कहते हैं कि प्रतिभा, धूप-हवा और खुशबू की तरह होती है, जो छुपाने से भी नहीं छुपती है. बल्कि ये और भी निखर जाती है. शायद यही वजह है कि बिहार के खगड़िया जिले का शैक्षणिक रूप से पिछड़ा गांव नारदपुर का बेटा हिमांशु राज भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट बन गया है. हिमांशु ने आई.आई.टी एडवांस में सफल होने के बाद नेशनल डिफेन्स सर्विस (NDA) ज्वाइन की. वह इंडियन मिलिट्री एकेडमी देहरादून से इसी साल 11 दिसंबर को पास आउट हुए हैं. हिमांशु की इस सफलता से परिवार समेत गांव के लोग फूल नहीं समा रहे हैं.
लेफ्टिनेंट बनने के बाद पहली बार अपने गांव आने पर नारदपुर गांव के लोगों ने हिमांशु का भव्य स्वागत किया. जहां मां ने आरती दिखाकर और तिलक लगाकर आशीर्वाद दिया वहीं गांव वालों ने फूल माला पहनाई.
उनके इलाके में आज भी नहीं है कॉलेज
आपको बता दें कि हिमांशु राज बेलदौर प्रखंड के रहने वाला हैं. जो शैक्षणिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है. उस इलाके में आज भी कॉलेज नहीं है. हिमांशु के पिता वर्षों तक आर्मी जवान रहकर सूबेदार कैप्टन के पद से पिछले साल रिटायर हुए हैं. हिमांशु ने अपनी इस सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को दिया है.
हिमांशु कहते हैं, “मैं बचपन में नानी के घर जौनपुर में रहा. फिर चौथी क्लास में मेरी आर्मी पब्लिक स्कूल से पढ़ाई हुई. दसवीं केंद्रीय विद्यालय से हुई है. मैं बीटेक करना चाहता था इसीलिए मैंने विशाखापत्तनम में एडमिशन लिया. बारहवीं में एनडीए की तैयारी शुरू कर दी थी. उस दौरान मेरा जेईई भी क्लियर हुआ था. मेरा माता पिता का इसमें बहुत बड़ा हाथ है.”
चार्ली स्क्वाड्रन में ली है ट्रेनिंग
आपको बता दें, हिमांशु ने एनडीए के उसी चार्ली स्क्वाड्रन में ट्रेनिंग ली है जहां से कभी शहीद सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने ट्रेनिंग ली थी. हिमांशु की मानें तो आईआईटी में मनपसंद रैंक न मिलने के कारण उन्होंने अपना मन डिफेंस में जाने का बनाया और इसके लिए प्रयास शुरू कर दिए, जिसके बाद उन्हें सफलता मिली. वह कहते हैं कि मैं अपने फौजी पिता की तरह देश की सेवा करना चाहता हूं.
बचपन से ही हैं मेहनती
हिमांशु के पिता और मां अपने बेटे की सफलता पर फूल नहीं समा रहे हैं. मां का कहना है कि हिमांशु बचपन से ही दृढ़ इच्छाशक्ति वाले और मेहनती हैं. उनकी पढ़ाई में काफी रूचि थी. इसी के सहारे उन्हें आज सफलता मिली है.
उनकी मां कहती हैं, " बेटे के लेफ्टिनेंट बने पर उन्हें बहुत खुशी है, इसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है. बेटे को तैयारी करवाने में पिता का भी हाथ रहा क्योंकि वे भी फौज में थे. बचपन से ही ये बहुत होशियार था. घर में भी ये उतनी ही मदद करता है. शुरू से ही चाहती थी बच्चा कुछ बने."
इसके साथ उनके पिता कहते हैं, "हम जिस इलाके से आते हैं, या हम जैसे पले बड़े, हमे मोटीवेट करने वाला कोई नहीं थी. मैं चाहता था कि जो मैं नहीं कर पाया वो मेरा बेटा करे. वो जीवन में कुछ अच्छा करे. आर्मी में जाकर मेरा बेटा देश की सेवा करेगा. वो बहुत भाग्यशाली होता है जो आर्मी के द्वारा देश सेवा करता है.”
आपको बता दें कि हिमांशु के पिता आर्मी जवान रहकर पिछले साल सूबेदार कैप्टन के पद से रिटायर हुए हैं. वहीं उनकी मां नारदपुर मध्य विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक के रूप में फिलहाल कार्यरत हैं.
(स्वतंत्र कुमार की रिपोर्ट)