शनिवार की सुबह ठंड में कमी और हल्की गुनगुनी धूप के साथ सीधी में 5वें विंध्य फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन का आगाज हुआ. पहले दिन के मुकाबले काफी संख्या में लोग वैष्णवी गार्डन पहुंचे और कई सारी फिल्मों का आनंद लिया. सुबह करीब 10:30 बजे से फिल्मों की स्क्रीनिंग शुरू हुई और रात करीब 8 बजे तक फिल्में दिखाई गईं. इस दुनिया में इच्छाओं का अंत नहीं है. हमें असल में ये पता ही नहीं होता कि हमें क्या चाहिए और जब तक इसका ज्ञान होता है, तब तक देर हो चुकी होती है.
सीधी में चल रहे 5वें विंध्य फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन शनिवार को दिखाई गई फिल्म 'इप्सा' ने कुछ ऐसा ही संदेश दिया. इप्सा का मतलब ही है- चाहत, इच्छा, आंकाक्षा. ये शॉर्ट फिल्म एक नि:संतान महिला की कहानी है. 'संतान की कामना में उसका पति दूसरी शादी करता है, जिसके बाद वो इग्नोर की जाने लगती है. सौतन के निश्छल, सुमधुर होने के बावजूद वो उससे केवल इसलिए ईर्ष्या रखती है, क्योंकि पति से मिलने वाला उसके हिस्से का प्यार अब सौतन को मिल रहा. इसके प्रतिशोध में वो कुछ ऐसा करती है कि क्लाइमैक्स में उसके ही हाथों पति की हत्या हो जाती है.
पांचवे विंध्य इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में इसके बाद एक से बढ़ कर एक फिल्में दिखाई गईं. हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिकता पर केंद्रित फिल्म 'अ टेल ऑफ टू इंडियंस' में राघव परमार ने रूपकों का इस्तेमाल करते हुए किरदारों के जरिये प्रेम का संदेश दिया. उन्होंने दिखाया कि कैसे परिस्थितियां दो संप्रदायों को एक-दूसरे के सामने दुश्मन के रूप में खड़ा कर देती है और इस द्वेष को खत्म करने का उपाय केवल और केवल प्रेम है.
शॉर्ट फिल्म पापी के माध्यम से रोहित पाटीदार और भूपेंद्र सिंह चौहान ने पंचायती फरमानों और गांव में फैली कुरीतियों पर चोट किया.
फिल्म और स्त्री विषय पर गहन विमर्श
इसके बाद बेहद ही अहम विषय 'फिल्म में महिलाओं का चित्रण और वर्तमान परिदृश्य में सार्थक सिनेमा' पर विमर्श का आयोजन हुआ. पैनल में कला समीक्षक आलोक पराड़कर, शोभा अक्षर, अमुधवन और शिवकेश मिश्र रहे और सत्र का संचालन किया गौरी श्रीनिवास ने.
रविवार का दिन होगा खास
फिल्म फेस्टिवल के डायरेक्टर प्रवीण सिंह चौहान ने बताया कि तीसरे दिन रविवार को राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुकी फिल्म अंतर्द्वंद दिखाई जाएगी और साथ ही फिल्म पुरस्कारों की घोषणा की जाएगी.
फेस्टिवल संयोजक नीरज कुंदेर ने बताया कि अंतिम दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कोलकाता से आईं तमेका चक्रवर्ती भरत नाट्यम प्रस्तुत करेंगी. वहीं स्थानीय कलाकार जनगीतों की भी प्रस्तुति देंगे.
आज इन फिल्मों की हुई स्क्रीनिंग
फिल्म: ऑरिजिन - (निर्देशक)
डोजो: अमेरिका- अर्मिन एलिक
नर्मदा- द इटर्नल रिवर: मध्य प्रदेश- सागर दास
ए टेल ऑफ टू इंडियंस: मध्य प्रदेश- राघव परमार
चिथिका: दक्षिण भारत- विनिश पेरुमपिली
इप्सा: भारत- पवित्रा वर्मा
लुक डाउन नॉट अप: नेपाल- आलोक तुलाधर
व्यर्थ: भारत- विजय पांडुरंग चौगुले
फ्रे: ब्रिटेन- एना ऑफेलिया फ्लोर्स
पापी: भारत- रोहित पाटीदार, भूपेंद्र सिंह चौहान
द वुमन मोटिफ्स ऑफ चंदेरी: भारत - गौरी श्रीनिवास
V3 विंध्य विक्टिम वर्डिक्ट: भारत- अमुधवन पी.
आध्या: भारत- राहुल पांडेय
द मर्चेंट ऑफ विनाश: भारत- कुणाल श्रीवास्तव
कुछ फिल्मों के बारे में
नर्मदा- द इटर्नल रिवर:
नदियों का अपना एक लंबा इतिहास है. सप्तमात्रिका मंदिर, महेश्वर से जुड़े सागर दास ने अपनी डाॅक्यूमेंट्री 'नर्मदा:द इटर्नल रिवर' में आध्यात्मिक, भौगोलिक, साइंटिफिक और सांस्कृतिक इतिहास को छुआ है. उन्होंने नर्मदा परिक्रमा के बारे में भी बताया, जिसमें नदी को पार किए बगैर उसकी परिक्रमा करते हैं. ये यात्रा करीब 3,000 किलोमीटर की होती है. इस दौरान केवल भिक्षा और शरण पर निर्भर रहना होता है. नदियों को जानना क्यों जरूरी है, इस डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से उन्होंने दिखाया है.
मध्य प्रदेश के लिए क्यों जरूरी है चंदेरी हैंडलूम
फिल्ममेकर गौरी श्रीनिवास कर्नाटक के बेंगलुरु से आती हैं, लेकिन उन्होंने अपना कॉलेज दिल्ली से किया है और उत्तर भारत के कई राज्यों में समय बिताया है. मध्य प्रदेश घूमने के दौरान चंदेरी हैंडलूम ट्रेडिशन ने उनका ध्यान खींचा और इस पर डॉक्यूमेंट्री बनाने की चाहत उन्हें खींच लाई, मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले में.
अशोकनगर जिले का चंदेरी अपने सिल्क के लिए दुनियाभर में फेमस है. इसमें बुनकर कारीगर ऑरिजिनल स्रोतों से सिल्क धागा निकालते हैं और फिर कपड़े तैयार करते हैं. कभी ये केवल साडि़यों तक सीमित था, लेकिन अब कुर्ती और यहां तक कि वेस्टर्न वियर भी बनाए जाने लगे हैं.
एक साड़ी बनाने में काफी समय लग जाता है और इसलिए ये अच्छी कीमत और मार्केट डिजर्व करती हैं. लूम पर ये तैयार होता है, ताने-बाने से. ताने में सिल्क और बाने में सूत (कॉटन) का इस्तेमाल होता है. निर्देशक गौरी ने बताया कि लोगों में अवेयरनेस की कमी है. साथ ही चीन से जो नकली धागे आने लगे हैं, उसने भी चुनौती खड़ी की है. वे कहती हैं कि चंदेरी सिल्क से मध्य प्रदेश की अस्मिता जुड़ी है, इसलिए इसके मार्केट का विस्तार जरूरी है.