नोएडा का सेक्टर 15 का इलाका.. एक छोटे से गेट से होकर आप एक आंगन में पहुंचते हैं आंगन में चारों तरफ कमरे हैं. लेकिन आंगन में बाहर से ही आपको चारों तरफ किताबें ही किताबें दिखना शुरू हो जाएंगी। जिस कमरे में आप पहुंचेंगे वहां पर किताबों का भंडार है. आपको कहानी पढ़नी हो या किसी कोर्स की तैयारी करनी हो, इस जगह पर हर चीज से जुड़ी किताब आपको मिल जाएगी. यह नोएडा की सबसे बड़ी लाइब्रेरी है. आज हम आपको उस शख्स के बारे में बताएंगे, जिसने इस लाइब्रेरी को बनाया, जो पेशे से एक बिजनेसमैन था. लेकिन उनकी जिंदगी में उनके भाई की मौत ने ऐसी छाप छोड़ी कि वह एक समाज सेवक बन गए.
केमिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट, नौकरी की जगह शुरू की फैक्ट्री
नोएडा लोक मंच एक ऐसी संस्था है, जो समाज में गरीब बच्चों की पढ़ाई और गरीबों के इलाज के लिए काम कर रही है. इस संस्था की देखरेख महेश सक्सेना करते हैं. लेकिन आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि महेश सक्सेना केमिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट है. वो बताते हैं कि इंदिरा सरकार के वक्त इंजीनियर्स के लिए ज्यादा नौकरी नहीं थी. सरकार इंजीनियर्स को अपना बिजनेस शुरू करने के लिए प्रेरित करती थी. तभी लोन लेकर मैंने और एक दोस्त ने मिलकर फैक्ट्री शुरू की. उस वक्त मेरे या दोस्त के खानदान में कोई भी बिजनेस नहीं करता था.
भाई की मौत ने सब बदल दिया
अपने करियर की शुरुआत उन्होंने एक छोटी सी फैक्ट्री को शुरू करके की थी. सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था लेकिन तभी एक घटना ने उनके जीवन को पूरी तरह बदल कर रख दिया. महेश सक्सेना बताते हैं कि उनके छोटे भाई को कैंसर हुआ बहुत कोशिश के बाद भी वो अपने भाई को बचा नहीं सके. तब उन्हें एहसास हुआ कि अगर इतना पैसा होते हुए भी वो अपने भाई की जिंदगी नहीं बचा सके तो फिर इस पैसे का मतलब क्या. तब से उन्होंने अपना जीवन समाज की सेवा में समर्पित कर दिया.
आईएएस अफसर को पहुंचाया जेल
महेश सक्सेना बताते हैं कि लाइब्रेरी से पहले उन्होंने जब समाज सेवा में एंट्री की तो सबसे पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई शुरू की. यूपी की आईएएस अफसर नीरा यादव को जेल पहुंचाने में महेश सक्सेना की बड़ी भूमिका थी. लेकिन वह कहते हैं कि एक वक्त पर वह समझ गए कि भ्रष्टाचार को खत्म करने में कहीं ना कहीं वो गरीबों के लिए काम नहीं कर पा रहे इसके बाद उन्होंने अस्पताल और सरकारी स्कूल को अपने मिशन की प्राथमिकता बना ली.
शहीद के अंतिम संस्कार के बाद अंतिम निवास को बनाया मिशन, बदल दी तस्वीर
महेश सक्सेना ने नोएडा में अंतिम निवास को विकसित करने में बड़ी भूमिका निभाई. वह बताते हैं कि एक वक्त था जब अंतिम निवास में अव्यवस्थाओं का अंबार था चारों तरफ झाड़ियां थी और गंदगी थी. लेकिन कारगिल युद्ध के दौरान नोएडा के कैप्टन विजयंत थापर शहीद हुए नोएडा लोक मंच को उनके अंतिम संस्कार की व्यवस्था करने का मौका मिला. वो बताते हैं कि उस वक्त उन्होंने पूरे शहर को उनकी अंतिम यात्रा का हिस्सा बनाया. इसके बाद उन्हें समझ आया कि अंतिम निवास की सूरत भी बदलनी होगी तब से लेकर आज तक अंतिम निवास में उन्होंने बहुत सारे बदलाव किए हैं. नोएडा के अंतिम निवास में अब सीएनजी से भी शव जलाए जाते हैं, ये व्यवस्था महेश सक्सेना के जरिए ही हुई.
मरघट में स्कूल और फ्री में खाना
अंतिम निवास से लोगों को सीधे जुड़ने के लिए उन्होंने सबसे पहले वहां पर एक स्कूल शुरू किया मरघट में स्कूल का होना बेहद है. लेकिन वो कहते हैं कि काफी दिन तक उस स्कूल में गरीब मजदूरों के बच्चे आ कर पढ़ाई करते रहे. इतना ही नहीं उन्होंने मरघट से लोगों को जोड़ने के लिए अंतिम निवास पर ही फ्री में भोजन बांटना शुरू किया उनका यह फार्मूला भी काफी दिन तक सफल रहा वह कहते हैं कि इसके जरिए वो लोगों के दिमाग से अंतिम निवास को लेकर दकियानूसी सोच को मिटाना चाहते थे.
कोविड में शुरू किया फ्री दवा बैंक
महेश सक्सेना ने कोविड के वक्त गरीब लोगों के लिए एक दवा बैंक की भी शुरुआत की है. इस दवा बैंक में पूरे शहर के लोगों से दवाइयां इकट्ठा की जाती हैं और फिर गरीबों तक मुफ्त में पहुंचाई जाती है.