लंदन के मशहूर हिल्टन होटल में जब उन्होंने ये हरकत की तो होटल के प्रबंधकों ने उन्हें चेताया, और ऐसा करने के लिए मना भी किया, लेकिन जब वो नहीं मानें होटल वालों ने उनपर जुर्माना लगा दिया. राज कपूर पांच दिन उस होटल में रहे और उन्होंने रोज खुशी-खुशी पलंग का गद्दा जमीन पर खींचने के लिए जुर्माना दिया. 

खुद की जिंदगी को फिल्मों में उतारते थे 
राज कपूर अक्सर अपनी फिल्मों में वही दिखाते थे, जिससे वो खुद गुजर चुके होते थे. राज कपूर की फिल्म बॉबी में एक सीन है जिसमें ऋषि कपूर पहली बार डिंपल कपाड़िया से मिलने उनके घर जाते हैं, राज कपूर ने नरगिस के साथ हुई अपनी पहली मुलाकात को उस सीन में हूबहू सिनेमा के पर्दे पर उतार दिया था. राज कपूर और नरगिस की पहली मुलाकात उन दिनों हुई जब नर्गिस बड़ी स्टार बन चुकी थीं, और राज कपूर केदार शर्मा के असिस्टेंट मात्र थे. वो किसी काम से नरगिस की मां जद्दन बाई से मिलने उनके मरीन ड्राइव वाले घर पर गए थे. जब राज कपूर ने घंटी बजाई तो नर्गिस पकौड़े तल रही थीं. जब उन्होंने दरवाजा खोला तो अनजाने में नरगिस का बेसन से सना हाथ उनके बालों से छू गया. राज कपूर ने नरगिस की उस छवि को पूरी उम्र याद रखा. फिर जब उन्होंने बॉबी बनाई तो उन्होंने ऋषि और डिंपल पर हूबहू वही सीन फिल्माया. 

1988 में मिला था दादा साहेब फाल्के
1988 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. जब वो सिरी फोर्ट ऑडिटोरियम में पुरस्कार लेने पहुंचे तो वहां उन्हें दमे का दौरा पड़ा. उसके बाद उन्हें वहीं पर ऑक्सीजन सीलेंडर से लगाया गया. तभी थोड़ी देर में मंच से उनका नाम घोषित हुआ. लेकिन क्योंकि राज कपूर चलने की स्थिति में नहीं थे, तो राष्ट्रपति ने प्रोटोकॉल तोड़ते हुए खुद नीचे उतरकर राज कपूर को दादा साहेब फाल्के अवार्ड दिया. तभी राष्ट्रपति की डॉक्टर बाहर आ गई और उन्हें इंजेक्शन दिया गया. जिसके बाद उन्हें एम्स अस्पताल पहुंचाया गया. एम्स में थोड़ी देर के लिए उनकी तबीयत सुधरी लेकिन फिर वो कोमा में चले गए. फिल 1 महीने बाद 2 जून 1988 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. 

आज राजकपूर भले ही इस दुनिया में ना हों लेकिन उनके गाने और उनकी फिल्में हमारी यादों में हमेशा जिंदा रहेगी. ऐसे में राजकपूर की 1975 में आई फिल्म धरम करम के गाना "इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल, जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल, दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत, कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल" याद आता है. सच जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है...

 

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