UP की मथुरा नगरी यूं तो भगवान कृष्ण की लीलाओं और उनकी कथाओं के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन अगर ये जगह किसी और चीज़ के लिए जानी जाती है, तो वो है यहां के पेड़े. मावे से बने इन पेड़ों का स्वाद सबसे जुदा है. यहां मंदिरों में भी पेड़ों का प्रसाद चढ़ाया और बांटा जाता है. लेकिन मथुरा में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां असली पेड़ों की जगह मिट्टी के पेड़े चढ़ाए जाते हैं. गोकुल स्थित यमुना के ब्रह्मांड घाट पर ब्रह्मांड बिहारी का मंदिर है, जहां मिट्टी से बने पेड़ों का भोग लगाया जाता है और श्रद्धालु इन्हें प्रसाद के रूप में बड़े चाव से खाते भी हैं.
इन पेड़ों को बड़े चाव से खाते हैं भक्त
ऐसा माना जाता है कि ये वही स्थान है, जहां मां यशोदा को भगवान कृष्ण ने ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे. इसलिए भगवान कृष्ण मंदिर का नाम ब्रह्मांड बिहारी है. इस मंदिर में ब्रह्मांड बिहारी को मिट्टी के पेड़े का भोग लगाया जाता है. इस भोग को लोगों के बीच वितरित किया जाता है और भक्त इन्हें बड़े चाव से खाते हैं. मान्यता है कि यदि कोई बच्चा मिट्टी खाता है और उसे ये पेड़ा खिला दिया जाए तो वह मिट्टी खाना छोड़ देता है.
जब श्री कृष्ण ने कराए थे मां यशोदा को ब्रह्मांड के दर्शन
इससे जुड़ी एक कथा प्रचलित है. एक बार द्वापर युग में, श्री कृष्ण ने मिट्टी खा ली थी. बलराम ने कृष्ण को मिट्टी खाते हुए देख लिया. बलराम ने इस बारे में मां यशोदा को बता दिया. माता यशोदा यह सुनते ही कृष्ण को डांटने लगी. कृष्ण ने कहा कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया है. यशोदा ने कृष्ण को मुंह खोलकर दिखाने को कहा. यशोदा को भगवान श्री कृष्ण के मुख में मिट्टी तो नहीं दिखाई दी. लेकिन उन्होंने पूरा ब्रह्मांड देख लिया. यह देख यशोदा मां चकित रह गईं.
यमुना से आती है पेड़ों के लिए मिट्टी
इन पेड़ों को बनाने के लिए बरसात के मौसम में यमुना के घाटों के पास की मिट्टी निकलवाई जाती है. इस मिट्टी को सुखाया जाता है. फिर इसे कूटा और छाना जाता है. इसके बाद मिट्टी के पेड़े तैयार किए जाते हैं. जो भी भक्त यहां भगवान् कृष्ण के दर्शन के लिए आता है, वो इन मिट्टी के पेड़ों का स्वाद जरूर लेता है. पेड़ों की बिक्री से जितनी भी आमदनी होती है उस आय के हिस्से को बिहारी जी की सेवा में लगाया जाता है.