उत्तर प्रदेश में बसे बृज क्षेत्र को बृज प्रदेश के रूप में जाना जाता है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बचपन के दिन बृज में ही बिताए थे. बृजभूमि के कण कण में भगवान श्री कृष्ण से जुड़े तथ्य और उनसे जुड़ी कहानियां हमेशा श्रद्धालुओं के जुबान पर रहती हैं.
लोगों की वृक्ष के प्रति विशेष आस्था
मथुरा के गोकुल में करीब 6000 साल पुराना ( ऐसी मान्यता है ) एक कदंब का वृक्ष है. ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर भगवान कृष्ण ने माता यशोदा को ब्रह्माण्ड के दर्शन कराए थे. ये जगह आज भी कृष्णा भक्तों के लिए आस्था की विशेष जगहों में से एक है. दीपावली के अगले 2 दिन यानी गोवर्धन और भाई दूज के दिन हजारों की संख्या में लोग यहां पर आते है और मन्नते मांगते हैं. मथुरा से करीब 14 km दूर गोकुल गांव भगवान कृष्ण की बाल्यकाल की अठखेलियों का साक्षी रहा है. गोकुल में भगवान की लीलाओं की कहानियां और वो स्थान भक्तों की आस्था का केंद्र बने हुए हैं.
मिट्टी खाते पकड़े गए थे कन्हैया
कदंब का ये वृक्ष यमुना किनारे है. श्रद्धालु कार्तिक पूर्णिमा के समय पहले यमुना में स्नान करते हैं और उसके बाद इस वट वृक्ष की पूजा करते हैं. मान्यता है कि यहां पर बालकृष्ण ने गोप-बालकों के साथ खेलते समय मिट्टी खाई थी. जब मां यशोदा ने बलराम से इस विषय में पूछा, तो बलराम ने भी कन्हैया के मिट्टी खाने की बात का समर्थन किया. इसके बाद माता यशोदा ने घटनास्थल पर पहुंच कर कृष्ण से पूछा-'क्या तुमने मिट्टी खाई?' कन्हैया ने उत्तर दिया- नहीं मैया! मैंने मिट्टी नहीं खाईं. यशोदा मैया ने कहा-कन्हैया ! अच्छा तू मुख खोलकर दिखा. जब भगवान कृष्ण ने मुख खोला तो उसमें पूरा ब्रह्माण्ड- ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा चराचर सब कुछ दिखाई पड़ा. माता को एक बार में ही पूरे ब्रह्माण्ड के दर्शन हो गए.
कदंब को है अमृत्व की प्राप्ति
कहते हैं कि यही वो पेड़ था जहां कन्हैया मिट्टी खाते हुए पकड़े गए थे और माता को मुख खोल के दिखाने पर उन्हें पूरे ब्रह्माण्ड के दर्शन कर दिए थे. मान्यता है कि उस समय कदंब के पेड़ ने दर्शन करके अमृत्व की प्राप्ति की और इसलिए कलयुग में भी ये पेड़ कृष्णा लीला को भक्तों की मनोकामना पूरी करके उन्हें आशीर्वाद देता हैं.