पद्मा ब्लॉक के दोनाईखुर्द गांव की रहने वाली रंजना, अमनारी गांव की रहने वाली वर्षा और हज़ारीबाग़ की रहने वाली अनीता का जीवन भले ही प्रत्यक्ष तौर पर एक-दूसरे से न जुड़ा हो, लेकिन इनकी कहानियां कई मायनों में एक जैसी हैं. इन सभी ने समाज की गढ़ी हुई परंपराओं को न सिर्फ ललकारा है, बल्कि चट्टान जैसी इन रीतियों को काटकर आने वालों के लिए राह बनाने का काम भी किया है.
रंजना जहां बाल विवाह की प्रथा को मात देकर अपने गांव की तस्वीर बदल रही हैं, वहीं अनीता घरेलू हिंसा के जख्मों को भूलकर आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रही हैं. और अमनारी गांव की वर्षा? आइए जानते हैं झारखंड के हज़ारीबाग़ ज़िले की इन 'लड़ाकू' लड़कियों की कहानी.
बाल विवाह छोड़ रंजना ने देखा शिक्षा का सपना
राजकुमार दास और रेखा देवी के घर जन्मी रंजना ने जब 10वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी कर ली तो उसकी दादी ने उसकी शादी करवाने की ठान ली. कई मौकों पर दादी ने यह भी कहा कि अगर रंजना की शादी समय पर नहीं हुई तो दादी फांसी लगाकर जान दे देंगी. उस वक्त रंजना ने माता-पिता की मदद से दादी को मना लिया, लेकिन बात यहां खत्म नहीं हुई.
दो साल बाद 2024 में जब रंजना 12वीं पास हो गई तो उसके माता-पिता को भी बेटी की शादी का खयाल आया. लेकिन रंजना तो पढ़ना चाहती थी. भाई की यूपीएससी की किताबें पढ़ते-पढ़ते रंजना की रूची फिलॉसफी में बढ़ गई थी. रंजना ने भाई को बताया कि वह ग्रैजुएशन करना चाहती है. भाई ने सुझाव दिया कि अगर वह अपने भविष्य को सुरक्षित करना चाहती है तो उसे खुद ही घर पर बात करनी होगी.
सुसाइड की कगार से लौटीं अनीता
साल 2021 में जब अनीता ने शादी करके अपने ससुराल में कदम रखा तो उसने एक खुशहाल जीवन का सपना देखा था. लेकिन हुआ इससे एकदम उलट. ससुराल वाले दहेज के लिए सताने लगे. उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित करने लगे. बात घरेलू हिंसा तक पहुंच गई. एक समय पर अनीता को यह भी लगा कि उसे अपनी जान ले लेनी चाहिए.
अनीता जीएनटीटीवी डॉट कॉम से कहती हैं, "उस वक्त शादी का रिश्ता आया तो लगा अच्छे लोग हैं. उन्होंने यह भी कहा था कि वे आगे मुझे पढ़ने-लिखने देंगे. लेकिन मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि वे ऐसे लोग होंगे. शादी के एक सप्ताह बाद ही वे दहेज को लेकर और दूसरी चीजों को लेकर मुझे परेशान करने लगे."
अनीता कहती हैं, "मेरे परिवार से मेरा संपर्क काट दिया गया था. मैं भी अपने रिश्ते को बचाने में भी लगी थी इसलिए अपने माता-पिता को बताना नहीं चाहती थी. मैं कभी-कभी आत्महत्या के बारे में भी सोचती थी. लेकिन फिर मुझे खयाल आया कि मैं घुट-घुटकर क्यों जियूं? एक दिन मैंने अपने घर पर बात की. मेरे घरवालों ने मेरा साथ दिया. मेरे पिता ने मुझसे कहा कि मैं घर लौट आऊं."
घर लौटने के बाद अनीता को यह बात स्वीकार करने में समय लगा कि उसकी शादी महज पांच माह में खत्म हो गई है. छह महीने तक खुद को घर में बंद रखने के बाद अनीता ने जीवन को दोबारा शुरू करने का फैसला किया. जरूरी ट्रेनिंग लेने के बाद आज वह झारखंड की कौशल विकास मिशन सोसाइटी में डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेटर का काम कर रही हैं.
अमनारी गांव की भावी साइंसदान
वर्षा और उसकी सहेलियां लक्ष्मी, राखी और कौशल्या झारपो सीनियर सेकंड्री स्कूल में पढ़ती हैं. जब इन सब ने 10वीं कक्षा पास कर ली और 11वीं में दाखिला लेने का समय आया तो मालूम हुआ इनके स्कूल में सिर्फ आर्ट्स स्ट्रीम की पढ़ाई होती थी. लेकिन ये तो साइंस पढ़ना चाहती थीं.
यहां परेशानी यह थी कि अमनारी गांव हज़ारीबाग़ शहर से दूर है. झारपो सीनियर सेकंड्री स्कूल के अलावा इनके पास दूसरा विकल्प था शहर का स्कूल. लेकिन इनके माता-पिता इन्हें इतनी दूर पढ़ने जाने नहीं देते. वर्षा जैसी कई लड़कियां थीं जिन्हें इस वजह से या तो पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी या मन मारकर आर्ट्स स्ट्रीम चुननी पड़ी थी. लेकिन ये लड़कियां ऐसा नहीं करने वाली थीं.
इन चारों लड़कियों ने स्कूल की प्रिंसिपल से बात करने का फैसला किया. प्रिंसिपल ने इन्हें आर्ट्स चुनने के लिए मनाने की कोशिश की. क्योंकि लड़कियां तो यही करती हैं ना? लेकिन ये अड़ी रहीं. आखिरकार स्कूल को इनके लिए साइंस स्ट्रीम की पढ़ाई शुरू करनी पड़ी. हज़ारीबाग की इन भावी साइंसदानों का एक संघर्ष जहां खत्म हुआ, वहीं से दूसरा सफर भी शुरू हो गया.
फिर रंजना का क्या हुआ?
अनीता अब स्किल डेवलपमेंट विभाग में अपने साथ-साथ कई और लोगों को आत्मनिर्भर बना रही हैं. अमनारी गांव की बेटियों ने भी साइंस स्ट्रीम में दाखिला लेकर अपने भविष्य के लिए रास्ता चुन लिया है. रंजना ने भी किसी तरह माता-पिता से लड़-झगड़कर 2024 में बैचलर्स ऑफ फिलॉसफी (Bachelor's of Philosophy) के लिए हज़ारीबाग़ के सेंट कॉलंबस कॉलेज (Saint Columba's College) में दाखिला ले लिया.
इस सब के बावजूद शादी की तलवार रंजना के सिर पर लटक रही थी. फिर एक दिन लेकर कुछ लोग रंजना के लिए शादी का रिश्ता लेकर उसके घर आ गए. यहां उन्होंने रंजना की मां से मुलाकात की. कहने लगे कि जल्द ही शादी करना चाहते हैं.
रंजना बताती हैं, "वे लोग कहने लगे कि जल्दी ही शादी करना चाहते हैं. मां रिश्ते के लिए राज़ी हो गईं, लेकिन कहा कि एक-दो साल में शादी करेंगे. वे कहने लगे कि उनका एक ही बेटा है. जल्दी शादी करना चाहते हैं. तो मां ने भी कह दिया, हमारी भी एक ही बेटी है. अभी पढ़ रही है."
पढ़ाई के लिए मां का समर्थन पाकर रंजना को हौसला मिला. आज रंजना न सिर्फ अपने लिए शिक्षा हासिल कर रही हैं, बल्कि अपने गांव के लोगों को भी जागरूक करने के लिए कदम उठा रही हैं. उसने हाल ही में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में महिला भागीदारी बढ़ाने के लिए मतदाता जागरूकता अभियान चलाया. जिसका नतीजा ज़मीन पर देखने को मिला.
इसके अलावा रंजना अपने गांव में लड़कियों के खेलने के लिए एक फुटबॉल फील्ड भी तैयार करवा चुकी हैं. रंजना ब्रेकथ्रू नाम की संस्था के साथ बतौर 'चेंज लीडर' भी जुड़ी हुई हैं. रंजना का कहना है कि वह अपने समाज के लिए कुछ करना चाहती हैं और अपनी तरह दूसरी लड़कियों को भी आगे बढ़ते हुए देखना चाहती हैं.
अपने गांव को लेकर रंजना के कुछ सपने हैं. वह कहती हैं, "मैं चाहती हूं कि मेरे गांव में एक कोचिंग सेंटर बने. ताकि जो लड़कियां पढ़ने के लिए गांव के बाहर नहीं जा पातीं वे यहां रहकर ही पढ़ सकें. और हां, मैं यह भी चाहती हूं कि गांव में एक ड्राइविंग स्कूल हो, जहां लड़कियां बाइक-स्कूटी चलाना सीख सकें."