अगर आप किसी कारण से कोई भी काम करने निकलेंगे तो, विपरीत से विपरीत हालात में भी सब कुछ मुमकिन होगा. यहां तक की भगवान भी आपका साथ देंगे. चेन्नई के रहने वाले दो लोगों ने भी एक ऐसा ही सपना देखा था, और आज उस सपने की वजह से हजारों की लोगों की जिंदगी संवर रही है. चेन्नई के व्यासरपदी के रहने वाले मोहन मुनुसामी और एस उदयकुमार का सपना था कि हर किसी को जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं मिलें, जो इसका खर्च नहीं उठा सकते हैं. आज ये सपना हकीकत बनकर कई लोगों की मदद कर रहा है.
एक ट्रेजेडी के कारण आया आईडिया
कॉलेज में मिले दो दोस्तों के लिए यह लगभग 6 साल का लंबा सफर रहा है. दरअसल 2017 में हुई एक ट्रेजेडी ने उन्हें ट्रिगर किया था. मोहन के पड़ोस में एक लड़की की डेंगू से मौत हो गई. मौत का कारण सिर्फ ये था कि उसका परिवार उचित चिकित्सा देखभाल का खर्च नहीं उठा सकता था. मोहन ने महसूस किया कि गरीब परिवारों के लिए मेडिकल हेल्प की सख्त जरूरत है. इस प्रकार, फाउंडेशन फॉर फ्रेंडली एनवायरनमेंट एंड मेडिकल अवेयरनेस (FEMA) का जन्म हुआ.
केवल 30 रुपए में होगा रजिस्ट्रेशन
तब से, मोहन और उदय दोनों एनजीओ के माध्यम से उन लोगों को मुफ्त चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है. फेमा एक इवनिंग क्लीनिक चलाता है, जिसमें मरीजों को केवल एक बार में 30 रुपए का रजिस्ट्रेशन फीस देनी होती है, जिसके बाद उन्हें फ्री में इंजेक्शन और मुफ्त में दवाएं मिलेंगी. उनके पास 'स्मार्ट हार्ट्स' नाम की एक प्रयोगशाला भी है, जो मधुमेह और उच्च रक्तचाप के लिए निःशुल्क निदान प्रदान करती है. प्रयोगशाला को ट्रेंड प्रोफेशनल्स चलाते हैं, जिन्होंने चिकित्सा प्रयोगशाला प्रौद्योगिकी और ऑप्टोमेट्री में फेमा के मुफ़्त पाठ्यक्रम किए हैं.
घर पर भी इलाज करवाती है फेमा
लेकिन जो चीज फेमा को वास्तव में अलग करती है, वह है बिस्तर पर पड़े रोगियों की सेवा करने की इसकी प्रतिबद्धता. जो लोग चल फिर कर खुद से अस्पताल भी नहीं आ सकते है, फेमा उन रोगियों के आराम का ध्यान रखते हुए उन्हें घर पर चिकित्सा प्रदान करवा रहा है. साथ ही इस चीज का भी ध्यान रख रहा है, कि उन्हें ट्रांसपोर्टेशन और कॉस्ट की कोई चिंता न करनी पड़े.
फेमा की सेवाओं से लाभान्वित होने वाले रोगियों में से एक मोहम्मद रफ़ी हैं. दरअसल मोहम्मद रफी काफी हद तक जल गए थे, उन्हें चलने-फिरने के लिए लगातार सहारे की जरूरत थी. फेमा ने उन्हें व्यक्तिगत सहायता और दवाएं दीं, जिसके बाद उनकी उनकी जिंदगी बदल गई है.
नुक्कड़ नाटक के जरिए जागरूकता फैला रहा है फेमा
फेमा विभिन्न बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए नुक्कड़ नाटक और नाटक भी आयोजित करता है और तिरुवन्नामलाई, रानीपेट, तिरुवल्लुवर और चेन्नई सहित विभिन्न स्थानों में मुफ्त नेत्र शिविर, डेंगू और एचआईवी शिविर आयोजित करता है. इनका लक्ष्य प्रारंभिक निदान और अनुवर्ती कार्रवाई के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना है, खासकर उन घरों में जिनके पास ऐसी सेवाओं तक पहुंचने के लिए संसाधन नहीं हो सकते हैं.
आदिवासी बच्चों के लिए ट्यूशन सेंटर भी चला रहा है फेमा
चिकित्सा सहायता प्रदान करने के अलावा, फेमा रानीपेट जिले में इरुला जनजाति के बच्चों के लिए एक ट्यूशन सेंटर भी चलाता है. संस्था का रखरखाव अरकोनम के पास किलवेंकटपुरम के निवासी एस संतोष करते हैं. ट्यूशन सेंटर बच्चों में शिक्षा के प्रति रुचि पैदा करने के लिए गतिविधि आधारित शिक्षा प्रदान करता है. शुरुआत में ये ज्यादा सफल नहीं हुआ क्योंकि आदिवासी बच्चों को पढ़ने के लिए आने में तकलीफ होती था. दरअसल आदिवासी बच्चों को पशुपालन के साथ-साथ कई तरह की जिम्मेदारियां होती हैं, जिस कारण उनके लिए आना आसान नहीं होता था. लेकिन फेमा ने बच्चों की उपस्थिति को प्रोत्साहित करने के लिए, उन्हें शाम के स्नैक्स देना शुरू किया और क्लास में ड्राइंग और पेंटिंग जैसी गतिविधियां भी शामिल की, जिस कारण क्लास में उनकी रुचि बढ़ने लगी. धीरे-धीरे ये अभियान चल पड़ा और बच्चों के साथ-साथ उनके माता पिता भी जागरूक हो गए. सुलभ स्वास्थ्य सेवा और गैर-औपचारिक शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के माध्यम से, फेमा वंचित परिवारों और बच्चों के जीवन में महत्वपूर्ण प्रभाव डाल रहा है.