मोहम्मद रफी, म्यूजिक इंडस्ट्री की दुनिया के सबसे महान नामों में से एक हैं. पंजाब में जन्मे रफी ने उस्ताद अब्दुल वाहिद खान, पंडित जीवन लाल मट्टू और फिरोज निजामी से शास्त्रीय संगीत सीखा और 13 साल की उम्र में अपनी पहली पब्लिक परफॉर्मेंस दी. कुछ समय तक ऑल इंडिया रेडियो के लिए गाने के बाद, साल 1945 में उन्होंने हिंदी फिल्म गांव की गोरी से अपनी शुरुआत की. रफी के साथ मंच शेयर करने वाला हर गायक उस समय अपने आपको भाग्यशाली बताता था. ऐसे में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मोहम्मद रफी के साथ गाने से पहले अमिताभ बच्चन की रातों की नींद उड़ गई थी.
फकीरों की करते थे नकल
रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में हुआ था. रफी साहब ने लगभग हर विषय से जुड़े गाने गाए. रफी साहब की बचपन से ही गायिकी में रुचि थी. वे स्वभाव से ही बहुत शांत और सरल थे. रफी साहब अपने गांव में फकीरों की नकल करके गाना गाया करते थे, जिसके बाद धीरे-धीरे वे गाना सीख गए. रफी के बड़े भाई की एक नाई की दुकान थी, जहां घंटो बैठकर रफी साहब फकीरों को देखकर गाना गाते थे.
कम उम्र में हो गई थी शादी
ये बात शायद बहुत कम लोगों को पता है कि13 साल की उम्र में ही रफी की पहली शादी उनके चाचा की बेटी बशीरन बेगम से हुई थी, लेकिन कुछ साल बाद ही उनका तलाक हो गया था. कहते हैं उनका तलाक भी गायकी से उनकी मोहब्बत की वजह से हुआ था. दरअसल जब भारत पाक विभाजन हुआ तो उनकी पहली पत्नी ने भारत में रुकने से मना कर दिया और रफी साहब संगीत से इतना प्यार करते थे कि उन्होंने भारत नहीं छोड़ा. उस दौरान उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर चली गई.
रफी की इस शादी के बारे में घर में सभी को मालूम था लेकिन बाहरी लोगों से उन्होंने इसे छुपाकर रखा गया था. घर में इस बात का जिक्र करना भी मना था, क्योंकि रफी की दूसरी बीवी बिलकिस बेगम को ये बिल्कुल बर्दाश्त नहीं था कि कोई इस बारे में बात करे. बता दें कि बशरीन से शादी के बाद 20 साल की उम्र में रफी की दूसरी शादी बिलकिस के साथ हुई. इस शादी से उनके 6 बच्चे हुए. तीन बेटे खालिद, हामिद और शाहिद तथा तीन बेटियां परवीन अहमद, नसरीन अहमद और यास्मीन अहमद हुईं. रफी साहब के तीनों बेटों सईद, खालिद और हामिद की मौत हो चुकी है.
बिजली गुल में चमकी किस्मत
दरअसल एक इवेंट में उस समय के मशहूर गायक के एल सहगल ने स्टेज पर बिजली नहीं होने की वजह से गाने से मना कर दिया. इसके बाद वहां मौजूद 13 साल के मोहम्मद रफी को गाने का मौका मिला था. उनके गाने को सुनकर हिन्दी सिनेमा के मशहूर संगीतकार श्यामसुंदर ने उन्हें बम्बई (अब मुंबई) आने का न्योता दिया और इस तरह मोहम्मद रफी का फिल्मी करियर शुरू हुआ. उनका पहला गाना एक पंजाबी फिल्म गुल बलोच में था, जबकि उन्होंने अपना पहला हिन्दी गीत संगीतकार नौशाद के लिए 'पहले आप' नाम की फिल्म में गाया.
4 साल तक लता के साथ नहीं किया काम
लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी ने साथ में सैकड़ों गाने गाए थे, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था जब उन्होंने रफी साहब से बातचीत तक बंद कर दी थी. दरअसल लता गानों पर रॉयल्टी चाहती थीं, जबकि मोहम्मद रफी ने कभी भी रॉयल्टी की मांग नहीं की. दोनों का विवाद इतना बढ़ा कि मोहम्मद रफी और लता के बीच बातचीत तक बंद हो गई थी. इस कारण दोनों ने एक साथ गाना गाने से भी इनकार कर दिया था. कहा जाता है कि लता ने इंडस्ट्री में सभी सिंगर्स की आवाज उठाते हुए उनके लिए रॉयल्टी की मांग की थी. सभी गायकों ने मीटिंग रखी, लेकिन रफी साहब, लता और रॉयल्टी मांग रहे सभी सिंगर्स की सोच के खिलाफ थे. हालांकि, चार साल बाद मशहूर एक्ट्रेस नरगिस की कोशिश से दोनों ने एक साथ एक कार्यक्रम में 'दिल पुकारे' गाना गाया था.
कई भाषाओं में गाए गीत
मोहम्मद रफी ने अपने सिंगिंग करियर में हर मूड के गीत गाए हैं. वह गाने के मूड के हिसाब से अपनी आवाज बदल लिया करते थे. उन्होंने 'चाहे कोई मुझे जंगली कहे' जैसे गानों से लेकर अनेक क्लासिकल, भजन, गजल, कव्वाली और रुमानी गाने भी गाए हैं. ऐसा माना जाता है कि मोहम्मद रफी ने लगभग साढ़े 7 हजार से ज्यादा गाने गाए हैं. उन्होंने हिंदी के अलावा भोजपुरी, कोंकणी, उड़िया, पंजाबी, बांग्ला, मराठी, सिंधी, कन्नड़, गुजराती, तेलुगू, मगही, मैथिली, उर्दू, अंग्रेजी, फारसी, अरबी, सिंहली और डच भाषाओं में गाने गाए हैं. रफ़ी की शानदार गायकी ने कई गीतों को अमर बना दिया. कुल 6 फिल्मफेयर और 1 नेशनल अवार्ड रफी के नाम हैं.
पूरी लाइफ में सिर्फ दो इंटरव्यू
रफी साहब को पब्लिसिटी बिल्कुल पसंद नहीं थी. यहां तक कि वो जिस भी शादी में जाते थे तो सीधे कपल के पास जाकर उन्हें बधाई देते थे और फिर अपनी कार में आ जाते थे. वो जरा देर भी शादी में नहीं रुकते थे. रफी साहब बहुत कम बोलने वाले और शर्मीले इंसान थे. इसी वजह से वो इंटरव्यू नहीं देते थे. उनके सभी इंटरव्यू उनके बड़े भाई अब्दुल अमीन हैंडल करते थे. कहते हैं रफी ने अपनी पूरी लाइफ में सिर्फ दो इंटरव्यू दिए थे.
कब्र से मिट्टी उठाकर ले गए थे लोग
रफी साहब का निधन 31 जुलाई, 1980 को हुआ था. मौत से कुछ दिन पहले कोलकाता से कुछ लोग उनसे मिलने पहुंचे. वो चाहते थे कि रफी साहब काली पूजा के लिए भजन गाएं. रफी इसके लिए मान भी गए लेकिन जिस दिन रिकॉर्डिंग थी उस दिन उनके सीने में काफी दर्द हो रहा था. रफी ने किसी को कुछ नहीं बताया और गाने आ गए. वो दिन उनकी जिंदगी का आखिरी दिन था. 55 साल की उम्र में हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया. रफी साहब को लोग इस कदर चाहते थे कि उनके जनाजे में करीब 10 हजार लोग शामिल हुए थे. लोग उनकी कब्र से मिट्टी उठाकर अपने साथ ले गए थे.
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