हिंदी फिल्म जगत के एक ऐसे कलाकार जो हमें अपनी एक्टिंग से हंसा सकते हैं, रुला सकते हैं, और डरा भी सकते हैं. आज उन्हें लगभग भारत का बच्चा-बच्चा जानता है. उस मझे कलाकार का नाम है संजय मिश्रा. उन्होंने अपने करियर में कई सारी फिल्मों और टेलीविजन सीरियल में अभिनय से करके एक अमिट छाप छोड़ी है. आज बॉलीवुड में एक मुकाम हासिल करने वाले संजय एक समय में ढाबे पर काम किया करते थे. आज पटना और मुंबई में उनके कई घर हैं, लेकिन उनकी लाइफ में एक वक्त ऐसा भी था, जब उन्होंने एक्टिंग को गुडबाय कह दिया था, और एक ढाबे पर काम करने लगे थे. आज संजय मिश्रा का जन्मदिन है. आज इस मौके पर चलिए हम आपको उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ अनसुने किस्सों के बारे में बताते हैं.
एनएसडी से की एक्टिंग की पढ़ाई
संजय का जन्म 6 अक्टूबर, 1963 में बिहार के दरभंगा में हुआ था. इनके पिता शंभू नाथ मिश्रा एक पत्रकार थे. संजय को बचपन से ही एक्टिंग में बहुत ज्यादा रुचि थी. पटना के ही एक कॉलेज से हाईस्कूल करने के बाद, उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से ग्रेजुएशन किया. नेशनल स्कूल ड्रामा से पढ़ाई पूरी होने के बाद एक्टिंग में अपना भाग्य आजमाने उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा.
चाणक्य में मिला पहला रोल
हर एक्टर की तरह संजय मिश्रा को भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. संजय मिश्रा ने सबसे पहले टेलीविजन धारावाहिक चाणक्य में पहला अभिनय किया. इसके पहले उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ भी काम किया. संजय ने छोटे-मोटे रोल के साथ कई कमर्शियल एड में भी काम किया है.
1995 में हुआ फिल्मी करियर की शुरुआत
संजय मिश्रा ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1995 की फिल्म "ओ डार्लिंग ये है इंडिया" से की थी. जिसमें उन्होंने एक हार्मोनियम बजाने वाले की एक छोटी सी भूमिका अदा की थी. इस फिल्म में संजय मिश्रा की एक्टिंग को काफी पसंद किया गया था. साथ ही सत्या और दिल से जैसी फिल्मों में भी उन्होंने काम किया. वहीं टेलीविजन धारावाहिक ऑफिस-ऑफिस में उनके किरदार शुक्ला जी से उन्हें काफी पहचान मिली. 2005 में सीरियल छोड़ने के बाद उन्होंने बंटी-बबली और अपना सपना मनी-मनी में भी अपनी भूमिका निभाई.
पिता की मौत के बाद छोड़ दी एक्टिंग
100 से भी ज्यादा फिल्मों में एक्टिंग करने के बावजूद उन्हें कोई खास पहचान नहीं मिल पाई थी. संजय को अपने पिता से कुछ अलग ही लगाव था. यही वजह थी कि जब उनके पिता का देहांत हुआ तो उन्होंने फिल्म जगत से नाता तोड़ लिया. फिल्म जगत से बहुत दूर ऋषिकेश जाकर वो एक ढाबे में काम करने लगे. संजय वहां सब्जियां काटते, खाना बनाते और वहां लोगों को खिलाते. इसी तरह उनकी जिंदगी धीरे-धीरे बितने लगी. वो एक्टिंग की उम्मीद भी छोड़ चुके थे और जीवन से काफी निराश थे.
रोहित शेट्टी ने दोबारा दिया ब्रेक
लेकिन कहते हैं ना कि भाग्य में जो लिखा होता है, वो होकर रहता है. ऐसा ही कुछ संजय के साथ हुआ. एक बार उनके ढाबे पर जाने-माने निर्देशक रोहित शेट्टी आए. क्योंकि संजय रोहित की फिल्म गोलमाल में काम कर चुके थे. इसलिए संजय रोहित को तुरंत पहचान गए. रोहित को उनकी हालत पर बहुत अफसोस हुआ. रोहित उस वक्त अपनी एक फिल्म ऑल द बेस्ट पर काम कर रहे थे, और उन्हें एक किरदार के लिए संजय मिश्रा की जरूरत थी. किसी तरह रोहित ने संजय को उस रोल के लिए राजी किया. ऑल द बेस्ट संजय मिश्रा के लिए मील का पत्थर साबित हुई. फिल्म में उनकी एक्टिंग की बहुत तारीफ हुई. इस फिल्म ने उनके करियर को फिर से खड़ा कर दिया.
उसके बाद तो जैसे चमत्कार ही हो गया. फिल्म हिट हुई और उसके बाद से लेकर अब तक उन्होंने कई सारी फिल्मों में काम किया और सभी फिल्मों में उन्होंने अपनी एक खास पहचान बनाई. फिल्म ऑल द बेस्ट में बोले गए एक डायलॉग "धोंडू जस्ट चिल" काफी पॉपुलर हुआ. उसके बाद कई फिल्मों के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिले.