लॉकडाउन में नहीं दे पाई बोर्ड की परीक्षा, तो लिख डाली किताब

बिहार के मुजफ्फरपुर की पंद्रह साल की एक लड़की कोविड महामारी के कारण 10वीं की बोर्ड परीक्षा नहीं दे पाई. वह दुखी तो हुई लेकिन हताश होने के बदले बच्चों की मनोभावना प्रकट करती एक किताब लिखी. यह किताब आजकल चर्चा में है.

लॉकडाउन पर किताब लिखने वाली नैय्या प्रकाश
नाज़िया नाज़
  • नई दिल्ली,
  • 16 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 8:34 PM IST
  • लॉकडाउन का किया सही इस्तेमाल
  • बच्चों के मनोभाव को शब्दो में सजाया
  • 15 साल की बिटिया ने लिख डाली किताब

कोरोना काल ने हमें बहुत कुछ सिखाया, लेकिन कुछ लोगों ने तो विपरित परिस्थितयों में भी ऐसी- ऐसी पॉजिटिव यादें बना ली, जो हमेशा याद रखी जाएगी, इन्हीं कहानियों में से एक कहानी है बिहार के मुजफ्फरपुर की नैय्या प्रकाश की. जिन्होने लॉकडाउन में स्कूल बंद होने पर घर बैठे एक किताब लिख डाली. जिसका नाम है  "एंड आई पास्ड माई बोर्ड विदाउट इवेन अपीयरिंग फॉर इट". 

एक टीनएजर की कहानी 

नैय्या प्रकाश की किताब "एंड आई पास्ड माई बोर्ड विदाउट इवेन अपीयरिंग फॉर इट" उस लड़की की कहानी है जो कोरोना की वजह से लॉकडाउन में स्कूल नहीं जा पा रही थी. वह दसवीं की बोर्ड परीक्षा की तैयारी तो जरूर की, लेकिन कोरोना की वजह से जीवन की पहली सबसे बड़ी परीक्षा में शामिल न हो सकी. फिर भी कोविड ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया. DW की रिपोर्ट के मुताबिक नैय्या प्रकाश बताती हैं कि, "मैं बचपन से ही किताब लिखना चाहती थी. मुझे लिखने का काफी शौक था. मैं रोजाना दिनभर के घटनाक्रम को डायरी में लिखती रही हूं. लॉकडाउन के दौरान लिखे अपने इन्हीं अनुभवों को मैंने किताब की शक्ल दी."

कोरोना ने सिखाया 'फैमिली बॉन्डिंग व आत्मनिर्भरता'

नैय्या प्रकाश अपनी किताब में लिखती हैं कि कोरोना के दौरान जिंदगी में कई बदलाव आए, "एक लड़की जो टीनएजर है, जो लॉकडाउन के वक्त हालातों के मुताबिक खुद को ढालती है. स्कूल जाना बंद हो गया, दोस्तों से मिलना-जुलना बंद हो गया. बहुत कुछ बदल गया. मेरी एक सहेली को कोविड हो गया तो कैसे उसका हौसला बढ़ाया. फैमिली बॉन्डिंग व आत्मनिर्भरता क्या है. हमने अपना काम करना कैसे सीखा."

लॉकडाउन ने दी बेहतर चीजों की सीख 

महामारी की वजह से आए बदलाव पर नैय्या प्रकाश कहती हैं, "कोविड के कारण हुए लॉकडाउन ने हमें कई चीजों से दूर रखा. इस बीच हम दोस्तों से दूर रहे, अपने स्कूल से दूर रहे, क्लास से दूर रहे. चारों तरफ से बस निगेटिव और दिल दुखाने वाली खबरें ही आ रही थी, ." बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे थे, घरों में कैद थे. उन पर पढ़ाई का भी दबाव था. हर तरफ भय व निराशा का माहौल था, "लेकिन इन सब के बावजूद इस दौरान हम कई बेहतर चीजें भी सीख सके."

लॉकडाउन ने की फैमिली को समझने में मदद 

कोरोना के दौरान बच्चों ने हमउम्रों का साथ तो खोया लेकिन उन्हें मजबूरी में ही सही, अपने परिवार के साथ रहने का मौका मिला. संकट की घड़ी परिवार के लोग एक दूसरे के करीब आए. एक दूसरे को समझने की कोशिश की. नेय्या कहती हैं, "लॉकडाउन में विपरीत परिस्थितियों में रहते हुए हम यह जान सके कि फैमिली वैल्यूज क्या हैं, किसी भी अवसर का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है. यह समझ में आया कि धैर्य क्या है. कम पैसे में कैसे जी सकते हैं."
 

 

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