सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी (OTT) और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील कंटेंट की स्क्रीनिंग रोकने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार और नौ प्रमुख डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को नोटिस जारी किया है. यह आदेश जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने दिया, जिन्होंने कहा कि यह याचिका एक गंभीर मुद्दा उठाती है और केंद्र सरकार को इस पर आवश्यक कदम उठाने चाहिए. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मामला कार्यपालिका और विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है, इसलिए सरकार को नोटिस भेजा जा रहा है.
याचिका में एक "नेशनल कंटेंट कंट्रोल अथॉरिटी" के गठन का प्रस्ताव रखा गया है, ताकि OTT और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर मौजूद अनुचित और अश्लील कंटेंट को नियंत्रित किया जा सके. याचिकाकर्ता की ओर से वकील विष्णु शंकर जैन ने कोर्ट में तर्क दिया कि आज के समय में यह प्लेटफॉर्म्स बिना किसी फिल्टर के बेहद अश्लील और आपत्तिजनक कंटेंट परोस रहे हैं, जो युवाओं, बच्चों और यहां तक कि एडल्ट्स की मेंटल हेल्थ मानसिक स्वास्थ्य और सोच पर नकारात्मक असर डाल रहा है, जिससे अपराध दर में भी बढ़ोतरी हो सकती है.
इंटरनेट तक आसान पहुंच
याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि इंटरनेट की आसान और सस्ती पहुंच ने सभी उम्र के लोगों के लिए इस तरह के कंटेंट को देखना बेहद आसान बना दिया है. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इस पर समय रहते रोक नहीं लगाई गई, तो इससे सामाजिक मूल्यों और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं.
सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि सरकार ने पहले से कुछ नियम लागू कर रखे हैं और नए नियमों पर भी विचार कर रही है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 21 अप्रैल को भी इस याचिका पर सुनवाई की थी और तब भी यही कहा था कि यह एक नीतिगत मामला है, जो केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है.
बढ़ सकती है अपराध दर
इस मुद्दे पर कई विशेषज्ञों ने भी चिंता व्यक्त की है. प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक प्रोफेसर डॉमिनिक डिक्सन ने अपने शोध में यह निष्कर्ष निकाला है कि इस तरह का अश्लील और भद्दा कंटेंट, जो अक्सर पोर्नोग्राफिक होता है, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों जैसे रेप आदि से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है. उन्होंने बताया कि यह कंटेंट समाज में अपराध दर को बढ़ावा देता है और इस पर कड़ा नियंत्रण जरूरी है.
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष नौ ऐसे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के नाम भी प्रस्तुत किए, जिन पर इस प्रकार का आपत्तिजनक कंटेंट पाया गया है. ऐसा कंटेंट जो न तो परिवार के साथ देखा जा सकता है और न ही दो एडल्ट साथ में सहजता से देख सकते हैं.
बच्चों की मानसिक सेहत पर असर
सामान्य नागरिकों ने भी इस विषय पर चिंता जताई है. लोगों का कहना है कि फैमिली के साथ बैठकर OTT कंटेंट देखना अब लगभग नामुमकिन हो गया है, क्योंकि इसमें अत्यधिक गालियां, अश्लील दृश्य और आपत्तिजनक भाषा होती है. भले ही प्लेटफॉर्म्स पर आयु सीमा निर्धारित की गई हो, पर आज स्मार्टफोन बच्चों की भी पहुंच में है, जिससे वे भी इस कंटेंट को आसानी से देख सकते हैं. कई माता-पिता ने कहा कि इस कंटेंट से बच्चों का मानसिक विकास प्रभावित होता है क्योंकि उन्हें अच्छे-बुरे की समझ नहीं होती.
लोगों की यह भी राय है कि OTT और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सेंसरशिप होनी चाहिए, जैसे सिनेमा में ए ग्रेड, यू ग्रेड आदि के माध्यम से कंटेंट को अलग-अलग केटेगरी में रखा जाता है. उनका कहना है कि मौजूदा IT एक्ट की धारा 67, पॉक्सो एक्ट, इंडिसेंट रिप्रेजेंटेशन ऑफ वीमेन (प्रोहिबिशन) एक्ट 1986, और एंटी रेप लॉज़ जैसे कानून तो हैं, लेकिन इनके बावजूद भी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट पर पर्याप्त नियंत्रण नहीं है.
याचिका में यह भी कहा गया है कि IT नियम 2021 इस समस्या से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, और एक सशक्त और स्वतंत्र निगरानी सिस्टम की जरूरत है, जो यह सुनिश्चित कर सके कि अश्लील और समाजविरोधी कंटेंट बिना फिल्टर के बच्चों और आम जनता तक न पहुंचे.