कर्नाटक के बेलगावी जिले के एक छोटे से गांव 'अदहल्लटी' में मौजूद सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल ने बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए एक ऐसा कदम उठाया है, जिसे सुनकर आप भी उनकी तारीफ करने लगेंगे. स्कूल में बच्चों की कम होती संख्या को देखते हुए हेडमास्टर ने फैसला किया है कि वह यहां आने वाले हर नए स्टूडेंट के नाम का एक 1000 रुपए का फिक्स्ड डिपॉज़िट करेंगे.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की ओर से प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, हेडमास्टर यह रकम अपनी जेब से जमा कर रहे हैं. विद्यार्थी के नाम पर होने वाला यह डिपॉज़िट 18 साल में मैच्योर हो जाएगा. यह रकम भले ही छोटी है लेकिन 18 साल के अंतराल के बाद उस स्टूडेंट के काम आ सकेगी. इसी विचार के साथ वह कई परिवारों को प्रोत्साहित कर रहे हैं कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजें.
क्यों कम हुए स्टूडेंट?
हेडमास्टर ने यह फैसला इसलिए लिया है क्योंकि बीते कुछ सालों में स्कूल में स्टूडेंट्स की संख्या कम हुई है. रिपोर्ट बताती है कि इस वजह से ग्रामीण इलाकों के कई स्कूल बंद भी हुए हैं. ग्रामीण परिवारों को आने वाली आर्थिक परेशानियों और लोगों के पलायन ने तो स्कूलों को बंद होने पर मजबूर किया ही है, साथ ही प्राइवेट स्कूलों की बढ़ती तादाद ने भी इसमें एक भूमिका निभाई है.
अदलहट्टी का स्कूल 2005 में खुला था. साल 2015 तक यहां पहली से सातवीं कक्षा तक 60-70 स्टूडेंट पढ़ते थे. लेकिन स्कूल में शिक्षकों और इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण बच्चों ने धीरे-धीरे यहां नाम लिखवाना बंद कर दिया. पिछले साल इस स्कूल में सिर्फ 18 बच्चे थे, जिसकी वजह से इसके ऊपर भी बंद होने का खतरा मंडराने लगा.
स्कूल को पुनर्जीवित करना है मिशन
सिद्दामल्ला खोत जुलाई 2023 में स्कूल के हेडमास्टर बने थे. उन्होंने छात्रों को आकर्षित करने और स्कूल की प्रतिष्ठा को बहाल करने के लिए सक्रिय कदम उठाए हैं. उन्होंने गांव के लोगों को अपनी कोशिश में शामिल तो किया ही है, साथ ही माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश में कई शैक्षिक कार्यक्रम भी शुरू किए हैं.
मिसाल के तौर पर, खोत हर महीने शहर में प्राथमिक और उच्च विद्यालय के छात्रों के लिए एक क्विज़ कॉम्पिटीशन आयोजित करते हैं. यहां विजेताओं को पुरस्कार मिलते हैं. इसके अलावा उन्होंने गांव में युवाओं के लिए ट्रेनिंग वर्कशॉप भी शुरू की हैं. इससे उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में मदद मिलती है.
गर्मियों के महीनों में खोत व्यक्तिगत रूप से अपने छात्रों के लिए विशेष कक्षाएं आयोजित करते हैं. दानदाताओं की मदद से वह और स्कूल का स्टाफ स्कूल की सुविधाओं में सुधार और समग्र शिक्षण माहौल को बेहतर बनाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं. इसी सिलसिले में खोत ने पिछले साल फिक्स्ड डिपॉजिट स्कीम पेश की थी.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट खोत के हवाले से कहती है, “पिछले साल हमारे पास कक्षा 1 में सिर्फ दो छात्र थे. इस साल स्कूल फिर से खुलने के पहले दिन नौ बच्चों ने दाखिला लिया. जमा राशि मेरी ओर से एक छोटी सी कोशिश है लेकिन सच कहूं तो परिवर्तन इसलिए हो रहा है क्योंकि माता-पिता और छात्र हमारी शैक्षिक पहल की सराहना कर रहे हैं."
दिखने लगा है स्कीम का फायदा
खोत के प्रयासों और उनकी टीम के नतीजे मिलने लगे हैं. सुव्यवस्थित प्रवेश अभियान की बदौलत स्कूल में दाखिला लेने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है. रिपोर्ट खोत के हवाले से कहती है, “हमारे सभी शिक्षक अभियान में सक्रिय रूप से शामिल हैं. कई माता-पिता दाखिले के लिए पहुंचे हैं. मुझे विश्वास है कि इस सप्ताह के अंत तक हमारी छात्र संख्या 40 से अधिक हो जाएगी.”
सकारात्मक प्रगति के बावजूद, स्कूल को अभी भी बुनियादी ढांचे की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. स्कूल की बाउंड्री वॉल नहीं है. इसके अलावा माता-पिता ने साफ पानी की सुविधा मुहैया करवाने की मांग भी उठाई है. खोत इस बात पर जोर देते हैं कि उनकी कोशिश विद्यार्थियों को सिर्फ वित्तीय प्रोत्साहन देना नहीं है बल्कि वह उनके लिए एक मज़बूत शैक्षणिक बुनियाद भी बनाना चाहते हैं.